बेबाक विचार

देश खुला और ठप्प!

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देश खुला और ठप्प!
सब फील कर रहे है देश खुल गया। महामारी खत्म और देश चल पड़ा! पर भीड़ का होना, भीड़ से सरकार की टैक्स कमाई क्या देश चलना होता है? कोई माने या न माने लेकिन पिछले एक महीने के प्रदेशों और देश की घटनाओं का सार है जो गवर्नेंस या तो जीरो है या एयर इंडिया को बेचने जैसा है या चुनाव जीतने में डूबे होने का है। पिछले एक महीने से देश के 13-14 राज्यों का शासन उपचुनावों के चलते ठप्प है। हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल आदि में तमाम मुख्यमंत्री, मंत्री जैसे भी हो उपचुनाव जीतने में सब कुछ दांव पर लगाए हुए हैं तो प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा, त्रिपुरा की सरकारें और मुख्यमंत्री भी आगामी विधानसभा चुनावों के मोड में हैं। ज्योंहि उपचुनावों के नतीजे आए त्योंहि आगामी विधानसभा चुनावों पर सारी पार्टियों, नेताओं, सत्ता और सत्तावानों का ध्यान व पूरा देश भगवान भरोसे।

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उस नाते नोट रखें अगले छह महीने कोरोना वायरस की चुपचाप मार और चुनावी भटकाव के है। ऐसा भटकाव, जिससे न महंगाई पर अकुंश बनेगा और न लोगों की चिंता होगी। कई मायनों में दीपावली बाद की सर्दी कड़ाकेदार होगी। मुख्यधारा के मीडिया की राष्ट्रीय कांव-कांव में त्रिपुरा में हिंदू-मुस्लिम हिंसा, कश्मीर-पुंछ में आंतकियों की घुसपैठ और सैनिक ऑपरेशन, उत्तराखंड-केरल की प्राकृतिक आपदाओं और देश भर में डेंगू, बुखार जैसी बीमारियों से अस्पतालों में लगी भीड़ भले दिखलाई न दे रही है लेकिन लोगों के जीवन में रियलिटी का त्रास दिनोंदिन बढ़ता हुआ है।

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बावजूद इसके देश तो चलता हुआ! प्रधानमंत्री मोदी के भाषण होते हुए और सड़कों पर भीड़ के साथ सब कुछ सामान्य! यहीं भारत महान का सदा सनातनी सत्य है। सहस्त्राब्दियों से ऐसे ही चलते-चलते तो भारत आज भी चलते हुए है तो भला नई बात क्या? तब भी तो प्रजा ने राजे-रजवाड़ों की जीत-हार में जीते-जीते माना हुआ हैं कि कोऊ नृप हो हमे का हानी। यह रियलिटी स्थायी है, यह श्राप स्थायी है कि भारत का राजा हमेशा असुरक्षा में जीयेगा और वह चौबीसों घंटे जीतने, कुर्सी पर बैठे रहने की जिद्द में प्रजा को हमेशा दांव पर लगाए हुए होगा।
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