politics of the opposition कांग्रेस अपना संकल्प पत्र पेश कर बताएं कि अलग-अलग मामलों में वह क्या करेगी। कांग्रेस कहे कि चीन ने भारत की जितनी जमीन कब्जा की है वह एक-एक इंच जमीन वापस लेगी। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री के पांच-दस उद्योगपति दोस्तों ने देश लूट लिया तो वे वादा करें कि लूट की वह पूरी रकम उन उद्योगपतियों से वसूल करेंगे। वे आरोप लगा रहे हैं कि राफेल विमान तीन गुनी कीमत पर खरीदा गया तो वादा करें कि वे राफेल बनाने वाली फ्रांस की दासो एविएशन से बढ़े हुए पैसे वसूल करेंगे। विपक्ष केंद्रीय कृषि कानूनों का विरोध कर रहा है तो उसे वादा करना चाहिए कि वह सत्ता में आने के बाद तीनों कानूनों को वापस लेगा।
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विपक्ष की पॉलिटिक्स क्या है? यह लाख टके का सवाल है। चुनावी राजनीति के किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले यह जानना जरूरी है कि विपक्ष की राजनीति क्या है! क्या विपक्षी पार्टियां सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध के एजेंडे पर राजनीति करेंगी या देश के सामने अपने शासन का कोई वैकल्पिक प्रारूप भी पेश करेंगी? भारत की राजनीति का यह जाना हुआ तथ्य है कि सिर्फ किसी नेता का विरोध करना चुनाव जीतने की गारंटी नहीं होती है। सत्ता में बैठे किसी नेता का विरोध करके विपक्षी पार्टियां या उसके नेता राजनीतिक स्पेस तो हासिल कर सकते हैं लेकिन सिर्फ इतने भर से सत्ता हासिल नहीं होती है।
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नेहरू के विरोध ने अनेक नेताओं को पहचान और विपक्ष में स्पेस दिलाया लेकिन वे नेहरू से सत्ता नहीं छीन सके। इंदिरा गांधी के विरोध ने भी कई नेताओं को पहचान दिलाई लेकिन वे नेता इंदिरा गांधी को हटा कर सत्ता नहीं हासिल कर सके। ध्यान रहे 1977 की जीत इंदिरा गांधी के विरोधी किसी नेता की पॉलिटिक्स की जीत नहीं थी, बल्कि वह देश की जनता की सामूहिक नाराजगी का प्रकटीकरण था, जो नाराजगी इंदिरा गांधी की गलतियों, इमरजेंसी की ज्यादतियों और संजय गांधी की मनमानियों से पैदा हुई थी। इस तरह की अनगिनत मिसालें राज्यों की राजनीति से दी जा सकती हैं। जब तक बिहार में सिर्फ लालू प्रसाद के विरोध की राजनीति होती रही तब तक उनको सत्ता से नहीं हटाया जा सका।
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अपने तीसरे चुनाव में जब नीतीश कुमार ने वैकल्पिक एजेंडा पेश किया तब जाकर उनको कामयाबी मिली। गुजरात में अभी तक भाजपा के खिलाफ कांग्रेस अगर कामयाब नहीं हुई है तो उसका कारण यह है कि कांग्रेस कोई वैकल्पिक एजेंडा नहीं पेश कर पाई है। वह सिर्फ नरेंद्र मोदी और अमित शाह का विरोध करती है। विरोध की यह राजनीति कांग्रेस को हमेशा मुख्य विपक्षी पार्टी बनाए रखेगी। अगर कांग्रेस को सत्ता में आना है तो उसे भाजपा की राजनीति के बरक्स अपना वैकल्पिक राजनीतिक एजेंडा पेश करना होगा। कह सकते हैं कि कांग्रेस अगर आक्रामक विपक्ष की भूमिका निभाए तो वह अपने आप भाजपा का विकल्प बनेगी। लेकिन ऐसा सोचना असल में एक भ्रम है।
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सरकार ने पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ा दिए या रसोई गैस के दाम बढ़ा दिए या खाने के तेल, दालों और दूध के दाम बढ़ गए या सरकार ने विपक्ष की जासूसी करा दी तो इनके खिलाफ प्रदर्शन करना, नारे लगाना, संसद नहीं चलने देना आदि गतिविधियां विपक्ष के रूप में राजनीति करने की बेसिक जरूरत है। अगर विपक्षी पार्टियां यह भी नहीं करेंगी तो क्या करेंगी! मनमोहन सिंह की सरकार के समय राजनाथ सिंह जैसे बड़े नेता भी महंगाई के विरोध में सड़क पर उतरते थे, स्मृति ईरानी रसोई गैस के सिलिंडर लेकर धरने पर बैठती थीं या डॉक्टर हर्षवर्धन सब्जियों की माला पहन कर घूमते थे, लेकिन अगर कोई सोचता है कि इसी वजह से भाजपा को सत्ता मिल गई तो वह मूर्खों के स्वर्ग में रहता है।
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इस तरह के प्रदर्शनों से सिर्फ विपक्ष की राजनीति में आपका स्थान पक्का होता है, सत्ता नहीं मिलती है। कांग्रेस की मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ महंगाई और भ्रष्टाचार को लेकर हुए आंदोलनों के मुकाबले यह एजेंडा ज्यादा कारगर रहा कि देश को एक ईमानदार सरकार की जरूरत है, जो देश की सुरक्षा भी सुनिश्चित करे और करदाताओं के पैसे का समुचित इस्तेमाल करते हुए महंगाई कम करे। 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने नारा दिया ‘बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार’! इस नारे में महंगाई पर तो सवाल उठाया गया था लेकिन साथ ही यह भरोसा भी दिया गया था कि मोदी सरकार बनी तो महंगाई कम होगी।
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क्या आज कांग्रेस या दूसरी विपक्षी पार्टियों के नेता कह रहे हैं कि उनकी सरकार बनी तो महंगाई कम कर देंगे! महंगाई बढ़ने के लिए मोदी सरकार को जिम्मेदार बताते हुए लोगों को यह भरोसा दिलाना होगा कि आप महंगाई से निजात दिलाएंगे। कांग्रेस पार्टी कहे कि उसकी सरकार बनी तो वह 111 रुपए लीटर के हिसाब से बिक रहे पेट्रोल को वापस 70 से 80 रुपए लीटर के दायरे में लाएगी। वह वादा करे कि केंद्र सरकार एक लीटर पेट्रोल पर जो 33 रुपया उत्पाद शुल्क वसूल रही है उसे वापस 10 रुपए लीटर पर लाया जाएगा। यह सिर्फ एक मुद्दे- महंगाई की बात है। दूसरे तमाम मुद्दों पर भी कांग्रेस अपना वैकल्पिक एजेंडा पेश कर सकती है।
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वह सरकार की विफलताओं पर श्वेत पत्र तैयार कराए, प्रधानमंत्री के दावेदार के तौर पर और बाद में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए वादों की सूची तैयार कराए और उन पर एक रिपोर्ट कार्ड बना कर पेश करे कि कौन-कौन से वादे अधूरे हैं। इसके साथ ही वह अपना संकल्प पत्र पेश करे कि इन मामलों में वह क्या करेगी। कांग्रेस कहे कि चीन ने भारत की जितनी जमीन कब्जा की है वह एक-एक इंच जमीन वापस लेगी। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री के पांच-दस उद्योगपति दोस्तों ने देश लूट लिया तो वे वादा करें कि लूट की वह पूरी रकम उन उद्योगपतियों से वसूल करेंगे।
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वे आरोप लगा रहे हैं कि राफेल विमान तीन गुनी कीमत पर खरीदा गया तो वादा करें कि वे राफेल बनाने वाली फ्रांस की दासो एविएशन से बढ़े हुए पैसे वसूल करेंगे। विपक्ष केंद्रीय कृषि कानूनों का विरोध कर रहा है तो उसे वादा करना चाहिए कि वह सत्ता में आने के बाद तीनों कानूनों को वापस लेगा। साथ ही यह भी बताना होगा कि किसानों की बेहतरी सुनिश्चित करने के लिए उसके पास क्या योजना है। विपक्ष को बताना होगा कि अगर आज 45 साल में सर्वाधिक बेरोजगारी है तो विपक्ष के पास उसे दूर करने और रोजगार के नए अवसर पैदा करने के लिए क्या योजना है।
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मनमोहन सिंह के समय कांग्रेस ने अधिकार आधारित योजनाएं लागू की थीं अब उसके आगे ऐसी योजनाओं के बारे में सोचना होगा, जिसकी जरूरत हर व्यक्ति महसूस कर रहा हो! सिर्फ नरेंद्र मोदी का विरोध करने या उनकी विफलता गिनाने से चुनाव जीतने की गारंटी नहीं हो सकती है। वे जिस विचारधारा को लेकर राजनीति कर रहे हैं या जिन नीतियों पर अपनी सरकार चला रहे हैं उनके बरक्स विपक्ष को एक वैकल्पिक राजनीतिक विचारधारा पेश करनी होगी और साथ ही शासन का नया एजेंडा पेश करना होगा। और सबसे बड़ी बात यह है कि अपनी वैकल्पिक विचारधारा और शासन के वैकल्पिक एजेंडे पर लोगों का भरोसा हासिल करना होगा।
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कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियां अगर अपने शासन वाले राज्यों में वैकल्पिक एजेंडे को लागू करके दिखाती हैं तो उससे लोगों का भरोसा बनेगा। कांग्रेस ने अगर पिछले लोकसभा चुनाव से पहले अपने घोषणापत्र में देश के हर गरीब को हर साल 72 हजार रुपए की नकद मदद देने की घोषणा की थी तो उसे राजस्थान, पंजाब और छत्तीसगढ़ में इस पर अमल करना चाहिए। अगर इन तीन राज्यों में गरीबों को हर महीने छह हजार रुपए की मदद मिलती है तो बिना प्रचार के यह बात पूरे देश में पहुंचेगी और तब कांग्रेस अगर पूरे देश में इसे लागू करने का वादा करती है तो लोग उस पर भरोसा करेंगे। अन्यथा खाली बातों से कोई बात नहीं बनने वाली है।
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लोगों ने कांग्रेस को सबसे बड़े विपक्षी दल के रूप में चुना है तो उस नाते यह उसकी जिम्मेदारी है कि वह केंद्र सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ आंदोलन करे, प्रदर्शन करे और संसद में सवाल उठाए। लेकिन अगर उसको सत्ता में आना है तो इतने भर से काम नहीं चलेगा। अभी कांग्रेस और दूसरी तमाम विपक्षी पार्टियां मंत्र की तरह इस बात का जाप कर रही हैं कि भाजपा दुश्मन नंबर एक है या नरेंद्र मोदी को हटाना प्राथमिक लक्ष्य है। लेकिन इसके लिए विपक्ष क्या कर रहा है? विपक्ष की एकजुटता का प्रयास करना एक कदम है। लेकिन उसके आगे लंबा रास्ता है, जिसके बारे में विपक्ष को गंभीरता से सोचना होगा।
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सिर्फ मोदी विरोध का एजेंडा नहीं चलेगा
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