राहुल गांधी और महुआ मोइत्रा ने कुछ ठोस सवाल पूछे हैं। बेहतर नजरिया यह होता कि इन प्रश्नों के ठोस जवाब देश के सामने प्रस्तुत किए जाते। लेकिन- जैसाकि सत्ताधारी दल और उसके समर्थक इकॉ-सिस्टम का तरीका रहा है- उन्होंने जवाबी आरोपों की झड़ी लगा दी है।
देश-दुनिया में बहुत सी बातें अनुभवजन्य होती हैं। उनके कोई लिखित सबूत नहीं होते, लेकिन इनसान उसमें इसलिए भरोसा करता है, क्योंकि उसके पास ऐसा करने के कारण होते हैँ। इसी तरह कई मामलों में साक्ष्य ठोस नहीं, बल्कि परिस्थितिजन्य होते हैँ। ऐसे सबूतों को तो न्यायिक निर्णयों में भी अहमियत दी जाती है। राहुल गांधी ने लोकसभा में दिए अपने भाषण में गौतम अडानी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रिश्तों और अडानी साम्राज्य खड़ा होने के पीछे उसके हाथ की जो लंबी चर्चा की, वह अनुभवजन्य और परिस्थितिजन्य चर्चाओं के आधार पर ही की। उन्होंने जो कहा, उसमें कोई नई बात नहीं है। बल्कि न सिर्फ आम चर्चाओं, बल्कि देशी-विदेशी मीडिया में भी उनकी बात होती रही है। अब जबकि अडानी घराने के ऊपर हिंडनबर्ग रिपोर्ट से कई गंभीर आरोप सामने आए हैं और देश की विनियामक संस्थाओं पर गंभीर प्रश्न खड़े हुए हैं, तो जाहिर है, उन चर्चाओं ने भी गंभीर रूप ले लिया है। राहुल गांधी या महुआ मोइत्रा ने इन्हें ही सिलसिलेवार ढंग से सदन में रखा है।
दोनों ने प्रधानमंत्री और सरकार कुछ ठोस सवाल पूछे हैं। बेहतर नजरिया यह होता कि इन प्रश्नों के ठोस जवाब देश के सामने प्रस्तुत किए जाते। लेकिन- जैसाकि सत्ताधारी दल और उसके समर्थक इकॉ-सिस्टम का तरीका गुजरे वर्षों में रहा है- उन्होंने जवाबी आरोपों की बौछार लगा दी है। महुआ मोइत्रा ने सदन में कहा कि सोशल मीडिया पर उन्हें एक अमेरिकी बैंक, चीन और यहां तक कि अंबानी का एजेंट बताया जा रहा है। राहुल गांधी का भाषण भी खत्म होते ही उन पर जवाबी हमलों की झड़ी लगा दी गई। लेकिन सरकार और सत्ता पक्ष को यह समझना चाहिए कि विपक्ष की छवि नष्ट करने से वे सवाल गायब नहीं होंगे, जो उसकी तरफ से उठाए गए हैँ। इससे सत्ता पक्ष अपने समर्थक जमात को टॉकिंग प्वाइंट्स मुहैया करा सकता है और अपने संभावित चुनावी नुकसान को सीमित कर सकता है, लेकिन ऐसे तरीकों से हिंडनबर्ग रिपोर्ट से भारतीय कारोबार जगत को लेकर दुनिया भर में जो संदेह पैदा हुआ है, उस साये को छांटना संभव नहीं होगा।