बेबाक विचार

कोरोना काल में भी जनता हित नहीं!

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कोरोना काल में भी जनता हित नहीं!
मैं आज तक यह समझ पाने में असमर्थ हूं कि लोकतंत्र में कल्याणकारी सरकार होने का दावा करने वाली हमारी सरकार ऐसे कदम क्यों उठाती है जिससे लोगों को फायदा कम व नुकसान ज्यादा होता है। पिछले कुछ समय से जो कुछ हो रहा है उसे देखकर यही लगता है कि हमारे देश में ज्यादातर विभिन्न लॉबियों को फायदा पहुंचाने के लिए काम किए जाते हैं। मैं लंबे अरसे से सीएनजी गैस किट वाली कार चला रहा हूं। कुछ वर्ष पहले सरकार ने आदेश दिया कि हर कार में कनवर्टर जरुर लगाया जाना चाहिए। जगह—जगह पर लोगों को कार से उतार कर इसकी जांच की जाने लगी नहीं होने पर लोगों को परेशान किया जाता व उनका चालान काट दिया जाता। बाद में कुछ लोगों ने इसे चुनोती दी तो सरकार ने अदालत में स्वीकार किया कि वास्तव में इसकी कोई उपयोगिता नहीं थी। फिर सरकार ने नियम बनाया कि एक दशक से ज्यादा पुरानी पेट्रोल की गाड़ियों में किट नहीं लगायी जा सकेगी। इस पर मैंने दिल्ली के तत्कालीन परिवहन मंत्री अजय माकन से बात की व उनसे पूछा कि अगर आपका आइडिया प्रदूषण रोकना है तो आपने 10 साल से ज्यादा पुरानी कारों में यह किट लगाने पर रोक क्यों लगा दी क्योंकि मेरा मानना है कि पुरानी गाड़ी ज्यादा प्रदूषण फैलाती है व सीएनजी किट प्रदूषण फैलाने से रोकती है। उन्होंने मेरी बात मान ली व कुछ दिनों के अंदर एक आदेश जारी करके यह समय सीमा समाप्त कर दी। हाल ही में एक नया मामला तब सामने आया जबकि लगने लगा कि सरकार आम जनता के हित में नहीं बल्कि एक लॉबी के हित में ज्यादा काम कर रही है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दूसरी बार अपना यह आदेश वापस लेने से इंकार कर दिया जिसमें यह अपील की गई थी कि वह कोरोना महामारी के दौरान 15 साल पुराने वाहनों को सड़कों पर चलते रहने की इजाजत दे दे। कुछ साल पहले 2014 में एनजीटी ने पुरानी कारों पर यह प्रतिबंध लगा दिया था। इस संबंध में उसने परिवहन विभाग से कहा था कि वह सड़कों पर दौड़ने वाली इन कारों को जब्त कर लें। कुछ समय पहले एक वरिष्ठ नागरिक कमल सहाय ने एनजीटी से अनुरोध किया कि वह कोरोना महामारी को देखते हुए नवंबर 2014 में दिए गए अपने आदेश को रद्द करते हुए कोरोना महामारी के दौरान 15 साल पुरानी कार वाहनों को तब तक चलते रहने की अनुमति दे दे जब तक कि इस वायरस पर नियंत्रण नहीं कर लिया जाता। उनकी दलील थी कि कोरोना महामारी के दौरान लोगों के काम धंधे चौपट हो गए हैं व उनके पास नई गाड़ी खरीदने के लिए न तो वक्त है और न ही पैसा है। इन्हें बंद कर देने से लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। खासतौर से एनजीटी के इस आदेश से वरिष्ठ नागरिकों को काफी ज्यादा दिक्कत होगी मगर एनजीटी के अध्यक्ष जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने जाने माने पर्यावरणविद व जाने माने फोटोग्राफर कमल सहाय के इस याचिका को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि हम पहले भी इससे मिलती जुलती याचिकाएं ठुकरा चुके हैं। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने भी एनजीटी के फैसले को सही ठहराया है। मालूम हो कि 26 नवंबर 2014 को एनजीटी ने डीजल व पेट्रोल पर चलने वाली 15 साल पुरानी गाड़ियों पर रोक लगा दी थी। दो युवा वकीलों शान मोहन व तुषार गुप्ता ने याचिका दायरकर्ता की ओर से पेश होकर कहां कि जब तक यह महामारी फैलना जारी है तब तक एनजीटी से अपने इस आदेश पर छह माह के लिए रोक दे। शान मोहन व तुषार गुप्ता ने कहा कि जब सरकार खुद दलील दे रही है कि सार्वजनिक परिवहनों जैसे बस आदि से यात्रा करने से सतर्क रहे व टैक्सी आदि तक में सवारियों की संख्या तय कर रही हैं तो इस हालत में लोगों द्वारा अपने वाहनों का इस्तेमाल करना सबसे ज्यादा सुरक्षित माना जा सकता है। लोगों से यह अपील की जानी चाहिए कि वह अपनी कारों का प्रदूषण नियंत्रण कराए रखें व सार्वजनिक परिवहन से यात्रा करने से उनकी जान को खतरा बढ़ जाएगा क्योंकि संक्रमण की आशंका बढ़ जाएगी। इस आदेश से सबसे ज्यादा बुजुर्ग लोग प्रभावित होंगे। इस फैसले के बाद दबे स्वरों में यह चर्चा शुरु हो गई है कि इस आदेश के पीछे कार व दोपहिया वाहन तैयार करने वाले निर्माताओं की लाबी काम कर रही है। अगर यह रोक हटा दी जाती है तो उनका अरबों रुपए का धंधा प्रभावित होगा। मध्यम वर्ग कार कैसे अपने जीवन भर की जमा पूंजी बचाकर खरीदता है, यह सब जानते है। ऐसी हालत में कर्ज लेकर 15 साल पहले खरीदी कार को औने-पौने दाम पर कबाड़ी को बेच देने के लिए बाध्य कर देने का आदेश गले नहीं उतरता है। आंकड़े बताते हैं कि देश भर में लाखों की संख्या में 15 साल पुराने वाहन है जो कि बहुत अच्छी चलती फिरती स्थिति में है। ऐसे समय वाहनों को फिटनेस परीक्षण के बाद कोरोना समाप्त होने तक सड़कों पर चलाने की इजाजत दे दी जायी। यह देखने में आया है कि डीजल से चलने वाले ट्रकों की तुलना में पेट्रोल व डीजल से चलने वाली कारे काफी कम प्रदूषण फैलाती है। मगर इस आदेश के बाद पुरानी व्यवस्था लागू है। देश के किसी भी राज्य का परिवहन विभाग किसी पुराने वाहन को पकड़कर उसे उसी समय जब्त कर ले सकता है। सवारियों को सड़क पर धक्के खाने के लिए छोड़ देगा। इससे पहले दिल्ली सरकार ने आड व ईवन, कार नंबरों को सड़क पर चलने का फैसला किया व उसके कारण कई परिवारों ने आड या इवन नंबर की गाड़ियां खरीद लीं। फिर सरकार ने कहा कि सीएनजी वाहनों पर किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं रहेगा। मगर बाद में सरकार ने सीएनजी वाहनों के परिचालन पर प्रतिबंध लगा दिया था। ऐसे में यह साबित हो जाता है कि हमारी सरकारें जनता के हितों में फैसले लेने की जगह उन्हें परेशान करने वाले फैसले ज्यादा लेती है। क्या इ सरकारों को जन कल्याणकारी सरकारें कहना उचित होगा?
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