ध्यान करें दुनिया में मुसलमानों की सर्वाधिक कुटाई कहां है? चीन के शिनजियांग प्रांत और उससे पहले रूस के चेचेन्या में! रूस के पुतिन और चीन के शी जिनफिंग का इस्लाम के साथ सलूक और उइगर व रूसी मुसलमानों की दुर्दशा के किस्से बहुत भयावह हैं। यूक्रेन की लड़ाई में भी हल्ला सुनने को मिला है कि चेचेन्या में बेरहमी से मारने वाली यूनिट यूक्रेन में है। एक तरफ यह रियलिटी तो दूसरी तरफ इस्लामी देशों की सालाना बैठक में चीन के विदेश मंत्री खास मेहमान! पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने वैश्विक पैमाने के दो शातिर दांव चले हैं। एक, संयुक्त राष्ट्र में इस्लामाफोबिया पर प्रस्ताव पारित करवाना। दो, इस्लामाबाद में 57 देशों के इ्स्लमी संगठन ओआईसी के विदेश मंत्रियों की सालाना बैठक में चीन की भागीदारी बनवाना। हिसाब से जो देश शिनजियांग में उइगरों का ब्रेनवॉश कर रहा है उस चीन की ओआईसी में भर्त्सना होनी चाहिए। उसकी बजाय क्या हुआ?
पहली बात जो इमरान खान ने कही– हम फिलस्तीनी और कश्मीर के लोगों के मामले में फेल हुए हैं। मुझे यह कहते हुए दुख होता है कि हम असर नहीं बना पाए... हम बंटे हुए और इस बात को वह (पश्चिमी) महाशक्ति जानती है।.... हम (मुसलमान) डेढ़ अरब लोग हैं लेकिन अन्याय को मिटवाने की हमारी आवाज को सुना नहीं जा रहा है।
इमरान खान ने एक तरह से आह्वान किया कि दुनिया के मुस्लिम देशों एकजुट हो और अपनी धुरी बनाओ और इस पर फिर चीन के विदेश मंत्री ने हौसला बढ़ाते हुए कहा कि हमने कश्मीर पर कई इस्लामी दोस्तों के आह्वान सुने और चीन दुनिया में बहुध्रुवीय व्यवस्था बनवाने के लिए इस्लामी देशों के साथ है। ओआईसी और चीन का इस तरह साझा बनाना इमरान खान की बड़ी सफलता है तो इस बात का प्रमाण भी कि शीतकालीन ओलंपिक और उससे पहले पुतिन-शी जिनफिंग और इमरान खान की मेल-मुलाकात में पश्चिमी देशों के खिलाफ आगे की नई विश्व व्यवस्था, एकजुटता का कूटनीतिक रोडमैप बना था। तभी शिनजियांग और उइगरों के मुद्दे को चीन ने भूलवा कर इस्लामी देशों की पंचायत में अपना रोल बनाया।
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ओआईसी की बैठक के बाद जारी प्रस्ताव में कश्मीर को लेकर भारत की आलोचना हुई। प्रस्ताव में कश्मीर के लोगों की रायशुमारी, मानवाधिकारों के हनन, अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 की समाप्ति के विरोध के वे तमाम पहलू शामिल हैं, जिन्हें लेकर पाकिस्तान विश्व मंचों पर हल्ला करता रहता है। उइगरों के दमन का जिक्र भी नहीं, जबकि कश्मीर को लेकर प्रस्ताव में कई पैरे।
इसके बाद चीनी विदेश मंत्री काबुल गए और अछूत तालिबानी नेताओं से बात करके उन्हें पटाया। ध्यान रहे पाकिस्तान और चीन लगातार तालिबानी सरकार की मान्यता की कूटनीति कर रहे हैं। अमेरिका और पश्चिमी देशों के अड़े होने के कारण ये सफल नहीं है। पश्चिमी देशों ने तालिबान के साथ उसके पैरोकार पाकिस्तान को भी सुनना बंद कर दिया है। यूक्रेन की लड़ाई के बाद चीन के साथ उसके एक के बाद एक सहयोग से पश्चिमी जमात को समझ आया है कि चीन के वैश्विक मिशन में इस्लामी देशों को गोलबंद करने में पाकिस्तान पुर्जा है। तय मानें चीन की सबसे बडी सामरिक-आर्थिक कॉलोनी मध्य एशिया, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान का भूभाग होगा, जिसमें पुतिन और इमरान खान उसके कंधे हैं।
राष्ट्रपति शी जिनफिंग और चीन ने मास्को, इस्लामाबाद और काबुल के हब से इस्लामी देशों और यूरेशिया में जो खेला बनाया है उसके जाल में यदि चीन के कहे अनुसार क्षेत्रीय स्थिरता के नाम पर भारत यदि तालिबानी सरकार से लेन-देन बनाता है तो वह आत्मघाती गलती होगी। तब भारत का क्वाड में रहना और न रहना भी बेमतलब बनेगा।
चीन का खेला, इस्लाम की धुरी!
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