बेबाक विचार

लोगों की जेब से निकलेगा छह लाख करोड़!

Share
लोगों की जेब से निकलेगा छह लाख करोड़!
National monetization plan sitharaman कोल माइनिंग प्रोजेक्ट्स हो सकता है कि सीधे आम लोगों को प्रभावित न करें लेकिन सड़कें, रेलवे लाइन, स्टेशन, हवाईअड्डे, गैस व पेट्रोलियम उत्पादों की पाइपलाइन, बिजली वितरण की लाइन या ऑप्टिक फाइबर की लाइन निजी कंपनियों को कमाई के लिए देने का सीधा मतलब है कि लोगों की जेब से पैसे निकाले जाएंगे। निजी कंपनियां सड़कों पर टोल बूथ बनवा कर टोल वसूलेंगी, जो सीधे आम लोगों की जेब से निकलेगा। केंद्र सरकार ने बड़े प्यार से देश के आम नागरिकों की जेब पर डाका डालने की एक योजना घोषित की है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को नेशनल मॉनेटाइजेशन प्लान यानी एनएमपी की घोषणा की। उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि सरकारी संपत्तियां एक निश्चित अवधि के लिए निजी कंपनियों को दी जाएंगी, जिससे वे कमाई करेंगी। उन्होंने इस योजना को स्पष्ट करते हुए दो बातें कहीं। पहली बात यह कि सरकारी संपत्तियां बेची नहीं जा रही हैं, बल्कि लीज पर दी जा रही हैं, उनका मालिकाना हक सरकार के पास ही रहेगा। और दूसरी बात यह कि ये ब्राउनफील्ड प्रोजेक्ट्स हैं। ब्राउनफील्ड प्रोजेक्ट्स का मतलब होता है कि उनमें निवेश हो गया है, प्रोजेक्ट्स पूरे हो गए हैं लेकिन उनसे कमाई नहीं हो रही है या लागत के मुकाबले कम कमाई हो रही है। इसलिए उन्हें निजी कंपनियों को दिया जा रहा है ताकि वे ज्यादा कमाई करके खुद भी रखें और सरकार को भी दें। वित्त मंत्री ने दावा किया कि इस योजना के जरिए अगले चार साल में छह लाख करोड़ रुपए की कमाई होगी। असल में केंद्र सरकार ने 2019 में एक नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर प्लान यानी एनआईपी का ऐलान किया था, जो एक सौ लाख करोड़ रुपए का है। इस योजना की 2020 और 2021 में भी लाल किले से घोषणा हुई है। इसी एक सौ लाख करोड़ रुपए की इंफ्रास्ट्रक्चर योजना का 14 फीसदी यानी करीब छह लाख करोड़ रुपया नेशनल मॉनेटाइजेशन प्लान से आना है। कह सकते हैं कि जो एनआईपी है वहीं एमएनपी भी है। इसे लेकर कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों के नेता आरोप लगा रहे हैं कि सरकार पिछले 70 साल में बनाई गई संपत्तियां बेच रही है। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के मजदूर संगठन भारतीय मजदूर संघ ने भी इसे ‘पारिवारिक आभूषण बेचने  जैसा’ कहा है। वह इस पूरे मामले का एक अलग पहलू है। इसका दूसरा पहलू आम लोगों पर पड़ने वाला बोझ है। Read also इस्लाम का सत्य और चीन की बर्बरता! बहरहाल, वित्त मंत्री और नीति आयोग के सीईओ ने इस कानून के मामले में कई बातें स्पष्ट नहीं कीं और न किसी ने उनसे पूछने की जहमत उठाई। पहला सवाल तो यह है कि ये जो कंपनियां चार साल में छह लाख करोड़ रुपए कमाएंगी वह कमाई कहां से आएगी? इसका जवाब है कि पैसा आम लोगों की जेब से निकलेगा। यह आम नागरिकों पर दोहरी मार है। पहले तो आम लोगों के टैक्स के पैसे से संपत्तियों का निर्माण हुआ और अब उसे निजी कंपनियों को दिया जा रहा है ताकि वे उसके इस्तेमाल की कीमत आम लोगों से वसूल सकें। याद करें कितनी बार सरकार के मंत्रियों ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा है कि लोगों के टैक्स के पैसे से हाईवे बने हैं! फिर ये हाईवे कैसे निजी कंपनियों को दिए जा सकते हैं कि वे लोगों से उस पर चलने के पैसे वसूलें! सरकार खुद वसूली नहीं कर पा रही है तो उसने भाड़े के लोग बैठाने का फैसला किया ताकि वे वसूली कर सकें! दूसरा सवाल यह है कि जब सरकार अपनी इन संपत्तियों से कमाई नहीं कर पा रही है तो निजी कंपनियां कैसे करेंगी? कहने की जरूरत नहीं है कि निजी कंपनियां अनाप-शनाप शुल्क लगाएंगी और डंडे के दम पर लोगों से वसूली करेंगी। तीसरा सवाल यह है कि छह लाख करोड़ की जिस कमाई की बात की जा रही है वह सरकार की कमाई है या कुल कमाई है? अगर सिर्फ सरकार को इतने पैसे मिलेंगे तो फिर कुल कितनी कमाई होने का अनुमान है या निजी कंपनियों को कितना पैसा मिलेगा? इस योजना के तहत केंद्र सरकार 26,700 किलोमीटर सड़कें निजी कंपनियों को देगी। इसके अलावा 28,608 किलोमीटर लंबी बिजली वितरण लाइन और 2.86 लाख किलोमीटर की ऑप्टिक फाइबर लाइन भी निजी कंपनियों को देगी। अभी तक की सूचना के मुताबिक 15 रेलवे स्टेशन और 25 हवाईअड्डे निजी कंपनियों को दिए जाएंगे। इसके साथ ही 8,154 किलोमीटर की प्राकृतिक गैस लाइन और 3,939 किलोमीटर की पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति के लिए बनी पाइपलाइन भी निजी कंपनियों को दी जाएगी। सरकार 160 कोल माइनिंग प्रोजेक्ट्स भी निजी कंपनियों को देने जा रही है और 210 लाख मीट्रिक टन की क्षमता वाले वेयरहाउस भी निजी कंपनियों को दिए जाएंगे। कई सरकारी कॉलोनियां और आईटीडीसी के होटल रिडेवलपमेंट के लिए निजी कंपनियों को दिए जा रहे हैं। रेलवे के स्टेडियमों सहित कई स्टेडियम और खेल परिसर भी निजी कंपनियों को दिए जाएंगे ताकि वे इससे कमाई कर सकें। सरकार मान रही है कि स्टेडियम में खेल-कूद तो साल में 25-30 दिन होते हैं बाकी दिन निजी कंपनियां इसका दूसरा इस्तेमाल करके कमाई करेंगी। सोचें, एक तरफ प्रधानमंत्री ओलंपिक में पदक लाने वाले खिलाड़ियों के साथ फोटो खिंचवा रहे हैं तो दूसरी ओर सरकार खेल-कूद से अलग दूसरी गतिविधियों के लिए स्टेडियम निजी कंपनियों को दे रही है। 75th Independence Day : कोल माइनिंग प्रोजेक्ट्स हो सकता है कि सीधे आम लोगों को प्रभावित न करें लेकिन सड़कें, रेलवे लाइन, स्टेशन, हवाईअड्डे, गैस व पेट्रोलियम उत्पादों की पाइपलाइन, बिजली वितरण की लाइन या ऑप्टिक फाइबर की लाइन निजी कंपनियों को कमाई के लिए देने का सीधा मतलब है कि लोगों की जेब से पैसे निकाले जाएंगे। निजी कंपनियां सड़कों पर टोल बूथ बनवा कर टोल वसूलेंगी, जो सीधे आम लोगों की जेब से निकलेगा। हवाईअड्डों की तरह रेलवे स्टेशनों पर यूजर्स चार्ज लिए जाएंगे जो दो सौ से पांच सौ रुपए तक हो सकता है, यह भी सीधे आम आदमी की जेब से निकलेगा। बिजली वितरण की कंपनियों से ट्रांसमिशन लाइन के इस्तेमाल का किराया मांगा जाएगा, जिसका बोझ आम लोगों की जेब पर पड़ेगा। प्राकृतिक गैस और पेट्रोलियम उत्पाद की पाइपलाइन का किराया निजी कंपनियां वसूलेंगी, जिससे पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत बढ़ेगी और वह भी आम लोगों को चुकानी होगी। फाइबर केबल का किराया संचार कंपनियां चुकाएंगी तो वे इसका बोझ आम लोगों पर ही डालेंगी। इस तरह आम लोगों पर चौतरफा बोझ बढ़ाने की तैयारी हो गई। वित्त मंत्री ने जब यह कहा कि सरकार संपत्तियों को बेच नहीं रही है, बल्कि लीज पर दे रही है और मालिकाना हक सरकार के पास ही रहेगा तो किसी ने यह पूछने की जहमत नहीं उठाई कि सरकार ये संपत्तियां कितने साल के लिए लीज पर दे रही है। उन्होंने चार साल में छह लाख करोड़ की कमाई की बात कही तो सबने अपने आप मान लिया कि चार साल के लिए लीज होगी। लेकिन ऐसा नहीं है। हवाईअड्डों की लीज 50 साल के लिए और रेलवे स्टेशनों व रेलवे की जमीन की लीज 99 साल के लिए दी जा रही है। सोचें, जब सरकार ने सौ साल के लिए लीज लिख दी तो उसके बाद मालिकाना हक अपने पास रखने के तर्क का क्या मतलब है? यह लोगों की आंख में धूल झोंकना है। सरकार लोगों की गाढ़ी कमाई का एक-एक पैसा उसकी जेब से निकालने को योजनाओं पर काम कर रही है और उलटे उसे ऐसे पेश कर रही है, जैसे वह आम लोगों और देश का कितना भला कर रही है, जो कमाई नहीं कर सकने वाली परिसंपत्तियों से कमाई करने जा रही है! असल में यह इस सरकार की सबसे बड़ी ताकत है कि वह बुरा करती है और उसे भला कहती है। वह आम लोगों की लूट की योजना बनाती है और इसे देश को मजबूत करने का नाम देती है। देश को आत्मनिर्भर करने का नारा देती है और देश को चंद उद्योगपतियों और निजी कंपनियों के ऊपर निर्भर बनाती है। गरीब कल्याण की बात करती है लेकिन गरीब की जेब में बचा-खुचा पैसा भी खींच लेने की योजना बनाती है। नेशनल मॉनेटाइजेशन पॉलिसी भी इसी तरह की एक योजना है, जिसे सरकार आम लोगों का भला करने वाली योजना बता कर पेश कर रही है। लोग भी इस बात के खुश हैं कि चार साल में छह लाख करोड़ की कमाई होगी।
Published

और पढ़ें