सबरीमला मंदिर में 10 से 50 साल की औरतें अंदर जा सकती हैं या नहीं, इस मुद्दे पर अब सर्वोच्च न्यायालय के 7 जजों कीपीठ अपना फैसला देगी। पिछले साल पांच जजों की बेंच ने औरतों के प्रवेश की अनुमति दी थी। इस फैसले के खिलाफ बहुत से धार्मिक संगठनों और मौकापरस्त राजनीतिक दलों ने भी आवाज उठाई थी।
उसके बाद अदालत में 65 याचिकाएं और भी लगाई गईं, जिनमें से कुछ ने कहा कि मंदिरों में ही क्यों, मस्जिदों और पारसियों की अगियारी में भी औरतों को अंदर जाने की इजाजत मिलनी चाहिए। यह बहुत अच्छा हुआ कि देश की सभी औरतों के लिए अब समान अधिकार के दरवाजे खोलने की मांग उठ पड़ी है।
भगवान की आराधना में भेद-भाव पैदा करनेवाली कोई भी परंपरा कोरे पाखंड के अलावा कुछ नहीं है। जिस औरत के पेट से आदमी पैदा हुआ है, वह तो मंदिर, मस्जिद और अगियारी में जा सके और वह औरत ही न जा सके, यह कौन-सा तर्क हॉ? किसी रजस्वला औरत को देखकर यदि किसी देवता का ब्रह्मचर्य भंग होता है तो ऐसे देवता को किसी कठोर गुरु की देखरेख में दुबारा गुरुकुल में भेजा जाना चाहिए।
बोहरा समाज में स्त्रियों का खतना करना भी उचित नहीं है। कई धार्मिक और जातीय रीति-रिवाज सदियों पहले इसलिए चल पड़े कि वे देश-काल के हिसाब से ठीक लगे होंगे लेकिन अब उनको त्यागना समयानुकूल है। इसमें अदालत के टेके की जरुरत क्या है ? सभी धर्मों के ठेकेदारों को चाहिए कि वे अपने अनुयायिओं को इन पाखंडों से मुक्त करें। यह, अदालतों का नहीं, उनका अपना फर्ज है।
ऐसे मसलों पर धर्मध्वजी चुप रहें और अदालतें अपना मुंह खोलें, इससे बड़ी शर्म की बात क्या है? राम और कृष्ण का जन्म कहां हुआ था, ईसा मसीह ईश्वर के बेटे थे और मुहम्मद साहब अल्लाह के प्रतिनिधि थे, ऐसे मुद्दे भी आप फिर क्या अदालत से तय करवाएंगे ?
ये मज़हबी मामले विश्वास के प्रतीक हैं, तर्क के नहीं, कानून के नहीं। इन विश्वास के मामलों को हम अंधविश्वास के मामले न बनने दें। मुल्ला-मौलवी, पंडित, पादरी, ग्रंथी- सबसे मैं विनयपूर्वक प्रार्थना करता हूं कि वे करोड़ों लोगों को अंधविश्वास की ग्रंथियों (गठानों) से खुद मुक्त करें।
Dr. Vaidik is a well-known Scholar, Political Analyst, Orator and a Columnist on national and international affairs.