बेबाक विचार

गाय, गोबर और गोरुत्वकवच

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गाय, गोबर और गोरुत्वकवच
बचपन से ही गाय के साथ मेरा ही नहीं मेरी आयु के हर व्यक्ति का बहुत करीबी संबंध रहा है। जब छोटे थे तो रात को सोते समय मेरी मेरी मां 'आई श्यामा गाय हमारी तू मुझको लगती है प्यारी' लोरी सुनाया करती थी। जब बड़ा होकर स्कूल जाने लगा तो जिंदगी में पहला निबंध गाय पर पढ़ने और लिखने को मिला। बचपन से ही गाय के दूध से लेकर उसके गोबर तक की उपयोगिता के बारे में पढ़ा था। जब छोटे थे तब गाय का दूध पीते हुए घरों में कच्चे स्थान को गोबर से लिपने के साथ-साथ होली पर उपले बनाकर होलिका दहन में उनका इस्तेमाल करते थे। बढ़ा हुआ तो गुड़ गोबर, गोबर गणेश, गोबर गैस सरीखे वे शब्द सुनने लगा और गोबर को निकृष्ट दृष्टि से देखा जाने वाला सामान व शब्द मानने लगा। मगर अब पिछले कुछ दिनों से लगने लगा है कि मेरी गोबर को लेकर यह धारणा गलत थी। हाल ही में दीपावली के पहले गायों की सेवा व उसकी देखभाल करने वाले एक संस्थान राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के प्रमुख डा. वल्लभ भाई कथीरिया ने कामधेनु दीपावली अभियान मनाने का ऐलान करते हुए जो कुछ कहा वह बहुत नया व प्रेरणादायक है। डा. वल्लभ कथीरिया के मुताबिक इस साल दीपावली के अवसर पर उनका आयोग देशभर में गाय के गोबर से तैयार किए गए 33 करोड़ दीपक उपलब्ध करवाएगा। इस के लिए गांवो के तमाम स्वयंसेवी संस्थानों की मदद ली जा रही है। वह इन संस्थानों को गांवों व गौ शालाओं में गाय के गोबर से लेकर उनके दीपक तैयार करने के लिए मशीनी उपकरण, सांचे आदि उपलब्ध करवा रहा है। दीपक को गाय के गोबर में ज्वार गम (गोंद) मिलकर तैयार किया जाता है व उसे देश में ही नहीं विदेशों में भी बिक्री के लिए उपलब्ध कराया जाएगा। इससे जहां कोरोना के कारण बड़ी तादाद में बेकार हुए ग्रामीणों व दूसरे लोगों की आर्थिक मदद होने के साथ साथ उन्हें रोजगार उपलब्ध होगा वहीं देश भर में दीपावली के मौके पर गाय के गोबर से तैयार किए गए दीपक भी उपलब्ध कराए जा सकेगे। यहां यह बात याद दिलानी जरुरी हो जाती है कि दशकों से हम लोग हिंदुओं के सबसे बड़े पर्व दीपावली पर चीन से आयात की गई लड़ियों के जरिए ही देश के घरों में रोशनी बिखेर रहे थे। हाल के कुछ महीने में चीन के साथ संबंध खराब होने के बाद उसके द्वारा आयात किए जाने वाले सामान के उपयोग व उपभोग पर रोक लगाए जाने की देशव्यापी मांग उठी तो यह सवाल उठना लाजमी हो गया था आखिर चीनी रोशनी वाली लड़ियों का विकल्प ढूंढे बिना ही हम रोशनी कैसे करेंगे? इस खोज ने बहुत ही सार्थक विकल्प दे दिया है। आयोग का मानना है कि इस केंद्रित अर्थव्यवस्था के जरिए देश में आर्थिक आत्मनिर्भरता लाने के साथ ही स्वच्छता लाने के क्षेत्र में बहुत अहम योगदान दिया जा सकता है। दशकों से हमारे देश में गांव में गौ केंद्रित अर्थव्यवस्था रही है। आजकल देश में गायों की संख्या कम हो रही है। लोग दूध देने वाली गायों का तो फिर भी ध्यान रखते हैं, जो गाय बूढ़ी हो जाए या दूध देना बंद कर देने पर उनकी उपेक्षा करने लगते हैं। मगर जब उनके गोबर तक का उपयोग होने लगेगा तो गायों का महत्व बढ़ने लगेगा क्योंकि इससे लोगों की अधिक कमाई होने लगेगी। गौ गणेश अभियान के तहत आयोग ने गणेश उत्सव पर पर्यावरण के अनुकूल सामग्री का इस्तेमाल करने गणेश की गोबर से प्रतिमाएं तक तैयार की। जिनकी पूरे देश में काफी मांग रही। अब दीपावली के जरिए राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया जा रहा है व इसके लिए गोबर से तमाम उपयोगी वस्तुएं तैयार की जा रही है। गोबर आधारित धूप अगरबत्तियों, लक्ष्मी गणेश की मूर्तिया, शुभ-लाभ सरीखे प्रतीक व चाभी के गुच्छे, स्वास्तिक, हवन सामग्री तक बनायी जा रही है। इसके लिए आयोग ने देश के 11 करोड़ परिवारों को यह सामान तैयार करने के लिए जोड़ा है। भगवान श्रीराम की पावन जन्मस्थली अयोध्या में 3 लाख दिए प्रज्वलित किए जाने का लक्ष्य है। इसी तरह काशी में एक लाख दिए जलाए जाएंगे। इस आयोग की सबसे बड़ी उपलब्धि गोबर की रेडिएशन विरोधी चिप तैयार करने की है। जिससे सैल फोन में रखने पर उससे होने वाला विकिरण (रेडिशन) 90 फीसदी तक कम हो जाता है। इस चिप का नाम गोरुत्वकवच रखा गया है। इसके गुजरात के राजकोट स्थित श्री जी गौशाला की मदद से तैयार किया गया है। इसके गुणों पर शोध भी किया जा रहा है। डा. कथीरिया के अनुसार गाय के गोबर में विकिरण विरोधी गुण होता है। उन्होंने बताया कि देश की 500 से अधिक गोशालाएं इस चिप का निर्माण करेंगी। एक चिप की कीमत 50 से 100 रुपए के बीच है। एक कंपनी इस चिप को अमेरिका निर्यात भी कर रही है। वहां इस चीप की कीमत 10 डालर प्रतिचिप है। मालूम हो कि केंद्र ने 2019 में इस आयोग को गोसंवर्द्धन व विकास के लिए बनाया था। डाॅ. वल्लभ कथीरिया देश के जाने माने कैंसर सर्जन हैं। उन्होंने गुजरात राजकोट सीट से चार लाख वोटों से 14 वीं लोकसभा का चुनाव जीता था। वे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में राज्य मंत्री भी रहे थे। अब वे एक नए कर्म में जुट गए है। उनका कहना है कि गाय के गोबर निर्मित वस्तुओं के बेकार हो जाने पर उनका खाद के रुप में इस्तेमाल किया जा सकता है। व इस तरह से शुरु से लेकर अंत तक हमें पर्यावरण, विरोधी किसी भी चीज का सामना नहीं करना पड़ता है।
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