बेबाक विचार

वाह! जिंदगी को क्या खूब परदे पर उतारा

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वाह! जिंदगी को क्या खूब परदे पर उतारा
फिल्म पैरासाइट खत्म होने के कोई घंटे पहले का दृश्य है- एक स्कूल का जिम, जो सौ पुरुषों और महिलाओं से भरा है, पर बेजान, उदासीन भाव-भंगिमा के साथ। इसी में की-ताएक (पिता) बहुत लापरवाह और भावहीन अंदाज में एक बड़ा सवाल उठाता है। वह कहता है- ‘ की-वू, तुम्हें पता है कि किस तरह का प्लान, योजना कभी बेकार नहीं जाती? जो योजना ही नहीं हो। पता है तुम्हें क्यों ? यदि आप कोई प्लान, योजना बनाते हैं तो उस माफिक जिंदगी बन ही नहीं पाती!(Ki-woo, you know what kind of plan never fails? No plan at all. You know why? If you make a plan, life never works out that way.) पिता ने अपने मरियल-से बेटे में एक भरोसा पैदा करते हुए यह कहा था।लेकिन सोचे की-ताएक की छोटी और सामान्य-सी बातइक्कीसवीं सदी की जिंदगी का क्या लबोलुआब नहीं है?  क्या आज के जीने के तरीके का सार नहीं? ऑस्कर पुरस्कारों में रिकार्ड बनाने वाली फिल्म ‘पैरासाइट’ जीवन की असलियत से वाकिफ कराने वाली फिल्म है। लगता है मानों जीवन परदे पर उतरा है। यह एक ऐसी फिल्म है जो हम में से हरेक के जीवन से किसी न किसी रूप में हास्यास्पद, अजीब तरीके से जुड़ी हुई है। पैरासाइट के निर्देशक बोंग जून हो ने ऐसी फिल्म बनाई है जो जिंदगी का आईना है। आज की भौतिकवादी दुनिया में हम कैसे रह रहे हैं, क्या सोचते हैं, क्या करते हैं, जीने के लिए क्या नहीं करना पड़ता है और अंत में इन सबका नतीजा क्या रहता है, उस सबको यह इस फिल्म बखूबी दर्शाती है। सच्चाई है कि हम एक ऐसी भौतिकवादी दुनिया में रह रहे हैं जो हमने खुद बनाई है, खुद ही जरूरतें और इच्छाएं पैदा करते हैं, और तृष्णाएं बढ़ती ही जा रही है। यानी दुनिया को हम ही तो और भौतिकवाद की ओर ले जा रहे हैं। पैरासाइट फिल्म बाड़े माफिक बंद किम की-ताएक के परिवार की जिंदगी की कहानी है। परिवार शहर के बाहर एक निम्नवर्गीय बस्ती में छोटे-से घर में रहता है। परिवार में उसकी पत्नी चुंग-सूक, बेटा की-वू, और बेटी की-जेओंग हैं। यह एक ऐसा आदर्श परिवार है जो तंगहाली में भी एकजुट, जिसमें अपनी गरीबी को मजे से, स्वांग रचते हुए जीने की क्षमता है और साथ ही अमीर पार्क दोंग-इक के परिवार में घुल मिलने की देशज कला में निपुण है। पार्क का परिवार काफी अमीर है, उसके परिवार में पत्नी येओन-ग्यो, बेटी दा-हे और बेटा दा-सोंग हैं। अमीर परिवार और गरीब परिवार का अनुभव ही दरअसल इस फिल्म का लाजवाब लहजा है। किम के गरीब परिवार के ठीक उलट, अमीर पार्क के पास इस भौतिकवादी दुनिया की सारी चीजें हैं, बड़ा आलीशान मकान, कारें, एशो-आराम की सारी चीजें। लेकिन घर में सब अलग-अलग हैं, किसी का किसी से कोई वास्ता नहीं। हर आदमी अपने में जी रहा है। अलग-अलग जीते हुए, व्यक्तिवादी एकलो का साथ जीना। अमीर का ऐसे जीना और अथाह पैसे से बनी अनुभवहीनता, भोलापन में गरीब किम के लिए पार्क के परिवार में घुसने का रास्ता बनाना, सबकुछ इस तरह फिल्म में है कि दशर्क परस्पर व्यवहार पर सोचता ही रह जाता है, आसानी से सब कुछ बदलता चला जाता है।एक क्रेजी फिल्म गंभीर फिल्मबन जाती है। पैरासाइट एक डार्क कॉमेडी (चुभने वाला हास्य) फिल्म है जो शुरू तो बहुत ही मजाकिया अंदाज में होती है, लेकिन आधी फिल्म के बाद से इसका अंत बहुत ही त्रासद होता है। जैसे शेक्सपीयर के नाटकों में अंत त्रासदी भरे रहे हैं, वैसे ही यह फिल्म इक्कीसवीं सदी की त्रासदी को बयां करती है। बोंग जून हू ने आज की दुनिया, समाज के, सभी समाजों में सामाजिक संबंधों को चित्रित करने वाले नाटक को बहुत ही कुशलता के साथ फिल्म में उतारा है। हाल के वक्त में ऐसी कोई फिल्म याद नहीं आती जो आपसे हर स्तर पर संवाद करती हो, जो हर स्तर पर सामाजिक रिश्तों का तार-तार विश्लेषण करती हो। पैरासाइट ऐसी फिल्म है जिसे आप अपने निजी जीवन से भी जोड़ कर देख सकते हैं, खासतौर से भावनाओं और संवेदनाओं के संदर्भ में। पैरासाइट कोरियाई फिल्म है और बावजूद इसके दुनिया में धूम है तो जाहिर है भाषा को लेकर बाधा नहीं है। इसका हर दृश्य ऐसा है जो आपको भीतर ही सब कुछ कह देता है, आपकी अपनी भाषा में ही जहन में उतरता चला जाता है। बोंग जून के काम की यही सबसे बड़ी खूबी है। पूरी फिल्म में हर किरदार ने पूरे दमखम के साथ अभिनय किया है जो अमिट छाप छोड़ने वाला है। फिल्म के पात्र मजाकिया हैं, जो हास्य के साथ दुविधा भी पैदा करते हैं। एक ऐसा सिलसिला चल निकलता है जिसमें दर्शक हांफते भी हैं, उठते भी हैं। पैरासाइट में निर्देशक ने मन के मनोविज्ञान को पूरी तरह से उघाड़ कर रख दिया है। फिल्म में हर दृश्य, क्रिया-प्रतिक्रिया चौंकाएं बिना रहती। लेकिन निरर्थकता कहीं नजर नहीं आती।पैरासाइट के पात्रों की खूबी यह है कि वे अपने अभिनय से दर्शकों को खींच लेते हैं। हर पात्र के अभिनय में गंभीरता, गहराई और गरिमा है। अगर मूर्खता भी दिखाई गई है तो सलीके से। पैरासाइट को इस बार ऑस्कर मिला और इसके निर्माता-निर्देशक बोंग को इस सदी का सबसे बड़ा कामयाब निर्देशक इसीलिए कहा गया कि उन्होंने बहुत ही खूबसूरती और साफगोई से जीवन की सच्चाई को परदे पर उतारा। बोंग ये बताने में सफल रहे हैं कि भौतिकवादी जीवन की असलियत क्या है और असल जीवन क्या है। आज बोंग जून की जिस कामयाबी की चर्चा चारों ओर हो रही है, इस पर कुछ साल पहले ग्रहण लग गया था। 2013 से 2017 तक दक्षिण कोरिया में पार्क गुएन-हे की सरकार में अधिकारियों ने राजनीति की वजह से उन पर सख्त प्रतिबंध लगा दिए थे। सरकार से काम के लिए पैसा मिलना बंद हो गया था और उन्हें सरकार ने एक तरह से काली सूची में डाल दिया था। अपने कई साक्षात्कारों में बोंग जून ने उन दिनों को ‘दुस्वप्न’ करार दिया है। लेकिन आज वे इसे भुला भी चुके हैं। दस फरवरी को उन्हें दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जाए-इन ने ऑस्कर की जीत पर बधाई संदेश भेजा। हो सकता है कि उन्होंने जीवन की कोई योजना बना ली होती तो आज वे अपने जीवन की इस अदभुत यात्रा का मजा नहीं ले पाते और न ही अपने राष्ट्र के नायक बन पाते।
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