लखीमपुर में किसान आंदोलन की घटना के राजनैतिक बवाल से फिर प्रमाणित है कि जब तक जेपी या अन्ना हजारे जैसा अराजनैतिक नेतृत्व नहीं उभरेगा तब तक न जन असंतोष में दम बनेगा और न विपक्ष एकजुट होगा। भाजपा और मोदी सरकार को लेकर मोहभंग है, असंतोष है, गुस्सा है, मुद्दे है, आंदोलन है लेकिन वह चुंबक नहीं है जिससे सब खींच कर एकजुट हो जाए। उस नाते ठिक इंदिरा गांधी के वक्त जैसी स्थिति है। जैसे इंदिरा गांधी के कभी हार नहीं सकने की हताशा में विपक्ष भटकता था वैसे ही मोदी राज में भटकता रहेगा। तभी विपक्ष का खेल बना जब जेपी की कमान बनी और विपक्ष में साझा हुआ। सोचे जब जेपी की कमान बनी थी तो उस एक घाट पर जनसंघ था, सोशलिस्ट थे, कम्युनिस्ट, गांधीवादी औप पुराने कांग्रेसी सभी थे। उससे पहले हर पार्टी और हर नेता अलग-अलग रास्ते पर था। वैसा ही आज है। Politics Congress Opposition Parties
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विपक्ष को चाहिए जेपी, अन्ना
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