बेबाक विचार

नवाब के संपत्तियों का बंटवारा

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नवाब के संपत्तियों का बंटवारा
मेरे एक मित्र हाईकोर्ट के जज थे। वे अकसर कहा करते थे कि हर इंसान को कोर्ट कचहरी से दूर रहना चाहिए और यह बात याद रखनी चाहिए कि अच्छे से अच्छा फैसला भी बुरे से बुरे समझौते से बेहतर होता है। अतः अगर अदालती झगड़े की नौबत आए तो कोशिश कर फैसला कर लेना चाहिए। हाल में जब उत्तर प्रदेश प्रदेश के रामपुर के नवाब की संपत्ति के बंटवारे को लेकर अखबारों में खबर पढ़ी तो यह घटना याद आ गई। नवाब रामपुर की संपत्ति अरबों रुपए की थी व उस पर कब्जा हथियाने को लेकर दशकों से अदालती विवाद चल रहा है। हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि मृतक नवाब की संपत्ति का फैसला शरीया कानून के मुताबिक ही किया जाए। रामपुर के नवाब की संपत्ति पर 16 वारिसों का मुकदमा चल रहा है। करीब एक दशक पूर्व इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि नवाबों की परंपरा के मुताबिक उसकी संपत्ति का वारिस वही होता है जिसे सरकार नवाब पद की मान्यता प्रदात करती है। अब सुप्रीम कोर्ट ने शरीया कानून के मुताबिक संपत्ति का विभाजन किए जाने का फैसला सुनाया है। मालूल हो कि देश के बंटवारे के समय नवाब के परिवार के तमाम सदस्य पाकिस्तान चले गए थे। उनमें से कुछ मर भी गए थे। कभी रामपुर रूहेलखंड रिसायत का हिस्सा था और उसके नवाब अली रजा खान उसके अंतिम नवाब थे। उनकी संपत्ति अरबों रुपए की आंकी जाती है। उनकी संपत्ति में चार सौ एकड़ का तो आमों का बाग ही था जिसमें बने महल में 300 कमरे थे। इस परिवर के सदस्य अपनी संपत्ति व हैसियत बचाने के लिए कांग्रेस में रहे व उसके टिकट पर लोकसभा पहुंचते थे। नवाब अली रजा खान के बेटे अली रजा खान बहादुर थे। उनका 57 साल की आयु में निधन हो गया व उनके पिता की तरह कर्बला ईराक में दफना दिया गया। रामपुर राज्य के नवाब को ब्रिटिश सरकार 11 तोपों का सेल्यूट देती थी। आजादी के बाद टेहरी गढवाल व बनारस राज्यों की तरह रामपुर राज्य की यूनाईटेड प्रोविस (उत्तर प्रदेश) में शामिल हो गया। यह शासन 945 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ था व रामपुर शहर उसकी राजधानी था। मुर्जता अली खान के पहले बेटे का नाम मुराद था जोकि मुराद मियां के नाम से जाने जाते थे। वहां के नवाब रहे नवाब जुलिफकार अली खान की विधवा बेगम नूर बानो 1999 कांग्रेस से टिकट पर चुनाव जीती। हालांकि वे 2004 व 2009 के चुनाव हार गई। मुर्जता अली खान व जुलिफकार अली खान दोनों ही सगे भाई थे व नवाब पदवी का इस्तेमाल करते थे। वे दोनों राजनीतिक प्रतिस्पर्धी थे। वहीं रामपुर के नवाब अहमद अली खान थे। कुत्ते पैदा करने का शौक था। उन्होंने अंग्रेजी हाउड व अफगानी खूंखार कुत्ते के जरिए उनकी नस्ल रामपुर हाउड पैदा की थी। यह परिवार खाने का बहुत शौकीन था व 1857 की सैनिक बगावत के बाद मुगलशाही परिवार के खानसामे अंग्रेजों से अपनी जाने बचाने के लिए रामपुर के नवाब के यहां चले गए थे। वे उन्हें मुगलाई शाही खाना बनाकर खिलाते थे। रामपुर दिल्ली के पास एक सुरक्षित जगह थी क्योंकि रामपुर के नवाब अंग्रेजों के काफी खास थे। उनकी देखा-देखी, कश्मीर, अवध व हैदराबाद के खानसामे भी रामपुर आने लगे। वे लोग रामपुरी मछली, रामपुरी कोरम, रामपुरी मटन कबाब, दूधिया बिरायानी व अदरक का हलवा बनाने के लिए जाने जाते थे। आज भी खानपान के कार्यक्रम में टीवी चैनलों पर आए दिन रामपुर के नवाब के परिवार में तैयार किया जाने वाला खाना देखने को मिल जाता है। बेगम नूर बानो के बेटे नवाब कालिम अली खान भी सांसद व विधायक रह चुके हैं। नवाब के तीन बेटे व पांच बेटियों की उनकी संपत्ति का वारिस माना जाता है। हाल ही में अदालती आदेश के बाद रामपुर के प्रशासन ने उस महल का ताला खोलकर शस्त्र व खजाने का आकलन करने की कोशिश की। हालांकि परिवार के ही कुछ सदस्यों ने दूसरे सदस्यों पर संपत्ति की हेराफेरी करने व उसे बेच देने का आरोप लगाया। सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति का आकलन कर उसे परिवार के सदस्यों में बांट देने का फैसला किया। उनकी तीन बेटियों ने पाकिस्तान में शादी की। अतः उनके हिस्से की संपत्ति शत्रू संपत्ति कहलाएगी व उस पर भारत सरकार का अधिकार होगा। माना जाता है कि जिस संपत्ति का बंटवारा होगा वह अरबों रुपए की है। अंग्रेजों के समय में रामपुर का अपना अलग रेडियो स्टेशन हुआ करता था। यह भी एक संयोग है कि कभी रामपुर को उसके चाकूओं के कारण जाना जाता था। बाद में वह सपा नेता आजम खान के कारण जाना जाने लगा जोकि रामपुर के नवाब के परिवार के पुरविरोधी है। उन्हें बुरा-भला कहने से ही अपनी बात शुरू करते हैं। वह आजकल जेल में हैं व वारिस अपना हिस्सा बांटने में लगे हैं। जिसमें रत्नजड़िया सोने व जेवराहत हैं।
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