बेबाक विचार

बधाई हो! पेट्रोल सौ रुपए का हुआ

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बधाई हो! पेट्रोल सौ रुपए का हुआ
मजबूत लोगों की डिक्शनरी में नामुमकिन शब्द नहीं होता है। उनके होते सब कुछ मुमकिन होता है। जैसे मोदी के मजबूत शासन में देश में सौ रुपए लीटर पेट्रोल मुमकिन हुआ। वरना कहां पेट्रोल की कीमत इतनी पहुंचती! मनमोहन सिंह के कमजोर राज में तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 110 डॉलर प्रति बैरल पहुंच जाने के बाद भी देश में पेट्रोल की कीमत 82 रुपए लीटर से ऊपर नहीं गई थी। आज अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 63 डॉलर प्रति बैरल है और देश में पेट्रोल की कीमत एक सौ रुपए लीटर पहुंच गई, मजबूत शासन नहीं होता तो यह थोड़े मुमकिन था! सचमुच बुधवार 17 फरवरी 2021 की तारीख इतिहास में दर्ज होने वाली है। सुबह छह बजे जैसे ही सरकारी तेल कंपनियों ने पेट्रोल और डीजल दोनों की कीमतों में 25-25 पैसे की बढ़ोतरी का ऐलान किया वैसे ही राजस्थान के गंगानगर में साधारण पेट्रोल की कीमत एक सौ रुपए की सीमा पार कर गई। देश के कई और शहरों में अगले एकाध हफ्ते में पेट्रोल की कीमत सौ का आंकड़ा पार कर लेगी। सोचें, क्या ऐतिहासिक बात होगी! यह हर भारतीय को गर्व से भर देने वाला क्षण है कि भारत के पड़ोस में सारे तुच्छ देश 50-60 रुपए प्रति लीटर की दर पर पेट्रोल बेच रहे हैं और भारत में पेट्रोल की कीमत ने शतक लगा लिया। सोचें, जो देश 50-60 रुपए लीटर पेट्रोल बेच रहे हैं वे क्या खाक विकास करेंगे? दुनिया के विकसित देशों में भी विकास रुक गया लगता है तभी उनके यहां पेट्रोल की कीमत बढ़ने की बजाय घट रही है। दुनिया में सबसे विकसित देश होने का दावा करने वाले अमेरिका में ठीक एक साल पहले की तुलना में आज साढ़े सात फीसदी सस्ता पेट्रोल मिल रहा है। चीन में एक साल पहले की तुलना में साढ़े पांच फीसदी और ब्राजील में साढ़े 20 फीसदी सस्ता पेट्रोल मिल रहा है। इसका मतलब है कि उनके यहां विकास की गति रूक गई है। जिस तरह से बकौल प्रधानमंत्री ‘दुनिया के देश कोरोना वायरस से लड़ने और स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर बनाने में भारत से प्रेरणा ले रहे हैं’ वैसे ही उन्हें विकास के मामले में भी भारत से प्रेरणा लेनी चाहिए। प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी के नेता बिल्कुल ठीक कहते हैं कि कांग्रेस के 60 साल के राज में देश में कुछ नहीं हुआ। कांग्रेस की सरकारों ने तो पेट्रोल-डीजल की कीमत डिस्प्ले करने वाली मशीनें भी इतनी बेकार बना रखी हैं कि उनमें तीन अंकों में दाम दिखाने की सुविधा ही नहीं है। अब जब साधारण पेट्रोल की कीमत एक सौ रुपए प्रति लीटर पहुंच गई है तो पेट्रोल पंपों पर कीमत कैसे डिस्प्ले होगी? पंप मालिकों को नई मशीनें लगानी होंगी या मशीनों में बदलाव करना होगा ताकि तीन अंकों की कीमत दिखाई जा सके। कांग्रेस के पिछड़े नेताओं को पता ही नहीं था कि एक दिन इतना विकास होगा कि पेट्रोल की कीमत सौ रुपए से ऊपर चली जाएगी और तब तीन अंक में दाम दिखाने वाली मशीनों की जरूरत पड़ेगी! सौ रुपए से ऊपर की कीमत दिखाने के लिए नई डिस्प्ले मशीनें लगानी होंगी! तो क्या हो गया? नोटबंदी के बाद क्या देश भर की एटीएम मशीनों में बदलाव नहीं किया गया था? जब नए नोट आए और उनका आकार छोटा किया गया तो सारे एटीएम मशीनों में नोट रखने वाली कैसेट्स बदली गई थीं ताकि छोटे नोट उसमें रखे जा सकें। जैसे छोटे नोटों के लिए एटीएम में बदलाव किया गया उसी तरह पेट्रोल की बड़ी कीमत के लिए डिस्प्ले मशीनों में बदलाव कर दिया जाएगा। यह कोई बड़ी बात नहीं है। विकास की इतनी मामूली कीमत चुकाने के लिए देश हमेशा तैयार है। आखिर विकास बड़ी चीज है या पेट्रोल की कीमत और मशीनों का डिस्प्ले बड़ी चीज है! भारत विश्व गुरू बनने की दहलीज पर है और तुच्छ लोग पेट्रोल की कीमत बढ़ने या मशीन के डिस्प्ले जैसी छोटी चीज की शिकायत में लगे हुए हैं! ब्रांडेड पेट्रोल की कीमत तो सौ रुपए की सीमा पहले ही पार चुकी थी, बुधवार को जब साधारण पेट्रोल की कीमत सौ रुपए से ज्यादा होने की खबर आई तो अचानक उन पुराने और पिछड़े आंदोलनजीवियों की तस्वीरें आंखों के सामने आ गईं, जो पहले पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने पर आंदोलन किया करते थे। उन्हें पता ही नहीं था कि विकास किसे कहते हैं और वह होता कैसे है? तभी तो पेट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमत का विरोध करने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी बैलगाड़ी में बैठ कर संसद पहुंच गए थे। पेट्रोल की कीमत जब 80 रुपए के करीब पहुंची थी तब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इतने आहत हो गए थे कि साइकिल से अपने कार्यालय जाने लगे थे। तब शायद उनको विकास की परिभाषा का पता नहीं था! जिस समय रसोई गैस के घरेलू सिलिंडर की कीमत चार सौ पहुंची थी उस समय स्मृति ईरानी ने सिलिंडर लेकर दिल्ली की सड़कों पर प्रदर्शन किया था। पिछले हफ्ते उसी सिलिंडर की कीमत में 50 रुपए की बढ़ोतरी की गई और उसकी कीमत 769 रुपए पहुंच गई लेकिन ऐसा लग रहा है कि स्मृति ईरानी सहित सभी पुराने आंदोलनजीवियों को समझ में आ गया कि यह जनता पर बोझ नहीं है, बल्कि विकास है। मई 2012 में गुजरात के तब के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी का यह कहते हुए विरोध किया था कि ‘यह दिल्ली सरकार की शासन चलाने की नाकामियों का जीता-जागता सबूत है’, बतौर प्रधानमंत्री अपने पहले कार्यकाल में देश के लोगों से यह भी कहा था कि उनको नसीब वाला प्रधानमंत्री मिला है इसलिए पेट्रोल-डीजल के दाम कम हो रहे हैं। लेकिन अब वे नसीब-बदनसीबी के विमर्श से निकल गए हैं और विकास के रास्ते पर चल पड़े हैं। एक समय अमिताभ बच्चन और अक्षय कुमार से लेकर अनुपम खेर तक सबको लगने लगा था कि वे अपनी मामूली कमाई से 80 रुपए लीटर पेट्रोल कैसे खरीद पाएंगे तभी सबने लोगों से साइकिल से चलने की अपील की थी लेकिन अब विकास होने के बाद उनको लग रहा है कि सौ रुपए लीटर पेट्रोल है तो क्या हो गया विकास की इतनी कीमत तो बनती है! सोचें, देश इतना विकास कर रहा है और लोग पेट्रोल की कीमत सौ रुपए लीटर पहुंचने का रोना रो रहे हैं! देश के जवान इतनी ठंड में भी सीमा पर डटे हुए हैं और लोगों को सौ रुपए लीटर पेट्रोल की पड़ी है! दुनिया भर में भारत का रूतबा बढ़ रहा है, दुनिया भारत की बात ज्यादा ध्यान से सुन रही है, देश विश्व गुरू बनने वाला है और इधर लोग पेट्रोल की कीमत को कोस रहे हैं! देश आत्मनिर्भर हो रहा है तो क्या लोगों को भी आत्मनिर्भर नहीं हो जाना चाहिए? कब तक सरकार की सब्सिडी के भरोसे बैठे रहेंगे? सरकार सब्सिडी दे या विकास करे? मनमोहन सिंह को विकास नहीं करना था, इसलिए डीजल पर सिर्फ 3.56 रुपया शुल्क लेते थे और प्रति लीटर 8.37 रुपए सब्सिडी देते थे, प्रति लीटर पांच रुपए घाटा उठा कर डीजल बेचते थे! लेकिन मौजूदा सरकार विकास कर रही है इसलिए लोगों को टैक्स चुकाने में हिचक नहीं दिखानी चाहिए। मनमोहन सिंह की तो असल में न छाती 56 इंच की थी और न उनमें हिम्मत थी। सरकार दांव पर लगा कर उन्होंने अमेरिका के साथ परमाणु संधि तो कर ली पर कभी हिम्मत नहीं हुई कि पेट्रोल-डीजल पर लगने वाले उत्पाद शुल्क में बढ़ोतरी करें। तभी उनके समय पेट्रोल पर सरकार सिर्फ 9.46 रुपए उत्पाद शुल्क लेती थी और डीजल पर 3.56 रुपए उत्पाद शुल्क लेती थी। विकास करने वाली मजबूत सरकार आते ही उसने उत्पाद शुल्क बढ़ाने शुरू किए। आज पेट्रोल पर भारत सरकार 32.98 रुपए और डीजल पर 31.83 रुपए उत्पाद शुल्क ले रही है- पेट्रोल पर मनमोहन के मुकाबले तीन गुने से ज्यादा और डीजल पर करीब नौ गुना ज्यादा! केंद्र में मजबूत सरकार की देखा-देखी राज्यों में भी मुख्यमंत्रियों ने मजबूती दिखाई और सबने अपने वैट या बिक्री कर बढ़ा दिए। राज्य सरकारें भी पेट्रोल पर 20 रुपए या उससे ज्यादा कर वसूल रही हैं। तभी 32 रुपए की बेस प्राइस वाला पेट्रोल सौ रुपए और 33 रुपए की बेस प्राइस वाला डीजल 90 रुपए प्रति लीटर तक पहुंचा है। सो, बधाई तो बनती है!
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