बेबाक विचार

भारत में भी राफेल की जांच जरूरी

Share
भारत में भी राफेल की जांच जरूरी
Raffle investigation in india : राफेल लड़ाकू विमान सौदे की भारत में भी जांच जरूर होनी चाहिए। जांच सिर्फ इसलिए नहीं होनी चाहिए कि विपक्षी पार्टियां इसमें भ्रष्टाचार के आरोप लगा रही हैं और जांच की मांग कर रही हैं, बल्कि इसलिए होनी चाहिए क्योंकि फ्रांस में इसकी जांच शुरू हो गई है। याद करें जब भारत में इस सौदे को लेकर सवाल उठे थे और इसमें घोटाले के आरोप लगे थे तब भारत सरकार की ओर से क्या कहा गया था? भारत सरकार ने कहा था कि यह दो सरकारों के बीच का सौदा है इसलिए इसमें घोटाले का सवाल ही नहीं उठता है और इसलिए इसकी जांच की जरूरत नहीं है। दो सरकारों के बीच का सौदा होने के बावजूद अगर एक सरकार ने अपने यहां जांच के आदेश दे दिए तो यह नियम और नैतिकता दोनों का तकाजा है कि दूसरी सरकार भी जांच कराए क्योंकि रिश्वत लेने-देने और पक्षपात करने के आरोप दोतरफा हैं। फ्रांस की न्यायपालिका के आदेश पर एक स्वतंत्र जज इस मामले की जांच कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि फ्रांस में भी आसानी से जांच शुरू हुई। वहां भी 2019 में पहली बार शिकायत सामने आने के बाद मामले को दबा दिया गया था। फ्रांस के एक मीडिया समूह मीडियापार्ट के पत्रकार यैन फिलिपपिन ने दावा किया था कि उनकी रिपोर्ट के आधार पर जब इस सौदे की जांच की मांग हुई तब उस समय के नेशनल फाइनेंशियल प्रॉसीक्यूटर यानी पीएनएफ एलियन हाउले ने इस मामले को दबा दिया था। लेकिन मौजूदा पीएनएफ ज्यां फ्रांस्वा बोहर्ट ने जांच के आदेश दे दिए हैं। फ्रांस के स्वतंत्र जज इस सौदे में सिर्फ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच नहीं करेंगे, बल्कि किसी भी स्तर पर पक्षपात किए जाने की भी जांच करेंगे।

यह भी पढ़ें: यह पशुता नहीं तो क्या?

फ्रांस में दोनों तरह के आरोप लगे हैं। सौदे के लिए किसी बिचौलिए को भारत में एक मिलियन यूरो यानी करीब नौ करोड़ रुपए की रिश्वत दिए जाने का भी आरोप है तो ऑफसेट कांट्रेक्ट में पक्षपात किए जाने का भी आरोप है। इसके उलट भारत में सिर्फ ऑफसेट कांट्रेक्ट का मुद्दा उठा है। मीडिया में यह सवाल उठा था कि अनिल अंबानी की जिस कंपनी को विमान बनाने का कोई अनुभव नहीं है उसे कैसे ऑफसेट कांट्रेक्ट मिला। तभी अगर फ्रांस में इन दोनों पहलुओं से जांच हो रही है तो भारत में भी इन दोनों आरोपों की जांच होनी चाहिए। आखिर बोफोर्स सौदे के समय भी स्वीडन में ही सबसे पहले यह आरोप लगा कि कंपनी ने भारत में किसी बिचौलिए को रिश्वत दी। उसके बाद ही भारत में भी जांच शुरू हुई थी।

यह भी पढ़ें: कश्मीर फिर बने पूर्ण राज्य

असल में यह पूरा सौदा कई मायने में बोफोर्स के मुकाबले ज्यादा विवादित है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले से चल रहे सौदे को रद्द करके नया सौदा किया था और पुरानी सारी शर्तों को बदल दिया था। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने फ्रांस की कंपनी दासो एविएशन ने 126 राफेल विमान खरीदने का सौदा किया था। इसमें 18 तैयारशुदा विमान खरीदे जाने थे और बाकी 108 विमानों का निर्माण भारत में किया जाना था। भारत में सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को इस सौदे में शामिल किया था। यूपीए सरकार के समय किए गए सौदे के मुताबिक दासो एविएशन को तकनीक हस्तांतरित करनी थी और उस तकनीक पर हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स को भारत में ही विमान बनाने थे। प्रधानमंत्री मोदी ने इस पूरे सौदे को बदल दिया। प्रधानमंत्री बनने के एक साल के भीतर वे फ्रांस के दौरे पर गए और 10 अप्रैल 2015 को उन्होंने नए सौदे का ऐलान कर दिया। नए सौदे के मुताबिक भारत सिर्फ 36 तैयार विमान खरीदेगा। यह समझ में नहीं आने वाली बात है कि जब भारतीय वायु सेना को ज्यादा लड़ाकू विमानों की जरूरत है और उसी जरूरत के हिसाब से 126 राफेल विमान खरीदा जाना था तो बाद में सिर्फ 36 विमान खरीदने का फैसला क्यों हुआ? यह भी समझ में नहीं आने वाली बात है कि नए सौदे में तकनीक हस्तांतरण की शर्त क्यों नहीं रखी गई? सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स को हटा कर अनिल अंबानी की कंपनी को ऑफसेट पार्टनर क्यों बनाया गया? पहले ऑफसेट करार 30 फीसदी का होना था, लेकिन बाद में उसे बढ़ा कर 50 फीसदी कर दिया गया। यह देश में किसी भी सौदे में सबसे बड़ा ऑफसेट करार है। यह इसके बावजूद हुआ कि अनिल अंबानी की कंपनी को विमानन सेक्टर का या रक्षा सेक्टर में उत्पादन का कोई अनुभव नहीं था। यूपीए सरकार के समय एक विमान की कीमत 590 करोड़ रुपए तय की गई थी, जो नए सौदे में बढ़ कर 1,690 करोड़ के करीब पहुंच गई। यानी कीमत तीन गुनी हो गई। भारत सरकार के बचाव में कहा गया कि नए सौदे के तहत भारत के हिसाब से विमान में कुछ बदलाव किए गए हैं। लेकिन क्या तकनीकी बदलाव की कीमत विमान की कीमत से दोगुनी हो सकती है? इस सौदे को लेकर विवादों की शृंखला यही खत्म नहीं होती है।

Raffle investigation in india

फ्रांस के एक गैर सरकारी संगठन ‘शेरपा’  ने वहां की अदालत में जो याचिका लगाई थी उसमें मुख्य रूप से दो आरोप लगाए गए थे। पहला आरोप सौदे के लिए भारत में किसी बिचौलिए को एक मिलियन यूरो यानी करीब नौ करोड़ रुपए की रिश्वत दिए जाने और दूसरा इस सौदे में ऑफसेट पार्टनर बनाई गई कंपनी को फायदा पहुंचाने का। फायदा पहुंचाने या पक्षपात करने का आरोप भारत और फ्रांस दोनों के लिहाज से बहुत अहम है। भारत में भले जांच नहीं हुई है और जांच की मांग करने वाली सारी याचिकाएं और पुनर्विचार याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट से खारिज हो गई हैं लेकिन यह संदेह सबके मन में बना हुआ है कि जिस कंपनी की स्थापना दस दिन पहले हुई थी और जिसे किसी तरह का अनुभव नहीं था उसे इतना बड़ा काम कैसे मिला?

यह भी पढ़ें: कांग्रेसी की राज्यों में बदली रणनीति

असल में यूपीए सरकार के समय का सौदा खत्म करा कर नया सौदा कराने में अनिल अंबानी और उनके लोगों की बड़ी भूमिका बताई जा रही है। बदले में अंबानी को साफ तौर पर दो फायदा हुआ दिख रहा है। पहला फायदा तो यह हुआ कि उनकी कंपनी को 30 हजार करोड़ रुपए का ऑफसेट करार मिला। सोचें, 36 विमानों का सौदा 59 हजार करोड़ का है और अंबानी की कंपनी को ऑफसेट करार 30 हजार करोड़ रुपए का है! अंबानी को दूसरा फायदा फ्रांस की सरकार ने पहुंचाया है। फ्रांस में अनिल अंबानी की एक कंपनी पहले से पंजीकृत थी। ‘रिलायंस अटलांटिक फ्लैग फ्रांस’ नाम की इस कंपनी पर कई किस्म की वित्तीय गड़बड़ियों के आरोप लगे थे। कंपनी के ऊपर 2007 से 2010 के बीच की अवधि के लिए छह करोड़ यूरो का बकाया बना था, जिसका भुगतान करने को कहा गया था। तब अनिल अंबानी ने कोई 70 लाख यूरो में मामला निपटाने की पेशकश की थी, जिसे खारिज कर दिया गया। बाद में 2010 से 2012 के बीच नौ करोड़ यूरो का अतिरिक्त कर भुगतान करने को कहा गया। इस तरह अंबानी की कंपनी के ऊपर कुल कर बकाया करीब 15 करोड़ यूरो यानी 11 सौ करोड़ रुपए से ज्यादा का हो गया था। लेकिन भारत सरकार के साथ राफेल का सौदा होने के छह महीने के बाद फ्रांस की सरकार ने अंबानी का पूरा कर माफ कर दिया। Raffle investigation in india

यह भी पढ़ें: देश-विदेश में आम की कूटनीति

सवाल है कि अनिल अंबानी ने फ्रांस की सरकार के लिए ऐसा क्या किया, जिसकी वजह से उसने इतना बड़ा कर माफ कर दिया? क्या भारत के साथ सौदा कराने के बदले में उन्हें यह राहत दी गई? आखिर नए सौदे से सबसे ज्यादा फायदा फ्रांस को हुआ। उसे विमान की तीन गुना ज्यादा कीमत मिली और तकनीक भी भारत को नहीं देनी पड़ी। लेकिन मामला इतना ही नहीं है। अनिल अंबानी ने उस समय के फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद को भी खुश किया था। खबर आई थी कि उन्होंने ओलांद की गर्लफ्रेंड के लिए रिलायंस एंटरटेनमेंट के बैनर से एक फिल्म बनाने का सौदा भी कर लिया था। तभी फ्रांस्वा ओलांद इस मामले में बुरी तरह से फंसे हैं। स्वतंत्र फ्रेंच जज उनकी जांच करेंगे और साथ ही उनकी सरकार में वित्त मंत्री रहे मौजूदा राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की भी जांच होगी। मौजूदा विदेश मंत्री और ओलांद की सरकार में रक्षा मंत्री रहे ज्यां यवेस ले द्रां की भी जांच होगी। Raffle investigation in india सोचें, इस सौदे से फ्रांस को सबसे ज्यादा फायदा हुआ इसके बावजूद खरीद-फरोख्त में नैतिकता के उच्च मानदंड कायम रखने के लिए वहां की सरकार और अदालत जांच करा रही है तो भारत को जांच से क्यों पीछे हटना चाहिए? अगर भारत सरकार ने कोई गड़बड़ी नहीं की है और उच्च नैतिक मानदंडों का पालन किया गया है तो भारत को भी स्वतंत्र जांच करानी चाहिए। अदालत ने भले जांच की मांग करने वाली याचिकाएं खारिज कर दी हैं लेकिन संदेह अभी खत्म नहीं हुआ है। इसलिए सरकार को पहल करके जांच की मंजूरी देनी चाहिए ताकि लोगों का संदेह दूर हो सके। Raffle investigation in india
Published

और पढ़ें