बेबाक विचार

दलबदल के खेल के अनुभव

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दलबदल के खेल के अनुभव
लंबे अरसे से मेरा मानना है कि हमारे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथियों को पत्रकारिता की इस विद्या में आने के पहले कुछ समझने के लिए प्रिंट मीडिया में काम कर लेना चाहिए। इससे घटनाओं को लेकर उनकी सोच उन्हें समझने की काबिलियत व उचित शब्दों के चलन की क्षमता बढ़ जाती है। अपना तो मानना है कि उन्हें अपने अनुभवो के शब्दो को उतारते पूछना चाहिए। मैं ब्रजेश राजपूत से कभी नहीं मिला। मगर उन्हें एबीपी चैनल पर रिपोर्टिंग करते हुए देख लेता हूं जिसमें वे वरिष्ठ विशेष संवाददाता हैं। उनकी सबसे अच्छी बात यह है कि तमाम रिपोर्टिंग करने के बाद वे अपने तमाम अनछुए अनुभवों को शब्दो में उतार कर श्रोताओं के अलावा पाठको के सामने ऐसी तस्वीर प्रस्तुत कर देते हैं जोकि घटना बीत जाने के बाद भी उनकी याद ताजी कर देती हैं। उन्होंने इस संबंध में अनेक किताबे भी लिखी है। हाल ही में उनकी नवीनतम पुस्तक वो 17 दिन कमलनाथ सरकार गिरने और शिवराज सिंह सरकार बनने की कहानी उजागर करने के साथ तमाम ऐसे रहस्योघाटन करती है जिनसे आम पाठक का परिचित होना जरूरी है। उन्होंने अपनी पुस्तक में बताया है कि हमारी समझ के लिए समस्याएं क्यों उत्पन्न होती हैं। संकट के दौर में हमारे प्रतिनिधि का आचरण कैसा होता है? हमारे तमाम माननीय कैसा व्यवहार करते हैं? कमलनाथ सरकार के गिरने के पहले उनके घर पर हुई कांग्रेसी विधायको की एक बैठक के बारे में बताते हैं कि मुख्यमंत्री के सामने वे सारे विधायक गजब नौटंकी कर बड़े-बड़े अदाकारो को मात दे रहे थे। सभी विधायको ने यही कहा कि हम तो उनसे (दूसरे खेमे से) सिर्फ मिलने के लिए ही गए थे। बाकी आपका साथ छोड़ने की तो बात ही नहीं सोच सकते हैं। आप हमारे बड़े मालिक और पार्टी हमारे लिए मां है। कमलनाथ द्वारा इस मामले में पहली बार 29 मार्च को विधायको को घर लाने के लिए तैयार हो जाने के बाद कमलनाथ खेमे के मंत्री और समर्थक एक बार फिर कमलनाथ से राजनीतिक अनुभव व मैनेज करने के गुण जोर-शोर से गाने लगे। बिना यह जाने कि आने वाले दिनों में क्या होने वाला है। कांग्रसी नेता भूल गए कि ये पुरानी जमाने की नहीं बल्कि नए जमाने की बीजेपी है जिसमें मोदी और अमितशाह हैं। जो हर हार-जीत का हिसाब रखते हैं। वहीं कांग्रेस के हालात के बारे में वे लिखते हैं कि वरिष्ठ कांग्रसी नेता विवेक तन्खा ने कमलनाथ को एसएमएस करने के साथ ही राहुल गांधी को फोन करके बता दिया था कि मध्य प्रदेश में विधायको के बीच सरकार को लेकर नाराजगी बढ़ गई है। इससे पहले कि कुछ वहां हो जाए सोनिया मैडम से कहिए कि विधायको को दिल्ली बुलाकर समझाए वरना सरकार ज्यादा दिन नहीं चलेगी। बीजेपी के लोग सरकार गिराने में लग गए हैं। इसके बावजूद कांग्रेस ने समय रहते अपने घर को ठीक करना उचित नहीं समझा। वहीं लेखक ने दलबदल में चुने विधायको की मानसिक स्थिति व झूठी उम्मीद का सही चित्रण किया है। दिल्ली जाने वाले इन विधायको को जब पत्रकारो ने घेरा तो इन सबने गजब के बहाने बनाए। ऐदल सिंह का कहना था कि वो तो अपनी बहू का ईलाज करवाने दिल्ली गए थे। वहीं संजू कुशवाहा ने कहा कि वे लोग तो दिल्ली आते जाते रहते हैं। मगर निहाल किया रामबाई ने जिन्होंने भोपाल में कहा कि वे तो अपनी बेटी से मिलने दिल्ली गई थी। मगर जब वो देर रात भोपाल से जबलपुर और फिर अपने घर दमोह पहुंची तो स्थानीय पत्रकारो ने उन्हें फिर से घेर लिया। उन्होंने बहुत ईमानदारी से कहा कि देखो मैं बहुत थक गई हूं। झूठ बोलना नहीं चाहती और सही क्या है यह भी आप लोगों को बताना नहीं चाहती? इसलिए कल सुबह इस बारे में बात कर लेंगे। पहली बार विधायिका रमा बाई इतना सच बोल रही थी। आपरेशन कमल के बाद अब कमलनाथ सरकार ने अपना आपरेशन बदलना शुरू कर दिया। बीजेपी के नेता इस आपरेशन से इस्तीफे करवा रहे थे। एक इस्तीफे में यह लिखा गौर लायक था कि मेरी गलती रही कि मैं कमलनाथ, दिग्विजय या सिंधिया किसी भी गुट का नहीं रहा केवल कांग्रेस का ही रहा इसलिए मुझे इतना संघर्ष करना पड़ रहा है। मैंने तीनो नेताओं से अपने दिल की बात की। लेकिन दुख इस बात का है कि मेरी बात किसी ने ध्यान से नहीं सुनी। वे कांग्रेस के एकमात्र सिख विधायक के कारण अपना राग व चाल बदलने लगे। असली मौज तो बसपा की विधायक रमा बाई के पति गोबिंद सिंह की होने लगी। गुरुद्वारे से लौटने के बाद पूरा प्रशासन व सरकार उन्हे हाथो-हाथ लेने लगी। रमाबाई अपने इलाके की दबंग व तेजतर्रार विधायक है। रमाबाई ने कमलनाथ से मिल कर अपने विधानसभा क्षेत्र में होने वाले मेले में चलने को कहा। कमलनाथ खुद तो नहीं गए मगर उन्होंने रमाबाई को दो मंत्री व हैलीकाप्टर दे दिया। 2200 वोटो से जीतने वाली विधायक रमा बाई मंत्री ब्रजेंद सिंह और मंत्री विजय लक्ष्मी साधो के साथ आई जहां पर लोक गायिका सपना चौधरी का कार्यक्रम रखा गया। कल तक जो रमाबाई अपने छोटे-मौटे कामों को लेकर मुख्यमंत्री व मंत्रियो के पास भटकती रहती थी अब उनके आगे पीछे मुख्यमंत्री व मंत्री घूम रहे थे। वे रमाबाई के घर जाकर पूछ रहे थे कि कोई काम हो तो बताए मगर सरकार में बनी रहिएगा। मगर कांग्रेसी खेमे में कुछ ठीक नहीं कुछ-न-कुछ पक रहा था जिसकी कांग्रेस को खबर नहीं थी। कमलनाथ सरकार पर आए पूरे संकट के दौरान ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कोई सक्रियता नहीं दिखाई और न ही सरकार के समर्थन में कुछ कहा। उनके समर्थक तो उनके नेता के साथ किए जा रहे दुर्वव्यहार की बाते करते थे जबकि कांग्रेस विधायको का दावा था कि कमलनाथ नाराज विधायको को बहुत कम आंक रहे हैं। कमलनाथ सरकार संकट में थी मगर उसे अपने संकट मोचको पर पूरा भरोसा था। उन्होंने उम्मीद की थी कि दूसरे खेमे में गए विधायको को मना लिया जाएगा। पुस्तक पढ़ने के बाद लगता है जेसे लेखक ने हर घटना का क्षण खुद जिया हो। कांग्रेस की रणनीति मुख्यमंत्री निवास में तैयार की गई। आमतौर पर कमलनाथ ऐसी राजनीति में भरोसा नहीं करते हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि ना तो वे अपनी नींद खराब करते हैं और न ही दूसरे की नींद खराब करने में विश्वास करते हैं। कमलनाथ पर उनके मंत्रियों ने दबाव डाला कि आपकी दिल्ली स्टाइल राजनीति मध्य प्रदेश में नहीं चलेगी। आप शिवराज के प्रति सद्भाव रखेंगे तो आपकी सरकार कभी भी चली जाएगा। सबक सिखाने के लिए पहला नंबर आया गुरुग्राम के होटल आईटीडीसी में उस दौरान मौजूद बीजेपी विधायक संजय पाठक का। संजय काफी लंबे समय तक कांग्रेस में रहे हैं। उनके पिता दिग्विजय सिंह सरकार में मंत्री रह चुके थे। संजय का खनिज खदानों का पुराना खानदानी कारोबार है। संजय तीन बार से विधायक है व शिवराज सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। एक समय वे प्रदेश के सबसे अमीर विधायको में गिने जाते थे। उन पर पहली गाज गिरी व कमलनाथ सरकार ने जबलपुर के सिहोरा तहसील की अगरिया गांव में संजय की कंपनी निर्मला मिनरल्स की दो खदानो बंद करने के आदेश दिए। पुराने सुप्रीम कोर्ट के फैसला का हवाला देकर खरीदारो के उत्खनन पर रोक लगा दी। इस तात्कालिक जीत के बाद कमलनाथ खेमे के मंत्री और समर्थक एक बार फिर कमलनाथ के राजनीतिक अनुभव व मैनेजमेंट के गुण जोर-शोर से गाने लगे। उधर बीजेपी के संपर्को ने बताया कि अभी खेल खत्म नहीं हुआ है बल्कि अभी तो शुरू हुआ है। जिन विधायको पर कांग्रेस व कमलनाथ की नजर है उन पर बीजेपी की नजर नहीं है। और बीजेपी की नजर जिन पर है उन पर कमलनाथ की नजर नहीं है। यह स्पष्ट कर दिया गया कि कमलनाथ की सरकार जाने वाली है। राजनीति के साथ-साथ आर्थिक प्रयास भी किए जा रहे हैं। उन्होंने अपनी किताब में तमाम ऐसी रोचक जानकारियां दी है कि लगता है कि काश ब्रजेश राजपूत इस समय राजस्थान में भी होते व उनकी अगली किताब में इन दिनो चल रहे हालातों को लेकर रोचक जानकारी पढ़ने को मिलती।
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