बेबाक विचार

जड़ कहीं और है

ByNI Editorial,
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जड़ कहीं और है
असल समस्या देश की स्वास्थ्य व्यवस्था है, जिस पर से लोगों का भरोसा लगातार उठता गया है।  आम राय बन गई है कि अस्पताल पैसा ऐंठने के अड्डे बन गए हैँ। आखिर इसके लिए दोषी कौन है? क्या चिकित्सा का उत्तरोत्तर निजीकरण और व्यावसायीकरण इसके लिए दोषी नहीं है?   राजस्थान में एक महिला डॉक्टर की आत्महत्या के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जो सख्त और शीघ्र कदम उठाए, वे स्वागतयोग्य हैँ। लेकिन मुख्यमंत्री की संवेदनशीलता की तारीफ करते हुए भी यह कहना जरूरी है कि इससे ये समस्या हल नहीं होगी। गौरतलब है कि दौसा में डॉ अर्चना शर्मा ने एक मरीज की मौत का जिम्मेदार ठहराए जाने के बाद आत्महत्या कर ली। स्त्री रोग विशेषज्ञ 42 वर्षीय शर्मा अपने पति के साथ एक निजी अस्पताल चलाती थीं। हफ्ते भर पहले उनके अस्पताल में प्रसव पीड़ा से गुजर रही एक 22 वर्षीय महिला को लाया गया था। लेकिन प्रसव कक्ष में इलाज के दौरान ही महिला की मौत हो गई। उसके बाद उसके रिश्तेदारों ने उसकी मौत के लिए अस्पताल को जिम्मेदार ठहराया और लापरवाही का आरोप लगाया। उनकी मांग पर पुलिस ने अर्चना शर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली। उन पर दफा 302 के तहत हत्या का आरोप लगा दिया। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक इन आरोपों से आहत होकर शर्मा ने अस्पताल के ही एक कमरे में खुद को फांसी लगा ली। उनकी लिखी एक चिट्ठी भी बरामद की गई। उसमें उन्होंने लिखा था कि पीड़ित महिला की मौत एक्यूट पोस्टपार्टम हैमरेज (पीपीएच) के कारण हुई। इस अवस्था में प्रसव के दौरान बहुत ज्यादा खून बह जाता है।  Read also कांग्रेस नेतृत्व से पार्टी नहीं संभल रही शर्मा ने लिखा- " मैंने कोई गलती नहीं की और किसी की जान नहीं ली। पीपीएच एक गंभीर समस्या है, इसके लिए डॉक्टरों का परेशान करना बंद कीजिए। मेरी मौत शायद मेरी बेगुनाही साबित कर दे। कृपया निर्दोष डॉक्टरों को परेशान न करें।" समझा जा सकता है कि डॉ शर्मा गहरी पीड़ा में थीं। लेकिन जिन दो पुलिसकर्मियों पर अब मुख्यमंत्री के आदेश पर कार्रवाई शुरू की गई है, उनके नजरिए से देखें, तो ऐसी अवस्था में वे क्या करते, जब पीड़ित परिवार मामला दर्ज कराने पर तुला हो? वे मामला दर्ज नहीं करते, तो दूसरा पक्ष नाराज होता। पुलिस अधीक्षक का तबादला तो सिरे से दिखावटी कार्रवाई है। असल समस्या देश की स्वास्थ्य व्यवस्था है, जिस पर से लोगों का भरोसा उठ गया है।  आम राय बन गई है कि अस्पताल पैसा ऐंठने के अड्डे बन गए हैँ। आखिर इसके लिए दोषी कौन है? क्या चिकित्सा का उत्तरोत्तर निजीकरण और व्यावसायीकरण इसके लिए दोषी नहीं है? अगर समस्या की जड़ यह है, तो समाधन इसी के इर्द-गिर्द ढूंढा जाना चाहिए। बाकी तमाम बातें दिखावटी हैँ। 
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