क्या कभी चुनावों से मुक्ति मिलेगी? क्या कभी ऐसा आदर्श समय आएगा, जब सारे चुनाव एक साथ हो जाएं और उसके बाद सरकारें राजनीति को किनारे रख कर पांच साल सुशासन पर ध्यान दें? या विपक्षी पार्टियां पांच साल तक रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाएं? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की सत्ता संभालते ही सबसे पहले, जिस बड़ी योजना पर चर्चा शुरू की थी वह थी एक साथ चुनाव कराने की योजना। उन्होंने कई जगह इसकी चर्चा की और केंद्रीय चुनाव आयोग ने इसकी पहल भी शुरू कर दी। लेकिन सात साल बाद यह स्थिति है कि चुनाव आयोग एक राज्य की सात विधानसभा सीटों के उपचुनाव एक साथ नहीं करा पा रहा है। पश्चिम बंगाल में सात सीटें खाली थीं, जिनमें से पहले तीन सीटों पर चुनाव हुए और एक महीने बाद चार सीटों पर हो रहे हैं। चुनाव आयोग पिछले दिनों राज्यों में खाली राज्यसभा की आधा दर्जन से ज्यादा सीटों पर भी एक साथ चुनाव नहीं करा सका। politics elections in india
उससे भी हैरान करने वाली बात यह है कि चुनाव आयोग एक तरफ सारे चुनाव एक साथ कराने के विचार पर अलग अलग फोरम पर चर्चा करा रहा है और उसने पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव आठ चरण में कराया। तमिलनाडु की 234 सीटों पर एक चरण में और बंगाल की 294 सीटों पर आठ चरण में मतदान का कोई तर्क नहीं है। सो, निश्चित रूप से आयोग का फैसला राजनीतिक कारणों से प्रभावित लग रहा है। बहरहाल, स्थिति ऐसी है कि एक साथ चुनाव की सारी बातें अब हाशिए में हैं और देश में चुनाव ही चुनाव हैं। अगले साल लगभग पूरे साल चुनाव चलेंगे और उसके अगले साल भी साल भर चुनाव ही चलते रहेंगे और उसके अगले साल लोकसभा का चुनाव आयोग तो उस साल भी पूरे साल चुनाव चलेंगे। सवाल है कि सरकारें पूरे साल चुनाव लड़ती रहेंगी तो काम कब करेंगी? और काम करेंगी भी तो क्या उसके सारे काम चुनाव के नजरिए से नहीं होंगे?
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यह भारत का दुर्भाग्य है कि सरकारें अब सारे काम चुनाव के हिसाब से कर रही हैं। यहीं वजह से सिर्फ लोकप्रिय फैसले हो रहे हैं और किसी तरह से जनता को लुभाने वाले काम किए जा रहे हैं। यह लंबे समय में देश की आर्थिक, सामाजिक और बुनियादी ढांचे की सेहत के लिए बहुत खतरनाक साबित होगा। अगले साल यानी 2022 में दिल्ली, मुंबई, फरीदाबाद जैसे बड़े महानगरों और शहरों में नगर निगम के चुनाव होंगे। उसके बाद या उसी समय पांच राज्यों- उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड़, पंजाब, गोवा और मणिपुर में विधानसभा के चुनाव होंगे। इनके नतीजे आएंगे और उसी समय राज्यसभा के दोवार्षिक चुनावों की घोषणा होगी। राज्यसभा के चुनाव खत्म होंगे और राष्ट्रपति व उप राष्ट्रपति के चुनाव की अधिसूचना जारी हो जाएगी और अगस्त में इसकी प्रक्रिया खत्म होने और उसके थोड़े दिन बाद ही गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों की घोषणा होगी। क्या चुनाव आयोग पार्टियों से बात करके सारे नगर निगम और सात राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ नहीं करा सकता है? हो सकता है कि अगले साल जम्मू कश्मीर में भी चुनाव हो।Read also चीन का नया कानून, भारत को खतरा
बहरहाल, उसके अगले साल यानी 2023 की शुरुआत त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड विधानसभा चुनाव से होगी। फरवरी में पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में चुनाव होगा और उसके बाद मई में कर्नाटक विधानसभा के चुनाव होंगे। फिर अक्टूबर-नवंबर में तेलंगाना, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम यानी पांच राज्यों के चुनाव होंगे। सो, 2023 में आठ राज्यों के चुनाव होंगे। चुनाव आयोग चाहे तो इन सारे राज्यों के चुनाव भी एक साथ करा सकता है। इसके अगले साल यानी 2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं। मार्च-अप्रैल से शुरू होकर मई के अंत तक लोकसभा चुनाव और साथ साथ ओड़िशा, आंध्र प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश के चुनाव होंगे। लोकसभा चुनाव खत्म होने के थोड़े दिन के बाद महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव होंगे और उसके बाद झारखंड में मतदान होगा। फिर यह चक्र आगे के वर्षों में भी चलता रहेगा। सोचें, जब हर साल पांच-सात राज्यों के चुनाव होंगे और हर साल कुछ न कुछ उपचुनाव होते रहेंगे, जिन्हें पार्टियां मिनी विधानसभा चुनाव की तरह लड़ेंगी तो कामकाज कब होगा? क्या सरकारें, पार्टियां और आम नागरिक सारे समय चुनाव में नहीं उलझे रहेंगे? और सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या सरकारें सारे काम चुनाव को ध्यान में रख कर नहीं करेंगी? चुनाव आयोग को और पार्टियों को भी इस बारे में गंभीरता से सोचना होगा। क्योंकि लगातार हो रहे चुनावों से सरकारों के कामकाज कई स्तर पर प्रभावित होते हैं।
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