बेबाक विचार

शी जिन, पुतिन, मोदी में से कौन शातिर?

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शी जिन, पुतिन, मोदी में से कौन शातिर?
जवाब है चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग। प्रमाण है शंघाई सहयोग संगठन याकि एससीओ की बैठक। किसने यह संगठन बनाया? सन् 2001 में चीन की पहल पर बना। क्यों? ताकि सोवियत संघ से अलग हुए चार मध्य एसियाई देश उसकी गिरफ्त में आए। ये देश पश्चिमी देशों के बहुपक्षीय मंच में नहीं बंधे। फिर चीन ने रूस, पाकिस्तान, ईरान और भारत को भी परस्पर सहयोग के हवाले जोड़ा। जाहिर है राजनीति के साथ व्यापार और कारोबारी धंधे का एक चीनी ताना-बाना। जैसे भारत ने अपनी धुरी पर सार्क बनाया था और क्षेत्रिय हित सोचे वैसे चीन ने मध्य एसिया का तानाबना बनाया। सार्क जहां भारत की असफलताओं की झांकी है वही एससीओ चीन के वर्चस्व का प्रमाण। इसके सदस्यों देशों को एक-एक करके देखे तो सभी देश चीन के आश्रित बाजार है। चीन और उसके राष्ट्रपति शी जिन पिंग इनके बिग बॉस! संगठन के महाशक्ति देश रूस पर गौर करें। रूस राष्ट्रपति पुतिन ने बैठक से अलग शी जिन पिंग से मुलाकात की और उन्होने शी जिन पिंग के आगे यूक्रेन पर हारने की खबरों पर सफाई दी। मामूली बात नहीं है जो पुतिन ने खुद 15 सिंतबर की मुलाकात से ठिक पहले कहा कि यूक्रेन की स्थिति को लेकर चीन ‘चिंता में और सवाल’ लिए हुए है। आज की मुलाकात में हम हमारी पोजिशन को एक्सपेलन करेंगे!’ कल्पना करें शी जिनपिंग के आगे पुतिन द्वारा यूक्रेन में हारने की सफाई देना और मदद मांगना। क्या यह शी जिन पिंग की शातिरता का प्रमाण नहीं है? शी जिन पिंग के दोनों हाथों में लड्डू है। पुतिन अब और उन पर और अधिक आश्रित। वह रूस से सस्ता तेल और गैस लेता हुआ है तो उसे सामान बेचता हुआ भी। अपनी करेंसी को रूस में भरते हुए। रूस के पूरे प्रभाव  क्षेत्र में अलग उसकी और दादागिरी। बेलारूस के राष्ट्रपति ने भी आ कर चीन का अहसान जताया।  एसीसीओ संगठन के सदस्य देश उजबेकिस्तान, कजाखिस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान, पाकिस्तान के साथ रूस और नए सदस्य ईरान पर भी शी जिन पिंग की ग़ॉड फादर वाली हैसियत। तभी सवाल है भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यदि समरकंद जा कर चाईनीज वर्चस्व के एससीओ की बैठक में शरीक हुए है तो क्या सोचकर? क्या वे शी जिनपिंग से अधिक शातिर है। क्या लद्दाख के दो इलाकों में चीनी और भारतीय सैनिकों के पीछे हटने की सहमति चीन का झुकना है?  शी जिन पिंग को पटा कर क्या प्रधानमंत्री मोदी बाकि जगह से भी क्या चीनी सैनिकों को पीछे हटवा देंगे? भारत से क्या शी जिनपिंग डर गए है। क्या वे ठान बैठे है कि वे अमेरिका-जापान याकि पश्चिमी देशों के साथ भारत का एलायंस नहीं होने देंगे। चीन ने भारत का महत्व माना है?  इसलिए सीमा पर उसका रूख बदलेगा? संदेह नहीं कि सीमा के दो इलाकों पर सैनिकों के आमने-सामने के गतिरोध को खत्म करने का चीन का फैसला एससीओ की बैठक में नरेंद्र मोदी की उपस्थिति के लिए था। क्यों? ताकि अमेरिका, योरोप, जापान, आस्ट्रेलिया को मैसेज हो कि भारत उनका वैसा साथी नहीं है जैसा वे मानते है। भारत को चीन न्यूट्रल बनाए रख सकता है। रोके रक सकता है। आने वाले सालों में ताईवान और हिंद प्रशांत क्षेत्र में जब वह दादागिरी दिखाएगा, इलाका वैश्विक शक्ति परीक्षण का सेंटर होगा तो भारत वैसे ही चीन के साथ रहेगा जैसे हाल में वह यूक्रेन के मामले में रूस के साथ रहा। इससे भविष्य में चीन को सबसे बड़ा क्या लाभ? भारत न इधर का रहेगा और न उधर का। दुनिया कंफ्यूज रहेगी। खुद भारत और उसके लोग चीन के दीर्घकालीन इरादों को ले कर कंफ्यूज बने रहेंगे। एक तरफ पूर्वोत्तर भारत, अरूणाचल प्रदेश से लद्दाख तक चीन पक्की सैनिक तैयारियों, ठोस इंफास्ट्रक्चर बनाता रहेगा और भारत उस पर भरोसा किए हुए। क्या इस चालबाजी को विदेश मंत्री जयशंकर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नहीं बूझते होंगे? निश्चित ही समझते है। लेकिन करे तो क्या करें? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जयशंकर और भारत के हम लोग आज में याकि सिर्फ वर्तमान में जीते है। इसलिए जैसे पुतिन की आज शी जिन पिंग पर निर्भरता है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी निर्भरता है, मजबूरी है कि कि चीन से व्यापार भी चले और जनता में चीन से कूटनीति में जीतने का स्वांग भी बनाए रखे। मैं यह स्वांग ही है, छल है जो भारतीय सैनिकों की अप्रैल-2020 तक जो सीमा पेट्रोलिंग की रेखा थी उससे भारत पीछे हट रहा है। अब हमारे सैनिक अप्रैल 2020 के इलाके तक पेट्रोलिंग नहीं करेंगे। यह वैसी स्थिति है कि कोई आपके या मेरे घरकी बाउंड्री में घुस आए, कब्जा करें और फिर हम यह समझौता मानें  कि बाउंड्री का इलाका ने मेरा और न उनका। चीन के शी जिप पिंग की हमें यह मेहरबानी समझ आ रही है कि वे सेना को पीछे हटने के लिए कह रहे है। हालांकि शर्त यह कि भारतीय सैनिक अप्रैल-2020 की निशानी तक पेट्रोलिंग नहीं करेंगे! तो कौन शातिर? कौन झुका? कौन अपने कब्जे की जमीन गंवाते हुए? भारत ने गंवाई है या नहीं?... क्या भारत की सरकार और भारतीयों का दिमाग यह सोचने में भी समर्थ नहीं है कि दो साल पहले हमें चीन ने पीछे धकेला तो वहां से धकेले रहना जीत है या हार?  भारत की सेना अपने इलाके से छिंटक रही या चीन? वह तो भारत की जमीन कब्जाए हुए या उसके इलाके से पीछे हटाते हुए? और साथ में अपने इलाकें में सड़क-कैंप- ब्रिज आदि का जबरदस्त इंफ्रास्ट्रक्चर बनाते हुए।
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