cabinet expansion 2021 rss : यों संघ-भाजपा में ऐसे सोचने की क्षमता नहीं है। लेकिन लॉजिक, सामान्य समझ और पार्टी-विचार के बेसिक सत्य में जरा सोचें तो क्या किसी संगठन को यह बरदाश्त होना चाहिए जो मंत्रिमंडल भी अफसरी-फेसलेस निराकार हो जाए! नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने गजब किया है जो भाजपा-संघ से सलाह करना भी बंद कर दिया और वाजपेयी-आडवाणी वाले वक्त की संघ नर्सरी से पैदा तमाम नेता और सांसदों की एक-एक करके छुट्टी कर पूरा कैबिनेट अफसरों या निराकार चेहरों का बना डाला। 77 मंत्रियों में से मोदी-शाह को अलग कर अब सिर्फ राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, नरेंद्र सिंह तोमर, अर्जुन मुंडा, मुख्तार अब्बास नकवी को छोड़ कर वाजपेयी-आडवाणी काल का अनुभवी जमीनी नेता कौन है? बाकी सब या तो अफसर या मोदी-शाह की मेहरबानी से बने मंत्री-सांसद हैं। जयशंकर, निर्मला सीतारमण, नए रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव, उर्जा मंत्री आरके सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, नारायण राणे, हरदीप सिंह पुरी वे सर्वाधिक महत्व के विभाग और आर्थिक दशा के संचालक मंत्री हैं, जिनका क्या तो भाजपा से नाता है और क्या ये कभी आरएसएस और भाजपा की वोट राजनीति में जनाधार वाले रहे?
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बाकी राज्यमंत्रियों के स्तर के भी चेहरे नरेंद्र मोदी-अमित शाह की निजी अनुंकपा में बने मंत्री हैं। मतलब बतौर संगठन और वैचारिक वफादारी में आरएसएस-भाजपा से निष्ठा रखने वाले सांसदों की अनदेखी करके जैसे चेहरे सत्ता में हैं, देश की आर्थिक-विदेश नीति में भारी निर्धारक हैं वह असलियत में संघ परिवार के साथ वह धोखा है, जिसका संघ-भाजपा कार्यकर्ता इसलिए अनुमान नहीं लगा सकते हैं क्योंकि वे अंध भक्त हैं। आखिर मोदी से जब सत्ता है तो वे क्यों सोचें, पूछें और किसमें रोकने-टोकने-समझाने का साहस।यह भी पढ़ें: कई-कई राज्यमंत्री क्या करेंगे?
cabinet expansion 2021 rss : उस नाते रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावडेकर, हर्षवर्धन की छुट्टी या पीयूष गोयल को रेल से हटाने के फैसलों के पीछे का मकसद भी प्रधानमंत्री द्वारा मैसेज है कि जो भी अपने को चेहरा मानते हैं वे दूध में मक्खी जितने भर के हैं! मक्खी की तरह निकाल बाहर फेंके जा सकने वाले। किसी का कोई मतलब नहीं। मैं रविशंकर प्रसाद या प्रकाश जावडेकर या पीयूष गोयल आदि किसी से रागात्मकता लिए हुए नहीं हूं बावजूद इन्हें इतना जानता-समझता हूं कि इन्होंने अपने बूते भी कुछ पाया और ये भाजपा के चिन्हित चेहरे रहे हैं, इसलिए इन्हें वैसे तो नहीं हटाना चाहिए था जैसे हटाया गया। लेकिन यही नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री वक्त के और राज्यों की राजनीति की क्षत्रपता से बनी तासीर का प्रमाण है। उनके लिए कोई कुछ मतलब नहीं रखता है। वे ही अकेले सर्वज्ञ और बाकी सब जगह भरने वाले चेहरे, ताश के पत्ते। सोचें, इन पत्तों से 140 करोड़ लोगों की जिंदगी तय होते हुए। नया मंत्रिमंडल रूप पूरी तरह जातीय-प्रादेशिक मॉडल की केंद्रीय स्तर पर स्थापना है। जैले लालू, ममता और अमरेंदर सिंह का कैबिनेट वैसा ही केंद्र सरकार में मोदी का मंत्रिमंडल! क्या ऐसी अटल बिहारी वाजपेयी के समय, आडवाणी के समय कल्पना भी हो सकती थी?
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