वर्तमान भारत सरकार आलोचनाओं की चिंता नहीं करती। लेकिन अब उसकी प्रेस पर छापामारी जैसी कार्रवाइयां व्यापक प्रतिक्रिया उत्पन्न कर रही हैं, तो ऐसे विरोध से वह पूरी तरह अप्रभावित बनी रहेगी, यह मानने की कोई वजह नहीं है।
प्रेस फ्रीडम के बारे में जब अगली इंडेक्स रिपोर्ट आएगी, तब भारत सरकार उसे फिर चुनौती देगी, यह अनुमान लगाया जा सकता है। तब कहा जाएगा कि यह भारत की गलत समझ पर आधारित है। यह भी कहा जाएगा कि भारत एक लोकतंत्र है, जहां कानून का राज है। लेकिन किसी को यह छूट नहीं है कि वह भारतीय कानून का उल्लंघन करे। भले पश्चिमी सरकारें भारत में बनी स्थिति को नजरअंदाज किए रहे, लेकिन विश्व जनमत इस तर्क को पहले की तरह ही अस्वीकार करेगा, यह भी तय है। बीबीसी के दिल्ली और मुंबई स्थित दफ्तरों पर आयकर विभाग के कथित सर्वे की खबर ने वैश्विक मीडिया अधिकार और मानव अधिकार संगठनों को झकझोरा है। मसलन, इन प्रतिक्रियाओं पर गौर कीजिए। न्यूयॉर्क स्थित अंतरराष्ट्रीय संस्था कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) ने भारत सरकार से पत्रकारों को परेशान ना करने का आग्रह किया है। रिपोर्टर्स बिदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) ने इस कार्यवाही को भारत सरकार की किसी भी आलोचना को चुप कराने का प्रयास बताते हुए छापे की निंदा की है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा है कि ये छापे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का घोर अपमान हैं। एमनेस्टी ने ध्यान दिलाया है कि पिछले साल टैक्स अधिकारियों ने कई एनजीओ के दफ्तरों पर छापा मारा था, जिनमें ऑक्सफैम इंडिया सहित कई गैर सरकारी संगठन शामिल थें। एमनेस्टी के भारत स्थित दफ्तर को बंद कराया जा चुका है। वैसे भारत में भी इस कार्रवाई की कम आलोचना नहीं हुआ है। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने आयकर विभाग के सर्वे पर चिंता जताई है, तो प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, मुंबई पत्रकार संघ आदि जैसे संगठनों ने भी इसके खिलाफ आवाज उठाई है। कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों ने भी इसे सीधे तौर पर आलोचना को दबाने की कार्रवाई बताया है। जाहिर है, वर्तमान भारत सरकार ऐसी टिप्पणियों की चिंता नहीं करती। अभी वह अपनी सत्ता को इतनी सुरक्षित मानती है कि जो लोग उसके समर्थक नहीं है, उनके बीच अपनी छवि की चिंता उसे नहीं होती। लेकिन अब जबकि ऐसी कार्रवाइयां व्यापक प्रतिक्रिया उत्पन्न कर रही हैं, तो ऐसे विरोध से वह पूरी तरह अप्रभावित रहेगी, यह मानने की कोई वजह नहीं है।