बेबाक विचार

महान असफलताओं के दो साल!

Share
महान असफलताओं के दो साल!

असफलताओं को महान बताना एक किस्म का विशेषण विपर्यय है, लेकिन यह जरूरी है क्योंकि इन दो सालों की असफलताएं इतनी बड़ी हैं कि कोई दूसरा विशेषण उसके साथ न्याय नहीं कर सकता। ये असफलताएं हर किस्म की हैं।

यह भी पढ़ें: आंसुओं को संभालिए साहेब!

यह भी पढ़ें: कमान हाथ में लेने की नाकाम कोशिश!

वैसे तो नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बने सात साल हो गए हैं। लेकिन सिर्फ दो साल का आकलन इसलिए क्योंकि पहले पांच साल के उनके कामकाज पर देश की जनता ने अपनी सहमति दी है। उन्हें पहले से ज्यादा वोट और ज्यादा सीटें देकर फिर से सत्ता सौंपी। नोटबंदी और जीएसटी जैसी महान भूलों को जनता ने क्षमा किया या स्वीकार करके आगे बढ़ने का निश्चय किया। उन पांच सालों की बातें भले इतिहास में जिस रूप में दर्ज हुई हों पर भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में उसे एक सफलता के तौर पर देखा जाएगा। उसकी सफलता थी, जो नरेंद्र मोदी ज्यादा बड़े बहुमत के साथ 30 मई 2019 को फिर से देश के प्रधानमंत्री बने। आजाद भारत के इतिहास में वे तीसरे नेता हैं, जिन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करके लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। अगले हफ्ते उनके दूसरे कार्यकाल का दो साल पूरा होगा। ये दो साल महान असफलताओं के रहे हैं।

यह भी पढ़ें: दुष्चक्र में फंस गया वैक्सीनेशन!

असफलताओं को महान बताना एक किस्म का विशेषण विपर्यय है, लेकिन यह जरूरी है क्योंकि इन दो सालों की असफलताएं इतनी बड़ी हैं कि कोई दूसरा विशेषण उसके साथ न्याय नहीं कर सकता। ये असफलताएं हर किस्म की हैं। इन दो सालों में सरकार शासन और प्रशासन के मुद्दे पर असफल रही तो राजनीतिक और कूटनीतिक मोर्चे पर भी बुरी तरह से पिटी। संविधान प्रदत्त महान, उदात्त मूल्यों का जैसा क्षरण इन दो वर्षों में हुआ वह भी ऐतिहासिक रहा। सामाजिक विभाजन गहरा होने की जो प्रक्रिया सात साल पहले तेज हुई थी वह इन दो सालों में रफ्तार पकड़ चुकी है। अगर घटनाओं का जिक्र करते हुए कहें तो नागरिकता संशोधन कानून, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर, अनुच्छेद 370 की समाप्ति, किसान आंदोलन, कोरोना वायरस की महामारी और अर्थव्यवस्था के ऐतिहासिक संकट और चीन के भारत की जमीन कब्जा करने जैसे किसी भी मसले को सरकार ठीक ढंग से नहीं संभाल सकी।

यह भी पढ़ें: सत्य बोलो गत है!

कोरोना वायरस का संकट सदी का संकट है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार कहा है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद मानवता के सामने आया यह सबसे बड़ा संकट है। फिर इस संकट से निपटने के लिए उनकी सरकार ने क्या किया? भारत में वायरस का पहला केस 30 जनवरी 2020 को आया था और तब प्रधानमंत्री ‘नमस्ते ट्रंप’ कार्यक्रम कराने में बिजी थे। पहला केस आने के एक महीने बाद यह कार्यक्रम हुआ और तब तक भारत सरकार ने कोरोना की महामारी को न देखा, न समझा और न इसका मुकाबला करने के लिए कोई रणनीति बनाई। प्रधानमंत्री ने अपने गृह राज्य में लाखों लोगों को जुटा कर ट्रंप का स्वागत कराया। वह कोरोना का पहला सुपर स्प्रेडर कार्यक्रम था। उसके बाद एक के बाद एक गलतियां होती गईं। प्रधानमंत्री ने बिना सोचे-समझे पूरे देश में चार घंटे की नोटिस पर लॉकडाउन कराया। इसके बाद करोड़ों प्रवासी मजदूरों ने शहरों और महानगरों से अपने गांवों की ओर पैदल चलना शुरू किया। वह हृदय विदारक दृश्य था। वह घटना इतिहास की सबसे बड़ी मानवीय त्रासदियों में से एक है। नरेंद्र मोदी की सरकार ने न सिर्फ यह संकट पैदा किया, बल्कि इस महान संकट के बीच सरकार सामान्य मानवीय सरोकार भी नहीं दिखा सकी।

यह भी पढ़ें: झूठे आंकड़ों से बढ़ेगा संकट

भारत में कोरोना वायरस का संकट खराब शासन की मिसाल बन गया। सरकार कदम कदम पर गलतियां करती गई। दुनिया के सबसे सख्त लॉकडाउन ने देश के करोड़ों लोगों को बेरोजगार बनाया और देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ तोड़ दी। लेकिन सरकार ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कुछ नहीं किया। भारत सरकार ऐसे संकट के समय भी आपदा को अवसर बनाने के सिद्धांत पर काम करती रही। उसने गैर-जरूरी कृषि कानून बनाए और मजदूरों को गुलाम बनाने वाले श्रम सुधार किए और पूरा वित्त वर्ष जाया कर दिया। कृषि कानूनों के विरोध में किसान छह महीने से आंदोलन कर रहे हैं और दिल्ली की सीमा पर बैठे हैं लेकिन सरकार किसानों की समस्या सुलझाने की बजाय उनके आंदोलन को बदनाम करने में लगी है।

यह भी पढ़ें: केरल में सीपीएम का जनादेश के साथ धोखा !

पिछले साल अगस्त के महीने में जब दुनिया के देश वैक्सीन के लिए एडवांस ऑर्डर दे रहे थे और अग्रिम भुगतान कर रहे थे तब भारत की सरकार अनलॉक के खेल में उलझी रही और इस मुगालते में रही कि कोरोना का संकट खत्म हो रहा है। प्रधानमंत्री ने जनवरी में विश्व मंच से ऐलान कर दिया कि भारत ने कोरोना से जंग जीत ली। भारत ऐसा देश बना, जिसने वैक्सीन की मंजूरी देने के बाद भी अपने नागरिकों की जरूरत के मुताबिक वैक्सीन की बुकिंग नहीं की। इसका नतीजा यह हुआ है कि आज फिर पूरा देश बंद है और नागरिक वैक्सीन के लिए भटक रहे हैं। इससे पहले ऑक्सीजन, दवा, अस्पताल में बेड्स और श्मशानों में अंतिम संस्कार आदि के लिए जो हाहाकार मचा वह विफलता की ऐतिहासिक दास्तां है। मोदी सरकार की दूरदृष्टिहीनता और कुशासन ने इन दो सालों में देश को कई दशक पीछे पहुंचा दिया।

यह भी पढ़ें: राज्य कहां से लाएंगे पैसा?

नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने और संशोधित नागरिकता कानून यानी सीएए लागू करने से हुई थी। जरा इस पर विचार करें कि भारत सरकार ने क्या सोच कर नागरिकता कानून में संशोधन किया था? इस कानून को संसद के दोनों सदनों से पास हुए और राष्ट्रपति की मंजूरी मिले डेढ़ साल से ज्यादा हो गए हैं और सरकार ने इसे लागू ही नहीं किया। अपनी मूल भावना में यह कानून गलत नहीं है। दुनिया भर में हिंदुओं का एक देश भारत है और अगर दुनिया के किसी भी हिस्से में प्रताड़ित होकर हिंदू भारत आता है तो उसे इस देश की नागरिकता मिलनी चाहिए। भारत भले हिंदू राष्ट्र नहीं है पर यह धर्म के आधार पर बंटा और बना राष्ट्र है। इसलिए अगर सरकार पड़ोसी मुल्कों से प्रताड़ित होकर आए हिंदुओं को नागरिकता देने का कानून लाती है तो यह अच्छी बात है। लेकिन उसमें सरकार ने धर्म के आधार पर भेदभाव का भी प्रावधान किया और डेढ़ साल से ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद इसे लागू भी नहीं किया। इस कानून के विरोध में पूरे देश में आंदोलन हुए लेकिन सरकार चुपचाप बैठी तमाशा देखती रही। उसने विरोध कर रहे अपने नागरिकों से संवाद करना जरूरी नहीं समझा। यह सरकार की ऐतिहासिक विफलता है, जो उसने असम के विधानसभा चुनाव की चिंता में इसे इतने लंबे समय तक लटकाए रखा। असम में उसने सरकार बना ली पर यह ऐतिहासिक सुधार लंबित ही रहा।

यह भी पढ़ें: बंगाल में टकराव चलता रहेगा

अपने दूसरे कार्यकाल के बिल्कुल शुरू में ही प्रधानमंत्री मोदी ने कूटनीतिक मोर्चे पर ऐतिहासिक गलती की। उन्होंने अमेरिका जाकर तब के राष्ट्रपति और रिपब्लिकन नेता डोनाल्ड ट्रंप के लिए प्रचार किया। सितंबर 2019 में ह्यूस्टन में हुए ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम में उन्होंने अबकी बार ट्रंप सरकार का नारा लगाया और अमेरिका में रहने वाले भारतीय समुदाय के लोगों को यह मैसेज दिया कि वे ट्रंप का साथ दें। इस ऐतिहासिक भूल का सुधार संभव नहीं है। पहली बार किसी देश के प्रधानमंत्री ने दूसरे देश की राजनीति में इस तरह से दखल दिया। इस कार्यक्रम के एक साल बाद हुए चुनाव में ट्रंप हार गए और अब भारत सरकार को बाइडेन प्रशासन के साथ कदमताल करना है। इन दो सालों में कूटनीतिक और सामरिक मोर्चे पर एक बड़ी विफलता चीन के साथ संबंधों में हुई है। पिछले करीब 45 साल में पहली बार ऐसा हुआ कि सीमा पर चीन के साथ हिंसक झड़प हुई और भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हुए। गलवान घाटी की घटना भारत की बड़ी सामरिक विफलता है। चीन ने लद्दाख का पूरा लैंडस्केप बदल दिया है। पैंगोंग झील से लेकर गोगरा हॉटस्प्रिंग और देपसांग तक उसने भारत की जमीन कब्जाई है और प्रधानमंत्री कहते रहे हैं कि भारत की सीमा में न कोई घुसा है और न कोई घुस आया है। देश के लिए ये दो साल बहुत भयावह रहे हैं। लेकिन भाजपा के लिए भी ये दो साल अच्छे नहीं रहे। लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा महाराष्ट्र और झारखंड की सत्ता से बाहर हो गई। हरियाणा में उसकी सीटें कम हुईं और दुष्यंत चौटाला की मदद से सरकार चलानी पड़ रही है। दिल्ली में लगातार दूसरे प्रयास में भी भाजपा को बड़ी विफलता हाथ लगी। बिहार में जैसे-तैसे सरकार बन गई लेकिन नीतीश कुमार के साथ रिश्तों में स्थायी दरार आई हुई है। पश्चिम बंगाल में तीन से 75 सीट पहुंचना बड़ी बात है पर दो सौ सीटें जीतने का दावा फुस्स हो गया। असम में भाजपा और कांग्रेस के वोट में एक फीसदी का अंतर रहा और स्थायी सरकार के लिए कांग्रेस छोड़ कर आए हिमंता बिस्वा सरमा को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा। अब अगले साल पांच राज्यों के चुनावों की चिंता ने नींद उड़ाई हुई है। कोरोना महामारी के बीच गंगा में बहती और गंगा किनारे दफना दी गई लाशें सरकार की ऐतिहासिक विफलता की कहानी सुना रही हैं, जिसे अगले साल के चुनावों से पहले मीडिया के सहारे लोगों की स्मृति से मिटाने का प्रयास चल रहा है।
Published

और पढ़ें