बेबाक विचार

सिर्फ कानून से नहीं

ByNI Editorial,
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सिर्फ कानून से नहीं
टास्क फोर्स की सिफारिशों में सबसे आसान शादी की उम्र बढ़ाने का फैसला है। इसके लिए सिर्फ एक बिल पारित कराना होगा। जबकि दूसरी सिफारिशों का दायरा बड़ा है। उसके लिए बजट और दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत होगी। लेकिन क्या बाकी उपायों पर अमल किए बिना इस मकसद को हासिल किया जा सकता है?   बेहतर होता कि सरकार पहले इस बात पर विचार करती कि आखिर आज भी देश में दहेज क्यों ली और दी जाती है। उसे इस पर भी गौर करना चाहिए था कि अब भी लाखों की संख्या में बाल विवाह क्यों होते हैँ। अक्षय तृतीया जैसे अवसरों पर हर साल क्यों ऐसी खबरें आती हैं कि लाखों कमउम्र बालिकाओं की शादी कर दी गई। लड़कियों की पहले से शादी की तय कानूनी उम्र 18 साल है। यानी इससे पहले उनका विवाह करना गैर कानूनी है। दहेज को तो दशकों पहले गैर कानूनी घोषित कर दिया गया था। तो प्रश्न है कि अगर से सामाजिक बुराइयां नहीं रुकीं, तो अब लड़कियों की शादी की कानूनी उम्र बढ़ा कर 21 साल कर देने से क्या हासिला होगा? गौरतलब है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 से बढ़ाकर 21 करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। फिलहाल देश में लड़कों की शादी की कानूनी उम्र 21 साल है। पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र बढ़ाने का जिक्र किया था। उसके पहले लेकर नीति आयोग में जया जेटली की अध्यक्षता में बने टास्क फोर्स ने इसकी सिफारिश की थी। Read also भाजपा के बिछाए जाल में राहुल टास्क फोर्स का गठन पिछले साल जून में किया गया था और इसने अपनी रिपोर्ट दिसंबर 2020 में दी थी। टास्क फोर्स का गठन मातृत्व की आयु से संबंधित मामलों, मातृ मृत्यु दर को कम करने, पोषण स्तर में सुधार और संबंधित मुद्दों में सुधार का सुझाव देने के लिए किया गया था। टास्क फोर्स ने सिफारिश की है कि महिलाओं की कानूनी शादी की उम्र बढ़ाने के निर्णय को सामाजिक स्वीकृति दिलाने के लिए एक व्यापक जन जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए। साथ ही दूर-दराज के क्षेत्रों में शैक्षणिक संस्थानों की स्थिति में सुधार और इन संस्थानों तक परिवहन सुविधाओं की व्यवस्था होनी चाहिए। लड़कियों की स्कूलों और विश्वविद्यालयों तक पहुंच आसान करने के उपाय किए जाने चाहिए। जाहिर है, टास्क फोर्स की सिफारिशों में सबसे आसान शादी की उम्र बढ़ाने का फैसला है। इसके लिए सिर्फ एक बिल पारित कराना होगा। जबकि दूसरी सिफारिशों का दायरा बड़ा है। उसके लिए बजट और दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत होगी। बेशक शादी में देरी का परिवारों, महिलाओं, बच्चों और समाज के आर्थिक- सामाजिक विकास पर सकारात्मक असर पड़ता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या बाकी उपायों पर सचमुच अमल किए बिना इस मकसद को हासिल किया जा सकता है?
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