बेबाक विचार

ये मायूसी वाजिब है

ByNI Editorial,
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ये मायूसी वाजिब है
रूस की अर्थव्यवस्था को ठप करने का मकसद तो पूरा नहीं हुआ, उलटे यूरोप से लेकर अमेरिका तक में बड़ी आर्थिक उथल-पुथल मची हुई है। तो स्वाभाविक है कि बाइडेन प्रशासन के अधिकारी मायूस हैं। यह समझ तो सारी दुनिया में बन चुकी है कि यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से रूस पर लगाए गए पश्चिमी प्रतिबंधों का उलटा असर हुआ है। रूस की अर्थव्यवस्था को ठप करने का मकसद तो पूरा नहीं हुआ, उलटे यूरोप से लेकर अमेरिका तक में बड़ी आर्थिक उथल-पुथल मची हुई है। अब सामने आया है कि जो बाइडेन प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी इस बात से मायूस हैं। उन्होंने स्वीकार किया है कि पश्चिमी प्रतिबंधों का रूस पर वैसा असर नहीं हुआ, जैसा सोचा गया था। रूसी अर्थव्यवस्था प्रतिबंधों को अब तक झेल गई है। अमेरिकी अधिकारियों से बातचीत के आधार पर एक रिपोर्ट टीवी चैनल सीएनएन ने अपनी वेबसाइट पर छापी। इसके मुताबिक सख्त प्रतिबंध लगाने का मकसद यह था कि उससे रूस की यूक्रेन में युद्ध जारी रखने की क्षमता खत्म हो जाए। साथ ही रूस में आम लोगों का जीवन बेहद मुश्किल हो जाए, जिससे जनमत राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन के खिलाफ हो जाएगा। लेकिन अब तक ऐसा कुछ नहीं हुआ है। अब अमेरिकी अधिकारी मान रहे हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल और गैस की कीमत में भारी बढ़ोतरी का फायदा रूस को मिला है। इससे कम तेल और गैस बेच कर भी उसने पहले से से ज्यादा रकम कमा ली है। सीएनएन ने फिनलैंड की संस्था सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर के आंकड़ों का जिक्र किया है। उनके मुताबिक युद्ध के पहले 100 दिन में रूस ने यूरोप को तेल, गैस और कोयले के निर्यात से 93 बिलियन यूरो की अतिरिक्त कमाई की। प्रतिबंधों का यह असर जरूर हुआ कि अप्रैल से जून के बीच रूस की अर्थव्यवस्था चार प्रतिशत सिकुड़ी। लेकिन अमेरिकी अधिकारियों ने इस अवधि में रूसी अर्थव्यवस्था में 15 प्रतिशत की सिकुड़न आने की भविष्यवाणी की थी। उन्हें उम्मीद थी अंतरराष्ट्रीय भुगतान के सिस्टम स्विफ्ट से रूस को बाहर करने से रूस की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। बाइडेन प्रशासन यह अनुमान भी नहीं लगा पाया कि भारत और चीन जैसे देश रूस से तेल की अधिक खरीदारी करके रूस के मददगार बन जाएंगे। तो अब वॉशिंगटन में मायूसी होना स्वाभाविक ही है।
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