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एक अकेला अदानी सब पर भारी!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गलत कहा। गुरूवार को राज्यसभा में विपक्ष की ‘मोदी-अदानी भाई-भाई’ की नारेबाजी पर उनका स्टैंड सही नहीं था। ‘देश देख रहा है कि एक अकेला कितनों पर भारी पड़ रहा है’ की बजाय उन्हें कहना था दुनिया देख रही है कि दो भाई उनके लिए कितने भारी हैं। एक विश्व नेता और दूसरा विश्व सेठ! पर खेद की बात जो लोकसभा और राज्यसभा दोनों में किसी भी भाजपा नेता ने ‘न्यू इंडिया’ के वैश्विक गौरव का बखान करना तो दूर मोदी-अदानी में भाईचारे की पुष्टि भी नहीं की। क्यों नहीं प्रधानमंत्री मोदी ने डंके की चोट कहा कि हां, हिंदूशाही की उपलब्धि है गौतम का दुनिया का जगत सेठ बनना। यदि उनके राज से अदानी दुनिया के खरबपतियों को पछाड़ कर जगत के सेठ बने हैं तो ऐसा होना भारत की विश्वगुरूता है!

सोचें, मोदी ने संसद में कहा देश देख रहा है कि मैं एक अकेला विपक्ष के लिए भारी पड़ रहा हूं। जबकि गौतम अदानी पूरे विश्व के लिए इतने भारी पड़े कि एक अमेरिकी कंपनी हिंडनबर्ग को वे कॉरपोरेट इतिहास के सबसे बड़े ठग समझ आए। क्या यह विदेशियों की हताशा नहीं? साजिश नहीं जो भारत के नंबर एक खरबपति को, हिंदू राज के जगत सेठ को ठग करार दिया जा रहा है!

अब जब वैश्विक पैमाने पर ऐसा भूचाल है तो भारत में भला कैसे संभव जो यह नहीं माना जाए कि एक अकेला अदानी सब पर भारी। दिल्ली सत्ता पर भारी। सत्ता की गद्दी पर बैठे राजा नरेंद्र मोदी पर भारी तो देश की राजनीति, धर्म, समाज और जन जीवन सब पर भारी! हिंदुओं के इतिहास का सत्य है कि सभी लक्ष्मीजी के पुजारी हैं। बुद्धि, सत्य, सरस्वती तथा शक्ति की तमाम देवियां पीछे और धनलक्ष्मी सर्वप्रथम, सर्वोपरि। गौतम अदानी यदि भारत के कुबेर हैं तो वे सबके मालिक भी हैं। वे नरेंद्र मोदी के भी मालिक हैं। ईडी-सीबीआई के मालिक हैं। मोदी का नाम दस साल बाद शायद ही कोई ले लेकिन गौतम अदानी का नाम हिंदू तब तक याद रखेंगे जब तक सूरज-चांद रहेगा।

इस बात को जरा धीरूभाई अंबानी के बनाए गए अंबानी ग्रुप से समझें। इंदिरा गांधी के राज में एक वाणिज्य राज्य मंत्री कश्मीरी कासिम थे। उनसे धीरूभाई अंबानी ने पहली आयात अनुमति ली। धीर-धीरे प्रणब मुखर्जी और इंदिरा गांधी के दत्तक पुत्र से हो गए। उनका विकास देश का विकास। उनका पैसा मेरा पैसा। मतलब दिल्ली सल्तनत के हिंदू इतिहास में पहले से जो चला आ रहा है उसी की पंरपरा में धीरूभाई ने चांदी की जूतियों के नजराने से एपांयर बनाया तो इंदिरा गांधी और प्रणब से लेकर धवन तक के उनके तमाम दरबारी सोचते थे अंबानी तो हमारे सगे। लेकिन जगत सेठ हुए नहीं कि दिल्ली की हुकूमत को नचाने लगे और पिछले दस सालों में याद करें कि कोई अंबानी कभी सोनिया, प्रियंका या राहुल गांधी से कभी चौड़े-धाड़े मिला?

भारत के सेठ और खास कर जैन, गुजराती सेठों का एकमेव नशा पैसा और धंधा है। उन्हें पता होता है भारत का हर राजा, बादशाह, गवर्नर-जनरल नजराने, पैसे से खरीदा जाता रहा है। इसलिए पैसा असल मालिक है बाकी सब उसके सेवादार।

और यह सत्य गौतम अदानी बनाम नरेंद्र मोदी के रिश्ते पर भी लागू है। मैंने हिंडनबर्ग रिपोर्ट के आने के तुरंत बाद के कॉलम में ही लिख दिया था कि अदानी का बाल बांका नहीं होगा। इसलिए क्योंकि पैसा किस पर भारी नहीं है? इंदिरा गांधी से नरेंद्र मोदी के भारत सफर का फर्क यह है कि पहले राजनीति के लिए सत्ता का दुरूपयोग था अब राजनीति के अलावा धन के लिए भी सत्ता का दुरूपयोग है। पहले राजनीति से वोट लिए जाते थे अब धन से वोट खरीदे जाते हैं। पहले राजनीति और वैचारिकता के आग्रह में विरोधी राज्य सरकारों को गिराने के लिए अनुच्छेद 356 का दुरूपयोग था अब पैसे से, पैसे के लिए नेताओं की खरीद फरोख्त की मंडी लगती है। पहले फिर भी कुछ नैतिक मूल्यों, चारित्रिक बल और वैचारिक आग्रह में लूट-मुनाफाखोरी-शोषण के हवाले धनपतियों से नफरत थी, दूरी का दिखावा होता था जबकि अब उन्हें भारत रत्न से नवाजा जाता है। हां, धीरूभाई भले जगत सेठ हो गए लेकिन इंदिरा, राजीव या वाजपेयी, मनमोहन सिंह ने उन्हें किसी बड़े पुरस्कार से नहीं नवाजा। मगर नरेंद्र मोदी ने धीरूभाई को पद्म विभूषण से नवाजा तो वजह यह गुजराती की धंधे की तासीर, धंधा और धन से सब कुछ खरीदे जा सकने की दिमागी सोच है। पैसा ही सब कुछ है। पैसे से सत्ता पाई जा सकती है, पैसे से भक्त बनाए जा सकते हैं। मीडिया खरीदा जा सकता है। वोटों की मशीन, नैरेटिव बनाया जा सकता है। मनचाहे जिसे सत्ता पर बैठाया जा सकता है उसे हटाया जा सकता है। प्रजा को, देश को गुलाम बनाया जा सकता है।

यह हकीकत भारत का अनुभव है। याद हो आती है जैन स्थानकवासी एक जगत सेठ की। वे भी अपने वक्त पर पैसे के बस से सब पर भारी थे। सो, जो 360 साल पुराना जगत सेठ का फॉर्मूला वही मौजूदा वक्त के जैन स्थानकवासी गौतम अदानी का फार्मूला। इसलिए देश और खासकर विपक्ष को मान लेना चाहिए कि कितना ही शोर करें गौतम अदानी का बाल बांका नहीं होगा। वे सन् 2023 में उन्हीं जगत सेठ के अवतार हैं, जिसने एक वक्त चाहे जो किया। मुगल दरबार में मनमानी की तो बंगाल-बिहार-ओड़िशा के सूबेदारों से लेकर अंग्रेज लार्ड क्लाइव से हर संभव उल्लू साधा। हिंडनबर्ग का फालतू सवाल है कि अदानी की हेराफेरी में फलां चाइनीज का क्या मतलब? आखिर भारत के धंधे में आज चाइनीज जब हावी है तो अदानी का वह क्यों न पार्टनर हो? जगत सेठ ने अपने वक्त में जब अंग्रेज से साठगांठ बनाई हिंदुस्तानियों को अंग्रेज आश्रित, उनका गुलाम बनाया था तो वैसे ही मौजूदा वक्त दुनिया में चाइनीज मंसूबों का है तो जगत सेठ तो सबसे धंधा बनाएगा। वह भला अपने साम्राज्य के विस्तार में देश की सीमा, राष्ट्र धर्म में ही क्यों सोचे!

संभव है आप मेरी विवेचना से असहमत हों। लेकिन हिंदुओं के सेठों (भामाशाह जैसे कुछ अपवादों को छोड़ें) का पहला धर्म सत्ता की जी हुजूरी से धन कमाने का है। उसके बाद फिर राष्ट्र, बुद्धि, सत्य से पुरुषार्थ के धर्म हैं। इसलिए यह मान लें कि मोदी राज के जगत सेठ अदानी हैं तो वे हम सब पर भारी हैं। वे एक अकेले सबके मालिक! भारत में वे जो चाहेंगे होगा।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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