नौ मई को रूस विजय दिवस मनाता है। इस दिन परेड होती है, फौजी ताकत दिखाई जाती है। गर्व और उत्साह के साथ नाजी जर्मनी पर सोवियत संघ की जीत को याद किया जाता है। पुतिन को यह दिन बहुत भाता है। दो दशक के उनके राज में यह दिन रूस की पहचान के बारे में उनकी सोच का प्रतीक बन चुका है। इस दिन रूस के आधुनिक हथियारों को दुनिया को दिखाया जाता है। पुतिन को तालियों की गड़गड़ाहट के बीच कड़कदार शैली में भाषण देने का अवसर मिलता है। पिछले साल पुतिन ने कहा था “सन् 1945 की तरह हम जीतेंगे”।
यानि पुतिन को यह उम्मीद थी कि इस साल 9 मई की विजय दिवस परेड और बड़ी तथा ज्यादा शानदार होगी क्योंकि वे “स्पेशल मिलिट्री आपरेशन” के जरिए नव-नाजियों को हरा चुके होंगे। यूक्रेन पर उनका कब्जा हो चुका होगा। लेकिन उन्होंने जो सोचा था वह हुआ नहीं। उलटे रूस के कई हिस्सों में परेड के आयोजन यूक्रेनी हमलों के डर से रद्द कर दिए गए हैं। यह सब बुधवार के ड्रोन हमले के पहले हो चुका है, जिसे रूस पुतिन की हत्या के लिए यूक्रेन द्वारा करवाया गया हमला बता रहा है।
धीरे-धीरे 9 मई अपनी चमक-दमक खोता जा रहा है और परेड कुछ दबी-बुझी सी होती लगती है। हालांकि बड़बोलेपन के लिए जाने जाने वाले पुतिन जब विजय दिवस का भाषण देंगे तब वे कथित ड्रोन हमले का पूरा-पूरा फायदा उठाने का प्रयास करेंगे।
इसके कई कारण हैं।
पहला, पुतिन का रूस, यूक्रेन युद्ध हार रहा है। रूस को इस लड़ाई में अपने कब्जे वाले क्रीमिया सहित अन्य इलाकों में अपने सैन्य अड्डों पर कई हमलों का सामना करना पड़ा है, जो उसके लिए शर्मिंदगी का सबब हैं। सेना की वह लामबंदी कमजोर रही है जो अंतिम बार पिछले वर्ष सितंबर में की गई थी। हमले की शुरूआत में रूसी सेनाओं को यह अनुमान नहीं था कि युद्ध इतना लंबा चलेगा। उनका यह भी मानना था कि युद्ध मुख्यतः मिसाइलों और हवाई हमलों के जरिए ही होगा। यूक्रेन की और अधिक ज़मीन पर कब्जा करना तो दूर रहा, रूस अपने कब्जे वाले 1,32,000 वर्ग किलोमीटर के यूक्रेन के इलाके का पांचवा हिस्सा खो चुका है (गार्डियन के विश्लेषण के अनुसार)। पिछले दस महीनों में रूस ने पूर्वी डोनबास क्षेत्र के बखमुत शहर पर कब्जा करने के लिए सब कुछ किया परन्तु उसे सफलता नहीं मिली। युद्द शुरू होने से पहले इस शहर की आबादी 70,000 थी। हाल के दिनों में लड़ाई ने जोर पकड़ा है। इससे लगता है कि रूसी जनरल किसी भी कीमत पर 9 मई के पहले क्रेमलिन को जीत गिफ्ट करना चाहते हैं. लेकिन ज़मीन पर ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है।
दूसरे, पुतिन आम जनता और कुलीन वर्ग दोनों की सोच पर अपनी पकड़ खोते जा रहे हैं। यह सच है कि कुछ रूसी कट्टरपंथी हैं और युद्ध का समर्थन करते हैं लेकिन ऐसे लोगों की संख्या में ज्यादा बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। वैसे भी अधिकतर लोगों को राजनीति से कोई ख़ास मतलब नहीं है। जो लोग सरकार से सहमत हैं उनके ऐसा करने के पीछे कई कारण हैं। कुछ का मानना है कि चाहे जो भी हो उन्हें अपने देश का समर्थन करना चाहिए, कुछ सीमा पर लड़ रहे अपने हमवतनों को लेकर परेशान हैं। वही कुछ रूस की हार की काल्पनिक संभावना से डरे हुए हैं।
पुतिन न केवल लोगों का समर्थन खो चुके हैं और युद्द में हार की ओर बढ़ रहे हैं बल्कि ईस्टर्न ब्लाक के सदस्य देशों से उनके रिश्ते भी बिगड़े हैं। पहले उन्हें एक कुशल मध्यस्थ माना जाता था जिसने नागोर्नो-काराबाख़ क्षेत्र को लेकर आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच के युद्ध को रूकवाया था। आज उन्हें एक क्रूर हमलावर बताया जा रहा है। रूस युद्ध में इस कदर व्यस्त है कि वह अपनी कूटनीतिक भूमिका को नजरअंदाज कर रहा है। वह एक ऐसा दोस्त बन गया है जो भरोसे के काबिल नहीं है। उसके नेतृत्व वाला कलेक्टिव सिक्युरिटी ट्रीटी आर्गनाईजेशन अर्थहीन हो गया है। अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकारों का कहना है कि रूस की साफ्ट पॉवर में गिरावट आई है। वह बेरहमी से ताकत का इस्तेमाल करने के लिए बदनाम हो रहा है। यह कहा जा रहा है कि रूस छोटे-छोटे देशों के नेताओं को धमका रहा है और ब्लेकमेल कर रहा है कि यदि वे रूस के प्रति वफादार नहीं बने रहे तो उन्हें ‘यूक्रेन जैसे हालात’ का सामना करना पड़ेगा। मध्य एशिया के देश जार्जिया, मॉल्डोवा आदि एक अस्थिर रूस की संभावना को लेकर डरे हुए हैं। सोवियत काल के बाद जन्मी नई पीढ़ी,इस क्षेत्र में रूस की दादागिरी के खिलाफ खुलकर बात कर रही है।
एक अन्य मुद्दा है दुनिया में प्रतिष्ठा का। दुनिया हमेशा से रूस, पुतिन और उनके वक्तव्यों को लेकर आशंकित रही है। पुतिन ने दिखा दिया है कि वे केवल भौंकते ही नहीं बल्कि काटते भी हैं। यही कारण है कि पिछले साल से रूस और पुतिन दुनिया के लिए अछूत बन गए हैं। पश्चिमी देश रूस के साथ व्यापार नहीं करना चाहते। रूसी कंपनियों, रूसी माल, रूसी सेवाओं और रूसियों का पश्चिम में अब स्वागत नहीं होता। पश्चिम के कई मित्र देश, जो पूरब में हैं, भी यही कर रहे हैं। भारत जैसे देश जो अभी तक यह तय नहीं कर पाए हैं कि वे किस तरफ हैं, यह सोच रहे हैं कि युद्ध समाप्त करने में मध्यस्थता करके नाम कमा लें। चीन भी यही सोच रहा है। धीरे-धीरे पुतिन और उनकी भव्य योजनाओं पर ग्रहण लगता जा रहा है। इसलिए हो सकता है कि इस बार की विजय दिवस परेड जनता की सहानुभूति हासिल करने के लिए इस्तेमाल की जाए। पुतिन ऐसा कुछ कहें जिससे उनके देश के लोग उनकी गल्तियों को नजरअंदाज करें। इस बार की विजय दिवस परेड में ऐसे बहुत से नाटक खेले जाएंगे। संभव है ड्रोन हमला नाटक श्रंखला का हिस्सा हो। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)