साल भर पहले देश की सड़कों पर युवा आक्रोश दिखा था। बेशक उसमें अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय की भागीदारी ज्यादा थी, लेकिन असल बात सड़कों पर उतरे लोगों आक्रोश है। अब कई महीनों से किसान आंदोलित हैं। उनके विरोध कार्यक्रमों की खबरें दुनिया भर में दूर- दूर तक चर्चित हैं। इस बीच ये खबर आई कि गुजरात के भरूच से सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री मनसुख वसावा ने भाजपा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। ये खबर बेहद अहम है, भले मेनस्ट्रीम मीडिया ने इसे चर्चा के लायक ना समझा हो। वसवा गुजरात भाजपा के बड़े नेता हैं। भरूच चुनाव क्षेत्र से वे लगातार छह बार लोक सभा के लिए चुने गए हैँ। वे पार्टी में आदिवासी समुदाय का प्रतिनिधि रहे हैं। पार्टी भी उन्होंने आदिवासियों के एक खास मसले को लेकर छोड़ी है। वसवा ने कहा है कि संसद के बजट सत्र के बाद लोकसभा के सदस्य के तौर पऱ भी इस्तीफा दे देंगे। इस इस्तीफे की पृष्ठभूमि पर गौर करना चाहिए।
वसावा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पिछले हफ्ते पत्र लिखकर मांग की थी कि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की नर्मदा जिले के 121 गांवों को पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्र घोषित करने संबंधी अधिसूचना वापस ली जाए। वसावा ने पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर उनसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के आदेश को किसानों और स्थानीय लोगों कि हित में वापस लेने का आग्रह किया था। उस पत्र में कहा गया था कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय अधिसूचना के नाम पर सरकारी अधिकारियों ने आदिवासियों की निजी संपत्तियों में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया है। नर्मदा में स्थानीय आदिवासियों को विश्वास में नहीं लिया गया या इस मुद्दे को उन्हें समझाने की कोशिश नहीं की गई है, जिससे उनमें भय और अविश्वास पैदा हुआ है। वसावा ने प्रधानमंत्री मोदी से अधिसूचना वापस लेकर स्थानीय लोगों की जिंदगियों में शांति और व्यवस्था बहाल करने का भी आग्रह किया था। नर्मदा जिले में शूल्पणेश्वर वन्यजीव अभयारण्य के आसपास के इलाके को इको-सेंसिटिव जोन घोषित करने को लेकर स्थानीय आदिवासी लगातार विरोध कार्यक्रम चल रहे हैं। इसी इलाके में जिसमें स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के आसपास के 121 गांव भी शामिल हैं। तो मुद्दा यह है कि मौजूदा सरकार को ऐसी जमीनी हकीकतों की कोई फिक्र नहीं है। उसे भरोसा है कि ऐसे मुद्दों से चुनाव नतीजे तय नहीं होते। क्या जमीन पर ऐसे असंतोष का पनपते रहना और फैलना देश एवं समाज के हित में है, ऐसे सवाल उसे परेशान नहीं करते। यह गहरे अफसोस की बात है।