बेबाक विचार

संदेशों पर नेताओं की लट्ठबाजी

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संदेशों पर नेताओं की लट्ठबाजी
देशद्रोह और अशांति भड़काने के आरोप में दिल्ली की पुलिस ने तीन लोगों पर अपना शिकंजा कस लिया है। बेंगलुरु की सामाजिक कार्यकर्ता युवती दिशा रवि को गिरफ्तार कर ही लिया गया है और निकिता जेकब और शांतनु को भी वह जल्दी पकड़ने की फिराक में है। इन तीनों पर आरोप है कि इन्होंने मिलकर षड़यंत्र किया और भारत में चल रहे किसान आंदोलन को भड़काया। इतना ही नहीं, इन्होंने स्वीडी नेता ग्रेटा टुनबर्ग के भारत-विरोधी संदेश को इंटरनेट पर फैलाकर 26 जनवरी के लालकिला झंडाकांड को भी भड़काया। पुलिस ने काफी खोज-पड़ताल करके कहा है कि कनाडा के एक खालिस्तानी संगठन ‘पोइटिक जस्टिस फाउंडेशन’ के साथ मिलकर इन लोगों ने यह भारत-विरोधी षड़यंत्र किया है। इस आरोप को सिद्ध करने के लिए पुलिस ने इन तीनों के बीच फोन पर हुई बातचीत, पारस्परिक संदेश तथा कई अन्य दस्तावेज खोज लिये हैं। यदि पुलिस के पास ठोस प्रमाण होंगे तो निश्चय ही यह माना जाएगा कि यह अत्यंत आपत्तिजनक और दंडनीय घटना है। अदालत तय करेगी कि इन अपराधियों को कितनी सजा मिलेगी। इसमें तो कुछ समय लगेगा लेकिन इस घटना ने भारत के सत्तारुढ़ और विरोधी दलों के बीच भारत-पाकिस्तान मचा दिया है। वे एक-दूसरे के खिलाफ इतने कटु और हास्यास्पद बयान जारी कर रहे हैं कि मुझे आश्चर्य होता है। भाजपा के लोग कह रहे हैं कि ये तीनों देशद्रोही हैं। इन्हें कठोरतम सजा मिलनी चाहिए। ये देश के टुकड़े-टुकड़े कर देंगे। इन्हीं की वजह से लाल किले का अपमान हुआ और 500 पुलिसवाले घायल हुए। इधर कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी और शिव सेना के नेता इन लोगों के उस काम को बाल-बुद्धि का व्यतिक्रम बता रहे हैं और आरोप लगा रहे हैं कि भाजपा और सरकार अब तानाशाह हो गई है और वह अभिव्यक्ति का गला घोटने पर उतारू हो गई है। पक्ष और विपक्ष की ये दोनों मत अतिवाद के द्योतक हैं। ऐसा लगता है कि उनका लक्ष्य अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है बल्कि एक-दूसरे की टांग खींचना है। क्या भारत कांच का ढक्कन है, जो इन संदेशों से टूट जाएगा? जहां तक ट्विटर पर उटपटांग संदेशों का सवाल है, उन पर नियंत्रण जरूरी है, जैसे कि यह संदेश कि ‘मोदी किसानों का हत्यारा है’ लेकिन यह भी सत्य है कि इस तरह के मूर्खतापूर्ण संदेश तो अपनी मौत खुद मर जाते हैं। उनके लिए नेता लोग एक-दूसरे के साथ लट्ठबाजी करें, यह ज़रा अटपटा-सा लगता है।
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