बेबाक विचार

हर उपचुनाव जैसे जनमत संग्रह

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हर उपचुनाव जैसे जनमत संग्रह
भारत में पहले भी चुनाव अहम रहे हैं और पार्टियां चुनाव जीतने के लिए पूरा जोर लगाती रही हैं। लेकिन पहले ऐसा नहीं होता था कि किसी राज्य में होने वाला उपचुनाव सरकार के ऊपर जनमत संग्रह माना जाए। भारत में पिछले कुछ समय से ऐसा होने लगा है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में बनी नई भाजपा ने हर चुनाव को जीवन-मरण का सवाल बना दिया है। जब भाजपा जैसी बड़ी और राष्ट्रीय पार्टी हर चुनाव करो या मरो के अंदाज में लड़ती है तो प्रादेशिक पार्टियों को तो उस तरह से लड़ना ही होगा क्योंकि उनकी तो पूंजी ही एक राज्य की होती है। इस समय देश के 13 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में 30 विधानसभा और तीन लोकसभा सीटों पर उपचुनाव चल रहे हैं और हर जगह सरकारें इस अंदाज में लड़ रही हैं, जैसे हार गईं तो सरकार चली जाएगी और विपक्षी पार्टियां ऐसे लड़ रही हैं, जैसे जीत गए तो सरकार बन जाएगी। बिहार से लेकर मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और राजस्थान से लेकर सुदूर तेलंगाना तक चुनाव इसी अंदाज में लड़ा जा रहा है। तेलंगाना की हुजूराबाद विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं, जहां सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति से अलग होकर पूर्व मंत्री एटाला राजेंद्र चुनाव लड़ रहे हैं। छह बार विधायक रहे राजेंद्र इस बार भाजपा से चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा इस चुनाव को ऐसे लड़ रही है जैसे जीत गई तो तेलंगाना में उसकी सरकार बन जाएगी। सोशल मीडिया में ऐसी वीडियो वायरल हुई है, जिसमें लिफाफे में बंद करके मतदाताओं के घरों तक पैसे पहुंचाए गए हैं। लिफाफे पर भाजपा का चुनाव चिन्ह बना हुआ है। दूसरी ओर मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने सारे कामकाज छोड़ कर यह उपचुनाव लड़ा है। उनकी पूरी सरकार चुनाव में लगी रही।

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बिहार में दो सीटों-तारापुर और कुशेश्वरस्थान पर उपचुनाव है और बिहार की सारी पार्टियां इस चुनाव को जीवन-मरण की तरह लड़ रही हैं। खराब सेहत के बावजूद लालू प्रसाद साढ़े तीन साल के बाद बिहार पहुंचे और तारापुर जाकर अपनी पार्टी का प्रचार किया। उपचुनावों में आमतौर पर मुख्यमंत्री प्रचार के लिए नहीं जाते हैं लेकिन नीतीश कुमार ने खुद जाकर वोट मांगा और उनके सरकार के मंत्री प्रचार बंद होने के बाद भी क्षेत्र से लौटे नहीं हैं। पटना से खबर है कि राजधानी दो हफ्ते तक नेताओं और मंत्रियों से खाली रही। भाजपा और जदयू दोनों के मंत्री उपचुनाव में खाक छान रहे थे। मध्य प्रदेश की तीन विधानसभा सीटों- पृथ्वीपुर, रायगांव और जोबाट में विधानसभा और खंडवा सीट पर लोकसभा का उपचुनाव है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद इन चुनावों की कमान संभाल रहे हैं और दूसरी ओर सेहत की चिंताओं के बावजूद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने अपने को इन चुनावों में झोंका है।

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पश्चिम बंगाल में इसी महीने के पहले हफ्ते में तीन सीटों के उपचुनाव के नतीजे आए थे। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अपनी भबानीपुर सीट भी उसमें शामिल थी। ममता ने अपनी सीट जीतने के लिए पूरी ताकत लगाई और सरकारी कामकाज छोड़ कर चुनाव प्रचार व प्रबंधन में लगीं रहीं। बंगाल की तीन सीटों के नतीजे आए और चार अन्य सीटों के उपचुनाव की घोषणा हो गई, जो अभी चल रहे है। सवाल है कि चुनाव आयोग ने सात सीटों के चुनाव एक साथ क्यों नहीं करा लिए? बहरहाल, राज्य की चार सीटों- दिनहटा, शांतिपुर, खरदाहा और गोसाबा में 30 अक्टूबर को उपचुनाव है और ममता बनर्जी के साथ साथ उनकी पूरी सरकार इन चार सीटों के प्रचार में लगी रही। कर्नाटक की दो सीटों के उपचुनाव में मुख्यमंत्री और पूर्व उप मुख्यमंत्री सहित विपक्ष के भी सारे नेता जी-जान से जुटे हैं तो राजस्थान की दो सीटों के उपचुनाव में भी सरकार महीने भर से बिजी है। असम में पांच सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं और सरकार इसे मिनी विधानसभा चुनाव की तरह लड़ रही है। चुनाव किस जुनून में लड़ा जा रहा है इसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने आचार संहिता का उल्लंघन किया और केंद्रीय चुनाव आयोग को उनके खिलाफ नोटिस जारी करके चेतावनी देनी पड़ी। सोचें, इससे पहले कब उपचुनाव इस अंदाज में लड़े गए थे? एकाध अपवादों को छोड़ कर किसी उपचुनाव में न तो सरकारें इस तरह से ताकत झोंकती थीं और न इतने संसाधन झोंके जाते थे। यह भी एक तथ्य है कि आजतक किसी उपचुनाव के नतीजे ने सरकार की स्थिरता को प्रभावित नहीं किया है। भले लंबे समय में कुछ असर हुआ हो पर उपचुनावों के नतीजे से सरकार बनती, बिगड़ती नहीं है। उपचुनावों में सत्तारूढ़ दल का उम्मीदवार हारता भी रहा है। बिहार में ही 2010 के विधानसभा चुनाव में जदयू-भाजपा को 243 में से 207 सीटें मिली थीं लेकिन इसके तुरंत बाद हुए 12 सीटों के उपचुनाव में जदयू-भाजपा नौ सीटों पर हार गई थी। लेकिन अब स्थितियां बदल गई हैं। अब हर उपचुनाव मिनी विधानसभा चुनाव की तरह और करो या मरो के अंदाज में लड़ा जाता है।
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