बेबाक विचार

चीन-विरोधी चौगुटा ?

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चीन-विरोधी चौगुटा ?
अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया और भारत- इन चारों देशों के चौगुटे की बैठक, जो तोक्यो में हुई, वह अजीब-सी रही। इन चारों देशों के विदेश मंत्री एक-दूसरे से साक्षात मिले और चारों ने प्रशांत-क्षेत्र की शांति और सुरक्षा के बारे में विचारों का आदान-प्रदान किया। यह चौगुटा अमेरिका की पहल पर बनाया गया है। जैसे अमेरिका ने सोवियत संघ के विरुद्ध नाटो और सेन्टो के सैन्य-गुट खड़े किए थे, वैसे ही वह अब चाहता है कि चीन के विरुद्ध चक्र-व्यूह खड़ा किया जाए। यह डोनाल्ड ट्रंप के दिमाग की उपज है। राष्ट्रपति बराक ओबामा हेनरी कीसिंजर के सपने को आगे बढ़ाना चाहते थे और एशिया में चीन को विशेष महत्व देना चाहते थे। ट्रंप का रवैया भी शुरु-शुरु में यही था लेकिन व्यापार के मामले में चीन का कड़ा रुख ट्रंप की मुसीबत बन गया। ट्रंप ने पहले तो चीन के प्रति नरम-गरम रवैया अपनाया लेकिन कोरोना महामारी के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराकर उन्होंने उसके विरुद्ध खुला वाग्युद्ध छेड़ दिया। अब वे चाहते हैं कि चीन को सबक सिखाया जाए। इसीलिए उनके विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने तोक्यो-बैठक में चीन के खिलाफ जमकर आरोप लगाए। उन्होंने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का नाम लेकर कहा कि उसके शोषण, भ्रष्टाचार और दादागीरी का डटकर विरोध किया जाना चाहिए। उन्होंने हांगकांग और ताइवान के खिलाफ किए जा रहे चीनी अत्याचारों का भी जिक्र किया। उन्होंने ‘भारत-प्रशांत क्षेत्र’ को चीनी दबाव से मुक्त करने का नारा भी लगाया। भारत को खुश करने के लिए उन्होंने लद्दाख में हुई मुठभेड़ का भी जिक्र किया। उन्होंने कोरोना महामारी का भी सारा दोष चीन के मत्थे मढ़ दिया। लेकिन शेष तीनों देशों के विदेश मंत्रियों के जो भाषण हुए, उनमें किसी ने भी चीन का नाम तक नहीं लिया। उनमें से कोई चीन से पंगा लेने को तैयार नहीं था। उनके भाषणों का सार यही था कि ‘हिंद-प्रशांत क्षेत्र’ में ‘कानून का राज’ चलना चाहिए और सामुद्रिक मार्ग सबके लिए खुले होने चाहिए। जब चारों विदेश मंत्री जापान के नए प्रधानमंत्री योशिहिद सुगा से मिलने गए तो उन्होंने भी यही कहा। दूसरे शब्दों में चौगुटे के शेष अन्य तीन सदस्य अमेरिकी फिसलपट्टी पर फिसलने को तैयार नहीं थे। इसीलिए कोरोना-काल में हुई साक्षात बैठक ने कोई संयुक्त वक्तव्य जारी नहीं किया। हां, चीनी सरकार ने अमेरिकी रवैए की भर्त्सना करते हुए कहा कि किसी अन्य राष्ट्र की टांग खींचने के बजाय इस तरह के संगठनों को परस्पर सहयोग बढ़ाने पर जोर देना चाहिए।
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