प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अच्छा किया जो वैक्सीनेशन की नीति बदल दी और 16 जनवरी को जिस सिद्धांत के साथ इसकी शुरुआत की थी उसी सिद्धांत पर इसे आगे बढ़ाने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि 16 जनवरी से अप्रैल के अंत तक जिस तरह से वैक्सीनेशन का अभियान चला था 21 जून से उसी तरह से चलेगा। यानी केंद्र सरकार वैक्सीन खरीद कर राज्यों को देगी और राज्य बिल्कुल मुफ्त में लोगों को वैक्सीन लगवाएंगे। राज्य और आम लोगों को वैक्सीन के पैसे नहीं देने होंगे। दुनिया के लगभग सभी देशों में इसी तर्ज पर वैक्सीन लगाई जा रही है। इस लिहाज से यह फैसला स्वागत के लायक है।
यह भी पढ़ें: बच्चों की वैक्सीन, जल्दी न करें!
फैसले का स्वागत करने के बावजूद कुछ सवाल अब भी अनुत्तरित हैं। प्रधानमंत्री ने सोमवार को राष्ट्र के नाम 32 मिनट के अपने संबोधन में कई बातों का जवाब नहीं दिया और न डेढ़ महीने से ज्यादा समय तक वैक्सीनेशन की प्रक्रिया के थम जाने या धीमी हो जाने की जवाबदेही ली। उन्होंने कहा कि 16 जनवरी से अप्रैल के अंत तक जैसे वैक्सीनेशन हुआ वैसे ही 21 जून से होगा। सवाल है कि एक मई से 20 जून तक 51 दिनों में वैक्सीनेशन की जो रफ्तार थमी रही उसकी जवाबदेही किसकी होगी? अप्रैल के अंत तक जिस रफ्तार से वैक्सीनेशन हुआ अगर वह रफ्तार कायम रहती तो इन 51 दिनों में करीब 10 करोड़ और लोगों को वैक्सीन लग चुकी होती। इस लिहाज से केंद्र सरकार ने वैक्सीन खरीद का तरीका बदल कर और राज्यों पर जिम्मेदारी डाल कर करोड़ों नागरिकों का जीवन खतरे में डाला था। अगर प्रधानमंत्री इस मामले में अपनी सरकार की जवाबदेही स्वीकार करते तो और बेहतर होता। अपनी गलती मानने में कोई बुराई नहीं होती है, बल्कि उससे सुधार की संभावना मजबूत होती है।यह भी पढ़ें: जुबान बंद कराने की जिद से नुकसान
यहां उलटा हुआ। अपनी गलती मानने या जवाबदेही लेने की बजाय प्रधानमंत्री ने राज्यों पर जिम्मेदारी डाल दी। उन्होंने कहा कि राज्यों ने मांग की थी कि केंद्र सरकार उनको वैक्सीन खरीदने की छूट दे। इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि कई राज्यों ने इसकी मांग की थी। राज्य चाहते थे कि वैक्सीन खरीद और उसके वितरण में उनकी भूमिका बढ़ाई जाए। लेकिन राज्य तो कई और चीजों की मांग कर रहे हैं तो प्रधानमंत्री कहां उनकी मांग मान ले रहे हैं? कई राज्यों की सरकारें चाहती हैं कि केंद्र सरकार कृषि कानूनों को रद्द कर दे लेकिन प्रधानमंत्री वह मांग तो नहीं स्वीकार कर रहे हैं! जीएसटी से लेकर केंद्रीय एजेंसियों के इस्तेमाल तक अनेक मसले हैं, जिन पर राज्यों की सरकारों की राय अलग है लेकिन प्रधानमंत्री या केंद्र सरकार कहां उनकी राय का सम्मान कर रहे हैं! फिर वैक्सीन के मामले में ही क्यों उनकी बात स्वीकार कर ली गई?यह भी पढ़ें: पढ़ाई किसी की प्राथमिकता नहीं है!
अगर एक-दो राज्यों ने ऐसा कहा भी कि उनको वैक्सीन खरीद की छूट मिले तो उसकी अनदेखी करनी चाहिए थी क्योंकि कोई भी राज्य अपनी सीमा से बाहर नहीं देख रहा था, जबकि प्रधानमंत्री के ऊपर पूरे देश का ध्यान रखने की जिम्मेदारी है। उनके पास कोविड-19 से लड़ने का एक सिस्टम है, नीति आयोग है, टास्क फोर्स है, कूटनीति का रास्ता है, केंद्रीय बजट से आवंटित 35 हजार करोड़ रुपए की रकम है और देशी-विदेशी वैक्सीन कंपनियों से मोलभाव करके सौदा करने की बेहतर स्थितियां हैं। इसलिए इसकी जिम्मेदारी केंद्र सरकार को अपने हाथ में ही रखनी चाहिए थी, भले राज्य कुछ भी कहते। परंतु प्रधानमंत्री ने न सिर्फ इस भयावह महामारी के बीच के 51 दिन जाया होने दिए, बल्कि जब नीति को बदला तब भी अपनी भूल स्वीकार करने की बजाय इसका ठीकरा राज्यों के ऊपर फोड़ दिया। तभी सबके लिए मुफ्त वैक्सीनेशन की घोषणा के बावजूद 51 दिनों की बरबादी को लेकर केंद्र की मंशा पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं। जैसे यह सवाल उठता है कि जब केंद्र को पता था कि अभी 45 साल से ऊपर की उम्र के लोगों के लिए पर्याप्त वैक्सीन नहीं है तब भी उसने क्यों एक मई से 18 से 44 साल वालों को वैक्सीन लगाने की इजाजत दी? जब केंद्र को पता था कि वैक्सीन बना रही घरेलू कंपनियों की उत्पादन क्षमता सीमित है और जब तक मंजूरी नहीं मिलेगी, तब तक कोई भी विदेशी कंपनी राज्यों को वैक्सीन नहीं देगी तब भी राज्यों को वैक्सीन खरीद की मंजूरी देने का क्या मतलब था? कहीं अपने को बचाने और राज्यों को बदनाम करने के लिए तो यह फैसला नहीं किया गया था? अब सारा ठीकरा राज्यों पर फोड़ा जा रहा है और इस बात के लिए अपनी वाहवाही कराई जा रही है कि वैक्सीन तो प्रधानमंत्री ही खरीद सकते हैं!यह भी पढ़ें: राजद्रोह कानून की समीक्षा जरूरी
बहरहाल, वैक्सीन नीति बदल देने के बावजूद अब भी इसमें कई कमियां रह गई हैं, जिनका जवाब राष्ट्र के नाम संबोधन से नहीं मिला। जैसे सबसे बड़ी कमी यह है कि अब भी एक देश में वैक्सीन की दो दर रहेगी। पहले तीन दर थी- एक केंद्र के लिए, दूसरी राज्यों के लिए और तीसरी निजी अस्पतालों के लिए। अब एक दर केंद्र के लिए होगी और दूसरी निजी अस्पतालों के लिए। आखिर इस नीति में भी प्रधानमंत्री ने सिर्फ 75 फीसदी वैक्सीन खरीदने का ही फैसला किया है और 25 फीसदी वैक्सीन खरीदने का अधिकार निजी अस्पतालों को दिया है। अब सवाल है कि केंद्र सरकार किस दर पर वैक्सीन खरीदेगी और निजी अस्पतालों के लिए वैक्सीन की दर क्या होगी? जाहिर है कि यह दर एक नहीं होने वाली है। वैक्सीन कंपनियां निजी अस्पतालों को उसी दर पर वैक्सीन नहीं देंगी, जिस दर पर वे केंद्र सरकार को देंगी। उसके ऊपर से निजी अस्पताल डेढ़ सौ रुपया सर्विस चार्ज लेंगे। सो, सवाल है कि जब वैक्सीन सबके लिए मुफ्त है तो कुछ लोग क्यों निजी अस्पतालों में जाकर वैक्सीन के लिए पैसे देंगे? केंद्र सरकार को चाहिए कि निजी अस्पतालों की वैक्सीन का पैसा भी वह खुद दे और वहां भी लोगों को मुफ्त में ही वैक्सीन लगाई जाए। यही संविधान की भावना है, जिसका जिक्र सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने किया था।यह भी पढ़ें: संघीय ढांचे के लिए चुनौती
इसी से जुड़ा दूसरा सवाल है कि वैक्सीनेशन नीति में बदलाव के बाद जिन करोड़ों लोगों ने अरबों रुपए खर्च कर दिए उनका क्या कसूर था? एक मई से 18 साल से ऊपर लोगों को वैक्सीन लगाने की मंजूरी और निजी अस्पतालों को वैक्सीन खरीद की छूट देने के बाद करोड़ों लोगों ने महंगी कीमत देकर वैक्सीन लगवाई है। निजी अस्पतालों को वैक्सीन कंपनियों ने चार सौ से आठ सौ रुपए तक में वैक्सीन बेची और निजी अस्पतालों ने इसके लिए प्रति डोज हजारों रुपए वसूले। जिन लोगों ने हजारों रुपए चुका कर वैक्सीन लगवाई, उनके पैसे की भरपाई क्या केंद्र सरकार करेगी? ध्यान रहे प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा है कि निम्न वर्ग, मध्य वर्ग और उच्च वर्ग सबके लोगों को मुफ्त में वैक्सीन लगेगी। जाहिर है सरकार की नीति वैक्सीन में भेदभाव करने की नहीं है, फिर जिन लोगों ने लोग महंगी कीमत देकर वैक्सीन लगवाई वे तो ठगे गए! आगे भी जो लोग पैसे देकर वैक्सीन लगवाएंगे उनके साथ तो भेदभाव हुआ ही!
Tags :अमेरिका Central Government Union Health Minister Coronavirus HighCourt Covid-19 Coronavirus News health ministry serum Institute Bharat Biotech corona vaccination vaccination against Coronavirus in India covid-19 vaccination in India Vaccination in India Covid-19 vaccination drive coronavirus updates 2nd wave speed coronavirus corona cases world highest number of corona cases 2nd wave Vaccine Policy new advisory 2nd Covid wave disaster india vaccine target supreme court वैक्सीनेटेड