बेबाक विचार

हटाए गए मुख्यमंत्रियों के बहाने!

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हटाए गए मुख्यमंत्रियों के बहाने!
कैप्टेन अमरिंदर सिंह पंजाब के मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद बहुत नाराज हैं और खुल कर अपनी नाराजगी का इजहार भी कर रहे हैं। वे इस बात से बहुत बौखलाए हुए हैं कि उनको कैसे मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया। वे दो बार में साढ़े नौ साल से ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहे। सोचें, कांग्रेस के उन मुख्यमंत्रियों के बारे में, जो नौ महीने भी पद पर नहीं रह पाते थे। इसलिए उनको शुक्र मनाना चाहिए कि वे सोनिया और राहुल गांधी के नेतृत्व के समय राज्य के मुख्यमंत्री बने। अगर उससे पहले वे मुख्ययमंत्री बने होते तो शायद नौ महीने भी नहीं रह पाते। आजादी के बाद पंजाब में कांग्रेस ने कुल 17 बार मुख्यमंत्री बनाए और कैप्टेन अमरिंदर सिंह से पहले दिग्गज नेता प्रताप सिंह कैरों और ज्ञानी जैल सिंह के अलावा कोई भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। ऐसा लगभग हर राज्य में हुआ। कांग्रेस के गिने-चुने मुख्यमंत्री ही कार्यकाल पूरा कर पाते थे। इसलिए कैप्टेन को अपने आलाकमान का शुक्रगुजार होना चाहिए। Punjab Amarinder Singh Congress कैप्टेन अमरिंदर सिंह की नाराजगी और आलाकमान पर सार्वजनिक हमले के बीच यह भी तुलना हो रही है कि भाजपा ने पिछले छह महीने में पांच मुख्यमंत्री बदल दिए और किसी की मजाल नहीं हुई कि वे आलाकमान के खिलाफ बोलें। ऐसा पहले कांग्रेस में होता था। कांग्रेस के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री ताश के पत्तों की तरह फेंटे जाते थे और कोई सवाल नहीं उठाता था। यह असल में किसी पार्टी के आलाकमान के मजबूत होने का सबूत होता है। इसमें कोई सैद्धांतिक या वैचारिक बात नहीं है। अगर केंद्रीय नेतृत्व मजबूत है तो वह जो चाहे कर सकता है क्योंकि भारत में इसका कोई तय सिद्धांत नहीं है। capt amrendra singh Punjab Amarinder Singh Congress संविधान में लिखा हुआ है कि विधायकों के बहुमत का समर्थन होने तक कोई व्यक्ति मुख्यमंत्री रह सकता है। इससे जाहिर है मुख्यमंत्री का चुनाव विधायक करेंगे। लेकिन असल में यह पार्टी नेतृत्व का विशेषाधिकार होता है कि वह जिसे चाहे उसे मुख्यमंत्री चुने और जब चाहे हटा दे। यहां तक कि जिन नेताओं के चेहरे पर चुनाव लड़ा जाता है और जनता का वोट लिया जाता है उन्हें भी बीच में हटा दिया जाता है। विजय रुपाणी इसकी मिसाल हैं। भाजपा ने 2017 में उनके चेहरे पर चुनाव लड़ा था। सवाल है कि जब जनता से विजय रुपाणी को मुख्यमंत्री बनाने के लिए वोट मांगा गया था तो फिर जनता से राय लिए बगैर कैसे पार्टी नेतृत्व ने उनको हटा दिया? तभी कैप्टेन अमरिंदर सिंह या भाजपा के पांच मुख्यमंत्रियों को बदले जाने के घटनाक्रम के बहाने कुछ जरूरी सवालों पर विचार किया जाना चाहिए और मौजूदा प्रणाली की कमियों को दूर करना चाहिए। सबसे पहले यह विचार हो कि क्या मौजूदा संसदीय प्रणाली में किसी पार्टी को अध्यक्षीय प्रणाली की तरह नेता के नाम की घोषणा करके चुनाव लड़ना चाहिए? इसका जवाब है- कतई नहीं! जब तक संविधान में संशोधन करके अध्यक्षीय प्रणाली नहीं अपना ली जाती है तब तक प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री का दावेदार घोषित करके चुनाव नहीं लड़ना चाहिए। ऐसा करके पार्टियां संसदीय प्रणाली और संविधान की व्यवस्था का मान घटा रही हैं। जब पहले ही मुख्यमंत्री घोषित करके चुनाव लड़ा जाएगा तो फिर क्या उसका विधायक दल का नेता चुना जाना औपचारिकता नहीं रह जाएगी? जब उसे सीधे जनता ने नेता चुन दिया तो फिर विधायक नेता चुनें न चुनें उससे क्या फर्क पड़ता है! विधायक तो खुद उसके नाम से चुनाव जीते होंगे! दूसरा सवाल यह है कि सीधे जनता के वोट से चुने गए किसी नेता को पार्टी आलाकमान कैसे हटा पाएगा? तभी यह समय है कि या तो संविधान में बदलाव करके अध्यक्षीय प्रणाली अपनाई जाए या फिर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री घोषित करके चुनाव लड़ने की प्रथा बंद हो। Read also इलाज-पत्र की नई पहल rahul gandhi charanjitsingh channi Punjab Amarinder Singh Congress दूसरा अहम मसला यह है कि क्या राजनीति में रिटायर होने की उम्र तय होनी चाहिए? कैप्टेन अमरिंदर सिंह 80 साल के होने वाले हैं और वे मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने से इतने नाराज हैं कि उन्होंने सोनिया, राहुल और प्रियंका तीनों के खिलाफ मोर्चा खोला और अपनी पुरानी पार्टी के खिलाफ बगावत के लिए तैयार हैं। सोचें, क्या वे इसे अपना अधिकार मानते हैं कि वे जब तक जीवित रहेंगे तब तक पार्टी उनको मुख्यमंत्री बना कर रखे या मुख्यमंत्री पद का इकलौता दावेदार माने? केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने और मोदी व अमित शाह के भाजपा की कमान संभालने के बाद भाजपा में अघोषित रूप से यह नियम बना है कि 75 साल से ऊपर से नेताओं को सरकार या राजनीति में कोई जिम्मेदारी नहीं दी जाएगी। हालांकि इसके कुछ अपवाद भी हैं लेकिन मोटे तौर पर यह नियम लागू है। इस नियम को घोषित रूप से लागू करने का समय है। हर पार्टी को यह तय करना चाहिए कि एक निश्चित उम्र के बाद कोई भी नेता चुनाव नहीं लड़ेगा और सरकार या पार्टी में कोई पद नहीं लेगा। राजनीति और सरकार में नए लोगों को जगह देने और नए विचारों के लिए स्पेस बनाने के लिए यह जरूरी है। अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो राजनीति में युवाओं की भागीदारी नहीं बढ़ेगी। ध्यान रहे भारत दुनिया में सबसे ज्यादा युवा आबादी वाला देश है लेकिन एकाध अपवादों को छोड़ दें तो राजनीति और सरकारों की कमान उन लोगों के हाथ में है, जो पिछली सदी के सातवें-आठवें दशक में राजनीति करते थे। यह युवाओं के साथ एक तरह का छल है। यह फालतू का तर्क है कि जनता अगर किसी नेता को पसंद करती है तो उसे कैसे रिटायर किया जाए। अगर पार्टियां जनता के सामने विकल्प ही नहीं रखेंगी तो लोग क्या करेंगे? वे तो उसी को चुनते रहेंगे, जिसे पार्टियां टिकट देकर चुनाव लड़ाती हैं। Read also सचमुच जैसा भारत में हुआ वैसा कहीं नहीं हुआ! नेताओं के रिटायर होने की उम्र सीमा तय करने के साथ साथ उनके पद का कार्यकाल भी तय हो। जैसे अमेरिका में तय है कि कोई भी व्यक्ति दो बार से ज्यादा राष्ट्रपति नहीं बन सकता है। कोई नेता लगातार दूसरी बार राष्ट्रपति बनता है तो दूसरी बार में मंत्रियों की उसकी पूरी टीम भी बदल जाती है। भारत में भी इसी तरह पद का कार्यकाल तय होना चाहिए। ऐसा नियम नहीं होने की वजह से ही भारत में कांग्रेस की सरकार बनती है तो वहीं लोग मंत्री बनते हैं, जो चार दशक पहले इंदिरा या राजीव गांधी की सरकार में मंत्री थे और भाजपा में भी वो लोग मंत्री बनते हैं, जो अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री थे। हालांकि भाजपा में नरेंद्र मोदी ने इसे बदला है। rahul gandhi लेकिन उनका बदलाव उस तरह का नहीं है, जैसा अमेरिका में होता है। उनका बदलाव इसलिए नहीं है कि नए मंत्री नई ऊर्जा और नए विचार लेकर आएंगे, जिससे देश का भला होगा। उन्होंने बदलाव इसलिए किया है ताकि निजी तौर पर उनके प्रति निष्ठावान लोग ही सरकार में रहें। इसलिए उम्र की सीमा और पद का कार्यकाल तय करने के साथ ही योग्यता का भी एक पैमाना होना चाहिए। मंत्री बनने की सिर्फ यह योग्यता पर्याप्त नहीं है कि वह सांसद हो और आलाकमान के प्रति निष्ठावान हो। उसकी बौद्धिक क्षमता, विषय की उसकी जानकारी और भविष्य की दृष्टि को भी एक पैमाना बनाना चाहिए। अगर पार्टियां इसके लिए तैयार होती हैं कि नेताओं के रिटायरमेंट की एक उम्र होगी, कोई भी सरकारी पद संभालने के लिए दो या तीन बार की सीमा होगी, पद के लिए योग्यता को पैमाना बनाया जाएगा, चुनावों में निश्चित मात्रा में टिकट युवाओं, महिलाओं को दी जाएगी, एक व्यक्ति एक से ज्यादा पद नहीं संभालेंगे और पार्टियों में शीर्ष नेतृत्व का रोटेशन होगा यानी नेतृत्व बदलता रहेगा तभी वास्तविक अर्थों में भारत में राजनीति बदलेगी और किसी बड़े व क्रांतिकारी बदलाव की उम्मीद जगेगी। पुनश्च- यहां चीन और रूस की मिसाल देने की जरूरत नहीं है, जहां बरसों से एक ही नेता हैं। भारत इन देशों की तरह नहीं हो सकता है क्योंकि लोकतंत्र भारत की आत्मा है और उसे बचाए रखने के लिए पश्चिम के विकसित लोकतांत्रिक देशों के मॉडल से ही तुलना की जा सकती है।
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