बेबाक विचार

ठूंठ नस्ल, गंवार राजनीति

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ठूंठ नस्ल, गंवार राजनीति
भला क्या तो राजनीति, कैसा शासन और क्या सभ्यता! हिंदू से यदि पूछें राजनीति क्या है तो तुलसीदासजी की चौपाईयां सुनने को मिलेंगी?...’होइहें वहीं जो राम रची राखा’! ‘कोऊ नृप हो हमें का हानी’ या ‘यदा-यदा ही धर्मस्य...’। हिंदुओं से पूछे शासन क्या है? तो रामजी के पादुका शासन, चाणक्य के चंद्रगुप्ती राज और राजा हरिश्चंद्र व विक्रमादित्य की कहानियां! रीति-नीति में राय मांगें तो अन्नदाता, नमकदाता, आश्रयदाता, माई-बाप-हुकुम में सब राजा को सुपुर्द तथा मुगलों, नवाबों, रजवाड़ों के लिए पृथ्वीराज रासो, अकबरनामा, नेहरू की डिस्कवरी, मोदीनामा लिखेंगे। सच्चाई और पिछले हजार सालों का यह हिंदू इतिहास है कि हुकुम, दरबार व प्रधानमंत्री ने जो किया वह सिर आंखों पर। तब भला इक्कीसवीं सदी में कैसे संभव है, जो हिंदू बतौर आधुनिक इंसान राजनीति, शासन और नीति पर दिमाग दौड़ाए। सोचें कि लोकतंत्र में खरीद-फरोख्त से, लोगों को अराजनीतिक-ठूंठ बना कर जैसे भारत में सत्ता भोगी जाती है वैसा भला दुनिया के दूसरे सभ्य देशों में कहां है? ऐसा शासन और ऐसी प्रजा कहां है जो बुलडोजर के औजार की शासन शैली से गौरवान्वित होती हो? ऐसे नीति-निर्माण कहां होता है, जिसमें देश की सुरक्षा की सेना को त्वरित ट्रेनिंग के अग्निपथ में झोंक दिया जाए और उसके सेनापति इकट्ठे बैठ कर राजा के फैसले की प्रेस कांफ्रेंस में वाह करें! इस सप्ताह हिंदू राजा, राजनीति, शासन, और नीति के चार अनुभव हैं। एक, चारा-पानी दे कर विधायकों की सूरत-गुवाहाटी में बाड़ेबंदी! जाहिर है इक्कीसवीं सदी के प्रतापी हिंदू राजा नरेंद्र मोदी के वक्त में राजनीति का अर्थ है डराना और खरीदना। दो, सुप्रीम कोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार का यह छली हलफनामा कि बुलडोजर न्याय कानूनी तौर पर सही है। तीन, सेना के प्रमुखों द्वारा अग्निपथ का प्रेस कांफ्रेंस में बचाव और नौजवानों को धमकाना। चार, देश की कुल राजनीति में शासक वर्ग द्वारा बतौर प्रथम नागरिक दलित रामनाथ कोविंद के बाद आदिवासी द्रौपदी मुर्मु को राष्ट्रपति बनाने का फैसला। कोविंद और मुर्मु की आज की उपयोगिता में राजनीति के लक्षण क्या हैं उसे समझना-बूझना मुश्किल नहीं है। पर यदि बूझने, समझने में हिंदू समर्थ और रियल प्रज्ञावान होता तो क्या ऐसे देश और लोगों का व्यवहार होता? बुधवार सुबह पार्क में घूमते वक्त एक नौकरीपेशा ने उद्धव ठाकरे को गाली देते हुए मुझे कहा- इसके पिता ने जीवन भर हिंदू राजनीति की लेकिन इसने क्या किया, मुसलमानों-कांग्रेसियों के साथ सरकार बनाई। इसको तो मिलना ही चाहिए सबक। अगले दिन ऐसे ही शिव सेना के बागी शिंदे का गुवहाटी से कहना था। यह बानगी है इस सच्चाई की कि हिंदू दिमाग अब बिना ऑप्शन के है। दिमाग ठूंठ बन गया है। उसमें विचार, विकल्प, आगे-पीछे का सोचना, खिलना-बनना संभव नहीं। 140 करोड़ लोगों में आम सरोकार, दिमाग व बुद्धि की सारी दौड़ हिंदू बनाम मुस्लिम में गठित याकि कंडीशंड है। कोई भी बात हो (चुनाव, सत्ता, शासन, रीति-नीति, आर्थिकी, मीडिया, नैरेटिव, विदेश नीति, चेहरों, लेखन आदि) सबमें हिंदू दिमाग मुस्लिम परिप्रेक्ष्य लिए होगा। नोटबंदी से लेकर बुलडोजर की तमाम नीतियों में ठूंठ दिमाग मुस्लिम एंगल और औचित्य को पकड़ ही लेगा। ऐसे ही उद्धव, ममता, राहुल, चुनाव याकि पूरी राजनीति में वे सभी खारिज जो मुसलमान के प्रत्यक्ष या परोक्ष साये में दिखते हों। इस मामले में भक्त हिंदू दिमाग बुलडोजरी सत्ता की पूजा में रीतिकाव्य लिखता हुआ और चौपाईयों को जपता हुआ है। दूसरी बात सोचनी-सुननी ही नहीं। जैसे अग्निपथ योजना पर परमवीर चक्र प्राप्त सैनिक बैकग्राउंड के रिटायर मानद कैप्टन बाना सिंह की बात। उन्होंने चेताया है- अग्निपथ योजना की वजह से 'भारी क़ीमत' चुकानी पड़ेगी। उन्होंने कहा कि ये योजना सेना को बरबाद कर देगी और पाकिस्तान-चीन को फायदा पहुंचाएगी। उन्होंने कहा ‘अग्निपथ योजना से भारत के दुश्मनों को फ़ायदा हो सकता है। सैनिक बनना खेल नहीं। इसके लिए सालों प्रशिक्षण से गुज़रना पड़ता है। केवल छह महीने में उन्हें किस तरह की ट्रेनिंग मिलेगी’?... ‘ये मायने नहीं रखता कि कोई एक आदमी क्या कहता है। पूरे देश को ये कहना होगा। देश को इसके (अग्निपथ योजना) लिए बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी’। सोचें, सियाचिन में बहादुरी का कीर्तिमान बनाने वाले एक सच्चे-शूरवीर सैनिक की यह सोच। क्या इसे शासन और रीति-नीति निर्माताओं को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए? लेकिन रक्षक-अन्नदाता ने फैसला कर लिया है तो ठूंठ दिमाग में किसी के कहे का कोई अर्थ नहीं है। वह तो पागल है और मोदीजी ईश्वर।
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