पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक देश में 2019-20 के मुकाबले महामारी के पहले साल यानी 2020-21 में बेरोजगारी में गिरावट आई। 2019-20 में बेरोजगारी दर 4.8 थी। 2020-21 में यह गिर कर 4.2 पर आ गई थी। क्या सहज ही आपको इस बात पर यकीन होगा?
रोजी-रोटी के बुनियादी मामलों पर सरकारी आंकड़े किस तरह गलत तस्वीर पेश करते हैं, उसकी एक मिसाल देखिए। पिछले दिनों आए राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस) के आंकड़ों के मुताबिक देश में 2019-20 के मुकाबले महामारी के पहले साल यानी 2020-21 में बेरोजगारी में गिरावट आई। 2019-20 में बेरोजगारी दर 4.8 थी। 2020-21 में यह गिर कर 4.2 पर आ गई थी। क्या सहज ही आपको इस बात पर यकीन होगा? जिन लोगों को रोज जमीनी हालात से रू-ब-रू होना पड़ता है, वे इस बात को सुन कर दांतों तले अंगुलियां ही चबा सकते हैँ। मगर अब इन आंकड़ों की सच्चाई जानिए। इनका असल मतलब है इस अवधि में जितने लोग रोजगार ढूंढ रहे थे, उनमें से सिर्फ 4.2 प्रतिशत को रोजगार नहीं मिला।
गौरतलब है कि लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट (एलएफपीआर) सर्वे से सामने आया था कि ये दर 39.3 प्रतिशत है। इसका अर्थ यह है कि रोजगार योग्य उम्र (15 से 59 साल) के बीच 40 फीसदी से भी कम लोग रोजगार की तलाश में हैं। स्पष्टतः इनमें ज्यादा संख्या उन लोगो की है, जिन्होंने सम्मानजनक रोजगार पाने की उम्मीद छोड़ दी है और इस कारण खुद को रोजगार बाजार से अलग कर लिया है। सरकारी आंकड़े अभी तक सामने आए अन्य सभी आंकड़ों के बिलकुल विपरीत है। अभी तक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जितनी भी समीक्षा हुई है, उसमें यही सामने आया है कि महामारी के पहले साल में लाखों लोगों का रोजगार छिन गया। विश्व बैंक के मुताबिक तो भारत में बेरोजगारी दर आठ प्रतिशत पर पहुंच गई थी। विश्व बैंक के आंकड़ों में भारत में बेरोजगारी दर 2019 में 5.3 प्रतिशत पर और 2021 में छह प्रतिशत पर दर्ज है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के डेटाबेस पर आधारित सेंटर फॉर इकनॉमिक डाटा एंड एनालिसिस की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में भारत की बेरोजगारी दर बढ़ कर 7.11 प्रतिशत हो गई थी। सेंटर के अनुसार 2019 में बेरोजगारी दर 5.27 प्रतिशत थी।
बेरोजगारी पर गौर कीजिए
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