ऐसा नहीं है कि विपक्षी पार्टियां एक दूसरे के साथ सिर्फ साझेदारी नहीं कर रही हैं, बल्कि वे एक दूसरे को कमजोर करने की राजनीति भी कर रही हैं। सब एक दूसरे के वोट काटने और पार्टी तोड़ने की राजनीति कर रही हैं। आम आदमी पार्टी की कोशिश कांग्रेस के वोट में सेंध लगाने की है तो तृणमूल कांग्रेस कांग्रेस पार्टी भी कांग्रेस के वोट और उसकी पार्टी पर नजर गड़ाए हुए है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी भी कांग्रेस के ही नेताओं को तोड़ रही है। कुल मिला कर हालात ऐसा हो गए हैं कि कांग्रेस पार्टी को भाजपा से ज्यादा अपनी सहयोगी, पूर्व सहयोगी या भावी सहयोगी पार्टियों से ही खतरा है। भाजपा विरोधी राजनीति करने वाली पार्टियां ही एक दूसरे के वोट काट कर विपक्ष की संभावना को कमजोर कर रही हैं। Politics Congress Opposition Parties
Politics Congress Opposition Parties
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच शह-मात का खेल चल रहा है। प्रियंका गांधी वाड्रा अपनी सक्रियता से कांग्रेस को अपने पैरों पर खड़ा करने की कोशिश कर रही हैं तो समाजवादी पार्टी उसके नेताओं को तोड़ कर कमजोर करने की राजनीति कर रही है। पिछले दिनों बुंदेलखंड को दो-तीन बड़े कांग्रेस नेता सपा में चले गए। खबर है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का झंडा बुलंद करने वाले दो नेता जल्दी ही सपा में जाने वाले हैं। दोनों के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता ऐसा हो गई है कि लखीमपुर खीरी की घटना पर भी दोनों ने अलग अलग विरोध प्रदर्शन किया। मायावती तो अलग राजनीति कर ही रही हैं बची हुई दो मुख्य विपक्षी पार्टियां भी अलग अलग राजनीति कर रही हैं और एक-दूसरे की संभावना को कमजोर कर रही हैं।
उधर तृणमूल कांग्रेस सिर्फ पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा में कांग्रेस को नहीं तोड़ रही है, बल्कि गोवा जाकर भी कांग्रेस को तोड़ रही है। गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेता रहे लुइजिन्हो फ्लेरियो ने कांग्रेस छोड़ कर तृणमूल कांग्रेस ज्वाइन कर ली है। उससे पहले ममता बनर्जी ने कोलकाता में पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत प्रणब मुखर्जी के बेटे और कांग्रेस के दो बार सांसद रहे अभिजीत मुखर्जी को अपनी पार्टी में शामिल कराया। ऐसे ही असम में कांग्रेस के दिग्गज रहे संतोष मोहन देब की बेटी और सिलचर से कांग्रेस सांसद रहीं सुष्मिता देब का पार्टी में शामिल करा कर ममता बनर्जी ने उनको राज्यसभा में भेज दिया। ममता की पार्टी त्रिपुरा में अलग कांग्रेस को तोड़ने में लगी है। इस समय तृणमूल कांग्रेस अपने लिए संभावना देख रही है और इसलिए उसने कांग्रेस को कमजोर करने की रणनीति अपनाई है। ममता बनर्जी हर मसले पर अपनी राजनीति खुद कर रही हैं, जबकि कांग्रेस ने भबानीपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में ममता के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारा था।
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आम आदमी पार्टी तो खैर दिल्ली में कांग्रेस को हरा कर सत्ता हासिल करने के बाद से ही खुद को कांग्रेस का विकल्प मान रही है। वह हर राज्य में भाजपा के मुकाबले खुद को मुख्य प्रतिद्वंद्वी मान रही है। अगले साल जिन पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं उनमें से एक मणिपुर को छोड़ कर बाकी चार राज्यों में वह बड़े जोर-शोर से लड़ रही है। पंजाब में वह मुख्य विपक्षी पार्टी है और चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में उसे सबसे बड़ी पार्टी बनते दिखाया जा रहा है। आप ने उत्तराखंड में सेना से रिटायर कर्नल अजय कोठियाल को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित कर दिया है। यह हकीकत है कि उत्तराखंड और गोवा में वह जितना जोर लगा कर लड़ेगी, कांग्रेस को उतना नुकसान होगा और भाजपा को फायदा होगा। पर आप को इसकी परवाह नहीं है। इस चरण में ऐसा लग रहा है कि उसका लक्ष्य कांग्रेस का सफाया है। जैसे गुजरात के गांधीनगर के नगर निगम चुनाव में हुआ। वहां आप 40 सीटों पर लड़ी और उसे 17 फीसदी वोट मिले। इसका नतीजा यह हुआ है कि पिछली बार इस नगर निगम में 16 सीट जीतने वाली कांग्रेस सिर्फ दो सीट जीत सकी और पिछली बार 16 ही सीट जीतने वाली भाजपा 41 सीट जीत गई। यह कहानी कई राज्यों में दोहराई जा सकती है।
इस बीच कांग्रेस पार्टी ने सीपीआई के नेता और जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार को पार्टी में शामिल कराया और खबर आई कि पार्टी कन्हैया को बिहार में बड़ी जिम्मेदारी दे सकती है तो बिहार में कांग्रेस की सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल ने इस पर उलटी प्रतिक्रिया दी। बिहार में कन्हैया को राजद के तेजस्वी यादव के प्रतिद्वंद्वी के तौर पर देखा जा रहा है। तभी राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने कन्हैया पर तंज करते हुए कहा कि वे भाषण देने की कला में माहिर हैं लेकिन वे तेजस्वी को टक्कर नहीं दे सकते। सोचें, तेजस्वी को टक्कर देने की बात कहां से आ गई? उन्होंने यह भी तंज किया कि कांग्रेस कन्हैया को राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दे क्योंकि कांग्रेस के पास दो साल से कोई राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं है। एनसीपी के नेता शरद पवार ने कांग्रेस के लिए कहा है कि वह उस पुराने जमींदर की तरह है, जिसकी जमींदारी चली गई है और वह बची हुई हवेली का रख-रखाव करने में भी सक्षम नहीं है। कुल मिला कर सारी विपक्षी पार्टियां कांग्रेस के साथ ही दुश्मन की तरह बरताव कर रही हैं।