Corona virus sero survey सीरो सर्वे से कई राज्यों में हर्ड इम्युनिटी के जो संकेत मिले हैं, वे भ्रामक हैं, क्योंकि कोरोना वायरस का नया वैरिएंट पिछले वैरिएंट से बनी एंटीबॉडीज की परवाह नहीं करता। फिर स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत में पहले जैसे ही है। यानी लहर आई, तो उसका बेहतर ढंग से मुकाबला होगा, इसकी संभावना नहीं है।
संक्रामक रोग विशेषज्ञों ने बीते हफ्ते जो बातें कहीं, देश को उन पर जरूर गौर करना चाहिए। स्वतंत्र यानी गैर-सरकारी विशेषज्ञों में एक बात सामान्य है। उन्हें इस बात की पीड़ा है कि बीते मार्च में खुद सरकारी विशेषज्ञों की समिति ने महामारी की मारक दूसरी वेब के बारे में चेतावनी दे दी थी। लेकिन सरकार ने अपनी आदत के मुताबिक उस पर गौर नहीं किया। ये जानने का हमारे पास कोई स्रोत नहीं है कि अब सरकार ने सबक सीख लिया है या नहीं। बहरहाल, सरकारी अधिकारी लगातार तीसरी लहर की चेतावनी दे रहे हैं। जबकि विशेषज्ञों का कहना है कि ये लहर आएगी या नहीं, यह हम पर निर्भर करता है।
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अगर लोगों ने सावधानी जारी रखी और अधिकारियों ने समय पर कदम उठाए, तो इस लहर को रोका जा सकता है- या कम से कम उसका असर कम किया जा सकता है। कुल संदेश यह है कि अभी निश्चिंत होने का वक्त नहीं है। इसकी बड़ी वजह यह भी है कि टीकाकरण की दर निम्न बनी हुई है। सीरो सर्वे से कई राज्यों में हर्ड इम्युनिटी के जो संकेत मिले हैं, वे भ्रामक हैं, क्योंकि कोरोना वायरस का नया वैरिएंट पिछले वैरिएंट से बनी एंटीबॉडीज की परवाह नहीं करता। फिर स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत में पहले जैसे ही है। यानी लहर आई, तो उसका बेहतर ढंग से मुकाबला होगा, इसकी संभावना नहीं है। विशेषज्ञों के मुताबिक फिलहाल सबसे दिलचस्प मामला केरल का है। वहां कोरोना का कहर थमता नहीं दिख रहा है। लेकिन जानकार केरल की हालत को लेकर ज्यादा चिंतित नहीं हैं।
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उन्होंने ध्यान दिलाया है कि छोटी आबादी वाले इस राज्य में टेस्टिंग की दर बड़े राज्यों की तुलना में तीन गुना ज्यादा है। फिर वहां स्मार्ट टेस्टिंग की जाती है, जिसमें संक्रमण के ज्यादा मामले वाले राज्यों में ज्यादा जांच होती है। इन कारणों से ज्यादा मामलों का सामने आना स्वाभाविक है। लेकिन गौरतलब है कि सीरो सर्वे के मुताबिक वहां की 42 फीसदी आबादी में ही संक्रमण के प्रभाव देखे गए। जब बड़े रज्यों में ये संख्या 79 प्रतिशत तक आई है। यानी केरल में जो मामले हुए हैं, उनमें ज्यादातर पकड़े गए हैँ। फिर बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण वहां मृत्यु दर 0.5 प्रतिशत के करीब है, जबकि बाकी देश में यह 1.2 फीसदी है। कहा जा सकता है कि इस रूप में केरल चिंता का विषय नहीं, बल्कि एक अनुकरणीय मॉडल पेश कर रहा है।
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कोरोना संक्रमण का हाल
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