घटनाएं विपक्षी एकता बनवा रही हैं

घटनाएं विपक्षी एकता बनवा रही हैं

वैसे तो राजनीति के बारे में माना जाता है कि वहां सब कुछ योजना के तहत होता है लेकिन कई बार कुछ घटनाएं किसी योजना का हिस्सा नहीं होती हैं। वे घटित होती हैं और उनकी वजह से योजना बन जाती है। भाजपा के खिलाफ विपक्षी पार्टियों की एकता बनाने की योजना भी वर्तमान में हो रही घटनाओं की वजह से संभव होती दिख रही है। एक के बाद एक ऐसी घटनाएं हो रही हैं, जिनसे विपक्षी एकता बनने की संभावना बढ़ती जा रही है। सवाल है कि राजनीति की डोर हमेशा अपने हाथ में रखने वाले भाजपा के शीर्ष नेताओं को क्या इसका अहसास नहीं हो रहा है कि घटनाएं विपक्षी एकता बनवा रही हैं? क्या उनको यह समझ में नहीं आ रहा है कि विपक्षी पार्टियों पर जितना दबाव बनाया जाएगा, उनके नेताओं को जितना परेशान किया जाएगा, उनकी सरकारों पर जितनी तलवार लटकाई जाएगी और ध्रुवीकरण के एजेंडे पर जितना काम होगा उससे विपक्ष को एकजुट होने का बहाना मिलेगा? यह मानना थोड़ा मुश्किल है। तभी कहीं ऐसा तो नहीं है कि जान बूझकर विपक्ष को ऐसे मौके मुहैया कराए जा रहे हैं वे एकजुट हों ताकि मोदी बनाम अन्य का मुकाबला बने?

प्रधानमंत्री खुद यह बात कह चुके हैं कि वे अकेले सब पर भारी हैं। यह बात उन्होंने संसद के पिछले सत्र में राज्यसभा में कही थी। यह सिर्फ राज्यसभा में दिया गया एक बयान भर नहीं है, बल्कि यह भाजपा की रणनीति का हिस्सा हो सकता है। भाजपा विपक्ष के सारे नेताओं की साझा ताकत के ऊपर नरेंद्र मोदी को भारी दिखाती रही है। इसके अलावा योजनाबद्ध तरीके से भाजपा ने समूचे विपक्ष को भ्रष्ट, देश विरोधी और हिंदू विरोधी ठहराया हुआ है। प्रधानमंत्री ने यह बात भी संसद में कही है कि उनको लग रहा था कि चुनावी राजनीति सभी पार्टियों को एकजुट करेगी लेकिन ईडी ने सभी पार्टियों को एक कर दिया है। भाजपा भी कह रही है कि सभी भ्रष्ट एक मंच पर आ गए हैं। सभी गैर भाजपा दलों पर पहले से मुस्लिमपरस्ती का आरोप लगता रहा है। इसलिए संभव है कि एक रणनीति के तहत ऐसे काम किए जा रहे हों, जिनसे विपक्षी पार्टियां एकजुट हों और भाजपा को चुनौती दें। संभव है कि ऐसी स्थिति में भाजपा हिंदू वोटों के ज्यादा ध्रुवीकरण की संभावना देख रही हो।

ध्यान रहे आमतौर पर मुस्लिम वोटों का बंटवारा नहीं होता है। वह वोट उस पार्टी या उम्मीदवार को मिलता है, जो भाजपा को हरा रहा होता है। इसलिए भाजपा को उस वोट की चिंता नहीं करनी है। भाजपा को चिंता हिंदू वोटों में बिखराव की है। हर चुनाव में हिंदू वोट बंटते हैं। पिछले दोनों लोकसभा चुनावों में बड़ी जीत के बावजूद भाजपा को कुल हिंदू वोटों के 50 फीसदी से कम ही वोट मिले थे। उसे 2014 में 31 फीसदी और 2019 में 37 फीसदी वोट मिले थे। पिछली बार कुल 60 करोड़ वोट पड़े थे, जिसमें से 37 फीसदी यानी 22 करोड़ वोट भाजपा को मिले। अगर कुल वोट में हिंदू वोट 45 से 50 करोड़ था तो इसका मतलब हुआ कि भाजपा को 50 फीसदी से कम हिंदुओं ने वोट दिया। भाजपा का प्रयास 60 से 70 फीसदी हिंदू वोट हासिल करने का है और ऐसा तब हो सकता है कि जब आमने-सामने का मुकाबला बने। तभी विपक्षी एकता बनवाने वाली घटनाओं के बीच कोई रणनीति होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

बहरहाल, पिछले कुछ दिनों से एक के बाद एक ऐसी घटनाएं हो रही हैं, जिनसे विपक्षी पार्टियों में डर पैदा हो रहा है और वे एक दूसरे के नजदीक आने की जरूरत को ज्यादा शिद्दत से महसूस कर रही हैं। जैसे दिल्ली में शराब नीति घोटाले में आम आदमी पार्टी के नंबर दो नेता मनीष सिसोदिया को गिरफ्तार करके जेल में डाला गया और उसके बाद अरविंद केजरीवाल को सीबीआई द्वारा समन देकर पूछताछ के लिए बुलाया गया। पार्टी के तीसरे सबसे बड़े नेता संजय सिंह का नाम भी ईडी के आरोपपत्र में शामिल किया गया। कट्टर ईमानदार पार्टी होने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी के नेताओं पर भ्रष्टाचार के मुकदमे दर्ज हो रहे हैं तो उनको भी इस बात की जरूरत महसूस है रही है कि उन्हें बड़े गठबंधन का हिस्सा होना चाहिए। संसद की कार्यवाही के दौरान यह देखने को मिला भी है। पिछले दिनों नीतीश कुमार दिल्ली के दौरे पर आए तो केजरीवाल और संजय सिंह ने जो सद्भाव दिखाया और दो टूक अंदाज में उनके साथ जाने का ऐलान किया उससे भी आम आदमी पार्टी के रुख में आ रहे बदलाव का संकेत मिल रहा है।

नीतीश कुमार का भी भाजपा के खिलाफ सक्रिय होना अनायास नहीं है। अमित शाह पिछले दिनों बिहार के दौरे पर गए तो उन्होंने नवादा की एक जनसभा में कहा कि बिहार के लोग 40 सीटें देकर 2024 में भाजपा को जिताएं तो राज्य की महागठबंधन सरकार गिर जाएगी। ध्यान रहे बिहार में 2025 के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद सरकार गिर जाने की बात कह रहे हैं। जाहिर है यह स्पष्ट चेतावनी है। इसके अलावा सरकार की सबसे बड़ी सहयोगी पार्टी राजद के नेता लालू प्रसाद, उनकी पत्नी राबड़ी देवी, बेटे तेजस्वी यादव और तीन बेटियों से सीबीआई और ईडी की पूछताछ चल रही है। उनके सारे करीबियों के ऊपर छापे मारे जा रहे हैं। एक तरफ सरकार पर संकट और दूसरी ओर लालू परिवार की परेशानियां, इन दोनों ने मिल कर एकजुटता की संभावना को मजबूत किया है।

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव अब तक अपने दम पर लड़ने की बात कर रहे थे। लेकिन अतीक अहमद के बेटे असद के एनकाउंटर और उसके बाद पुलिस के सुरक्षा घेरे में अतीक व अशरफ अहमद की गोली मार कर हुई हत्या ने उनकी आंखों पर से भी परदा हटाया है। ये घटनाएं मामूली नहीं हैं। यह ध्रुवीकरण का सबसे ठोस और बड़ा कारण हो सकता है। माफिया को मिट्टी में मिला देने का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का संकल्प व्यापक हिंदू समाज को एकजुट करने का बड़ा प्रयास है। ध्यान रहे उत्तर प्रदेश में प्रचार के जरिए यह धारणा बनाई गई है कि ‘माफिया का मतलब मुस्लिम’ होता है और उसको मिट्टी में मिलाने का मतलब है व्यापक हिंदू समाज की सुरक्षा सुनिश्चित करना।

इसी तरह अमित शाह ने पश्चिम बंगाल की सरकार 2026 से पहले गिर जाने की बात कही है, जिससे ममता बनर्जी भड़की हैं। उन्होंने इस बात पर अमित शाह का इस्तीफा मांगा है। असल में शाह ने पिछले दिनों बीरभूम की एक सभा में लोगों से कहा कि वे 2024 में लोकसभा की 35 सीटें भाजपा को जिताएं और 2025 में राज्य सरकार गिर जाएगी। इस चिंता के साथ साथ भतीज अभिषेक बनर्जी को केंद्रीय एजेंसियों की ओर से भेजे जा रहे समन से वे अलग परेशान हैं। जिस मामले में केजरीवाल की पार्टी फंसी है उसी मामले में तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की बेटी के कविता का भी नाम है और उनसे भी पूछताछ हो रही है। शिव सेना का टूटना महाराष्ट्र की राजनीति की एक बड़ी घटना है, जिसने उद्धव ठाकरे, शरद पवार और कांग्रेस के गठबंधन को मजबूती दी है। इस तरह की घटनाएं विपक्षी पार्टियों को नजदीक ला रही हैं और साझा मोर्चा की स्थिति बन रही है। हालांकि इससे जमीनी राजनीति के प्रभावित होने का का आकलन अभी नहीं किया जा सकता है।

Published by अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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