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जासूसी का दूसरा पहलू

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जासूसी का दूसरा पहलू
pegasus phones of journalists : सरकारी जासूसी को लेकर आजकल भारत और दुनिया के कई देशों में जबर्दस्त हंगामा मच रहा है। पेगासस के संयंत्र से जैसी जासूसी आजकल होती है, वैसी जासूसी की कल्पना आचार्य कौटिल्य और निकोला मेकियाविली (इतालवी चाणक्य) कर ही नहीं सकते थे। उन दिनों न टेलिफोन होते थे और न केमरे। मोबाइल फोन और कंप्यूटर की तो कल्पना भी नहीं थी। लेकिन जासूसी होती थी और बाकायदा होती थी। कई-कई तरीकों से होती थी। जिनकी जासूसी होती थी, उनके पीछे लोगों को दौड़ाया जाता था, उनकी बातों को चोरी-छिपे सुना जाता था, उनके घरेलू नौकरों को पटाया जाता था, उन्हें फुसलाने के लिए वेश्याओं का इस्तेमाल भी किया जाता था लेकिन आजकल जासूसी करना बहुत आसान हो गया है। Read also लव जिहादः 16 साल की किशोरी के साथ बहला-फुसला कर की शादी, शारीरिक शोषण और पहले से शादीशुदा होने का भी आरोप.. pegasus hacking case जिसकी जासूसी करना हो, उसके कमरे में, उसके कपड़ों पर या उसकी चीजों पर माइक्रोचिप फिट कर दीजिए। आपको सब-कुछ मालूम पड़ जाएगा। टेलिफोन को टेप करने की प्रथा तो सभी देशों में उपलब्ध है लेकिन आजकल मोबाइल फोन सबका प्राणप्रिय साधन बन गया है। वह चौबीसों घंटे साथ रहता है। माना जाता था कि जो कुछ व्हाट्साप पर बोला जाता है, वह टेप नहीं किया जा सकता है। इसी प्रकार ई-मेल की कुछ सेवाओं के बारे में ऐसा ही विश्वास था लेकिन अब इस्राइल पेगासस-कांड ने यह भ्रम भी दूर कर दिया है। जो कुछ सेटेलाइट और सूक्ष्म केमरों से रिकार्ड किया जा सकता है, उससे भी ज्यादा पेगासस- जैसे संयंत्रों से किया जा सकता है। 15 year old hacker arrested : Read also देश की ‘पहली ट्रांसजेंडर RJ’ का शव घर से बरामद, विधानसभा चुनाव में पर्चा भरने वाली भी पहली… पेगासस को लेकर दुनिया के दर्जनों देश आजकल परेशान हैं। कई राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी इसकी पकड़ में जकड़ गए हैं। उनकी गोपनीय गतिविधियां और एकदम निजी जिंदगी भी उजागर हो गई हैं। अब से 52 साल पहले जब मैं पहली बार विदेश गया तो हमारे राजदूत ने पहले ही दिन जासूसी से बचने की सावधानियां मुझे बताईं। अपनी दर्जनों विदेश-यात्राओं में मुझे जासूसी का सामना करना पड़ा। अमेरिका, रूस, चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में एक से एक मजेदार और हास्यास्पद अनुभव हुए। pegasus phones of journalists : मेरे घर आनेवाले विदेशी नेताओं और राजदूतों पर होने वाली जासूसी भी हमने देखी। विदेशी सरकारें हम पर जासूसी करें, यह तो समझ में आता है लेकिन हमारी अपनी सरकारें जब यह करती हैं तो लगता है कि या तो वे बहुत डरी हुई हैं या फिर वे लोगों को डरा-धमकाकर अपनी दादागीरी कायम करना चाहती हैं। ऐसा करना नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का हनन है। लेकिन यदि जासूसी सघन और सर्वव्यापक हो जाए तो उसका एक फायदा शायद यह भी हो जाए कि जो लोग चोरी छुपे गलत काम करते हैं वे वैसा करना बंद कर दें। उन्हें पता रहेगा कि उनका कोई गलत काम, अनैतिक या अवैधानिक, अब छिपा नहीं रह पाएगा।
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