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चीफ जस्टीस का सांसद बनना

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चीफ जस्टीस का सांसद बनना
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा राज्यसभा में मनोनीत किए जाने के कारण राजनीतिक हलको में जबरदस्त विवाद खड़ा हो गया है। खासतौर से कांग्रेसी सरकार के इस फैसले को अनैतिक करार दे रहे हैं। रंजन गोगोई को मनोनीत किए जाने की कुछ वाजिब वजह भी बताई जा रही है। इसकी असली वजह उनके द्वारा अपने कार्यकाल के दौरान दिए गए अहम फैसले व उनका एक ‘मीटू’ विवाद में फंसना रहा है।असम के डिब्रूगढ़ इलाके में जन्मे जस्टिस रंजन गोगोई के पिता कांग्रेसी थे। वे 2018 से 2019 तक 13 महीने के लिए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे। उन्होंने एतिहासिक व विवादास्पद अयोध्या जन्म भूमि मामले में वहीं की जमीन पर राम मंदिर का निर्माण सही ठहराने वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ की अध्यक्षता की थी। उनके भाई अंजन गोगोई भारतीय वायुसेना में एयर मार्शल रहे थे। वे 1978 को बार में शामिल हुए व गौहाटी हाईकोट में वकालत करने लगे। वे 2001 में स्थानीय जज बनाए गए। वे 2010 में पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट भेजे गए जो 2011 में वहा चीफ जस्टिस बने व अगले साल उन्हें पदोन्नति देकर सुप्रीम कोर्ट में गए। उन्होंने 2016 में मुंबई हाईकोर्ट के उस फैसले को सही ठहराया था जिसमें कहा गया था कि आयकर विभाग को किसी भी संपत्ति का पुर्नमूल्यांकन करने का अधिकार है। यह मामला अभिनेता अमिताभ बच्चन की कौन बनेगा करोड़पति से होने वाली आय के मूल्यांकन का था।  इस कार्यक्रम से होने वाली आय 8.11 करोड़ घोषित की थी जबकि आयकर विभाग का आकलन था कि यह आय 56.41 करोड़ रुपए थी। 9 नवंबर 2019 को रंजन गोगोई व चार अन्य सुप्रीम कोर्ट के जजो (शरद अरविंद बोबड़े, धनंजय यशवंत चंद्रचूड़, अशोक भूषण व अब्दुल नज़ीर) ने सर्वसम्मति से लगातार 40 दिनों तक अयोध्या मामले की सुनवाई करके भारतीय पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट को सही ठहराते हुए उस जगह पर मंदिर होने की बात को सही ठहराते हुए वह जमीन मंदिर निर्माण के लिए दे दी थी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के तीन अन्य जजो जस्टिस चेलमेश्वर, मदन बी लोकुर व कुरियन जोसेफ के साथ मिलकर सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहली बार प्रेस कांफ्रेंस कर सुप्रीम कोर्ट के काम-काज में तरीके को गलत ठहराते हुए कहा था कि इससे यहां का कामकाज प्रभावित हो रहा है। यह मसला जज बीएच लोया कीमृत्यु के बारे में था जोकि 2004 में सोहराबुद्दीन शेख मामले की सुनवाई कर रहे थे। जस्टिस चेलमेश्वर 30 जून 2018 को रिटायर हो गए व गोगोई सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जज बन गए। अगले ही साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्व महिला कर्मचारी ने हलफनामा दाखिल कर गोगोई पर उसके साथ यौन उत्पीड़न के लिए परेशान करने का आरोप लगाया। रंजन गोगोई ने उसके आरोप को गलत करार देते हुए कहा कि न्यायपालिका को प्रभावित करने के लिए यह आरोप लगाया गया है। तीन जजो की जज समिति ने इस आरोप को गलत ठहरा दिया। इस पर जाने-माने बुद्धिजीवियो व हस्तियो ने कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि इस मामले की ठीक से जांच नहीं की गई थी। आरोप लगाने वाली महिला का कहना था कि दिल्ली पुलिस में काम कर रहे उसके पति व देवर को परेशान किया गया और उसे अपना पक्ष रखने के लिए वकील तक करने की इजाजत नहीं दी गई। इस कांड के कारण नेशनल लॉ इंस्टीट्यूट की टापर सुरभि करवा ने उनके हाथों से कानून की डिग्री लेने से इंकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट की स्थायी समिति ने रंजन गोगोई को सभी आरोपों से बरी कर दिया। अब यह कहा जा रहा है रंजन गोगोई को सरकार का साथ देने व इस कांड से बचाने वाली सरकार ने उन्हें पुरुस्कृत किया है। अब जहां कांग्रेस कह रही है कि सरकार की इच्छानुसार फैसले देने के कारण गोगोई को ईनाम दिया गया है। वहीं भाजपा उन्हें उनका अतीत याद दिला रही है। रंजन गोगोई के 2019 के रिटायर होने के छह महीने कें भीतर सरकार ने उन्हेराज्यसभा के लिए मनोनीत कर दिया। रिटायर होने के बाद जजो को मलाईदार पद देने की परंपरा बहुत पुरानी है।पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 1958 में मुंबई हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एमसी छागला का इस्तीफा करवाकर उन्हें अमेरिका में भारतीय राजदूत बना दिया था। अप्रैल 1967 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस सुब्बाराव ने इस्तीफा देकर राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा। जबकि 1983 में जस्टिस बहरुल इस्लाम ने सुप्रीम कोर्ट के जज के पद से इस्तीफा देकर कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में लोकसभा का चुनाव लड़ा। ध्यान रहे कि जज रहते हुए उन्होंने विवादास्प्दरहे डा जगन्नाथ मिश्र को पटना रेलवे स्टेशन व गांधी मैदान गिरवी रख बैंको से लोन लेने के धोखाधड़ी के मामलो में बरी कर दिया था। जस्टिस पी सदाशिवम को केरल का राज्यपाल नियुक्त किया गया। देश की सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज फातिमा बीवी को तमिलनाडु का राज्यपाल नियुक्त किया जा चुका है।सबसे ज्यादा विवादास्पद1984 के दंगों की जांच करने वाले जज रंगनाथ मिश्र को देश की चीफ जस्टिस बनाना व उसकी रिपोर्ट की जबरदस्त आलोचना किए जाने के बाद उन्हें देश के पहले मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष बनाया जाना था। उन्हें बाद में कांग्रेस ने राज्यसभा में भेजा। इसी तरह 1970 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस मुहम्मद हिदायतुल्लाह को उप राष्ट्रपति बनाया गया था। अभी तक तमाम हस्तियां जोकि रिटायरमेंट के बाद राजनीतिक पदों पर नियुक्त किए जाने का विरोध करती रही हैं क्योंकि माना जाता है कि रिटायरमेंट के कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट के जज बने इन जजों के फैसले सरकार के रूख से प्रभावित हो सकते हैं। खुद रंजन गोगोई ने चीफ जस्टिस रहते हुए इंडियन एक्सप्रेस के एक समारोह में कहा था कि रिटायर होने के बाद जजो को कहीं नियुक्त किया जाना स्वतंत्र न्यायपालिका पर एक धब्बा है। अब खुद राज्यसभा का सदस्य बनने के बाद वे कह रहे हैं कि वे अपने पद की शपथ लेने के बाद उन पर लगाए जा रहे आरोपो का जवाब देंगे।
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