भारत लोक कल्याणकारी राज्य है इसके बावजूद देश में सामाजिक सुरक्षा की गारंटी नहीं है। पश्चिम के विकसित और सभ्य लोकतांत्रिक देशों की तरह भारत में सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने वाली कोई योजना नहीं है। पिछली सरकारों ने अधिकार आधारित कुछ योजनाएं जरूर बनाई हैं, लेकिन उन्हें सामाजिक सुरक्षा की योजना नहीं कह सकते। कानून बना कर शिक्षा का, भोजन का, रोजगार का या सूचना का अधिकार तो नागरिकों को दिया गया है लेकिन इन पर सार्वभौमिक अमल सरकारों की मर्जी पर निर्भर करता है। जैसे अभी केंद्र सरकार ने सामाजिक सुरक्षा की दो बड़ी योजनाओं के बजट में कटौती कर दी है। आमतौर पर चुनावी साल में इस तरह की योजनाओं का आवंटन बढ़ता है लेकिन संकट के पिछले तीन साल में जिन दो योजनाओं ने इस देश के गरीब नागरिकों का सबसे अधिक भला किया उनके बजट में इस साल कटौती हो गई है। कटौती यह मान कर की गई है कि अब देश और दुनिया में सब कुछ सामान्य हो गया है।
लेकिन क्या सचमुच देश और दुनिया में सब कुछ सामान्य हो गया है? कोरोना की महामारी जरूर खत्म होने की कगार पर है लेकिन क्या उसका असर समाप्त हो गया है? कोरोना ने जिस तरह से लोगों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित किया है और जैसा आर्थिक असर लोगों के जीवन पर डाला है क्या लोग अब भी उससे प्रभावित नहीं हैं? इसी तरह क्या अब भी रूस और यूक्रेन की जंग नहीं चल रही है? अब तो जंग के एक साल होने जा रहे हैं और कहा जा रहा है कि रूस ने जंग की सालगिरह के मौके पर ज्यादा बड़ा हमला करने की योजना बनाई है। उसने पांच लाख सैनिक तैयार किए हैं और यूक्रेन का कहना है कि उसका पूर्वी क्षेत्र भारी खतरे में है। रूस पर अमेरिका और यूरोप की पाबंदियां बढ़ रही हैं वह अलग संकट है। इसी तरह क्या दुनिया अभी बड़ी आर्थिक मंदी की ओर नहीं बढ़ रही है? यह सही है कि वैश्विक आर्थिक मंदी का भारत पर कम असर होगा या सबसे कम असर होगा फिर भी भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्था में यह नहीं कहा जा सकता है कि भारत बिल्कुल अछूता रहेगा। सो, कह सकते हैं कि सुधार के बावजूद स्थिति अब भी उतार चढ़ाव वाली है।
इसके बावजूद केंद्र सरकार ने सामाजिक विकास की दो बड़ी और काफी हद तक सफल योजनाओं- मुफ्त अनाज की योजना और मनरेगा का बजट आवंटन घटा दिया है। कोरोना की महामारी के समय ये दोनों योजनाएं जीवन रक्षक बनीं। देश की बड़ी आबादी का जीवन इन योजनाओं के सहारे चला। मार्च 2020 में जब महामारी फैली और देश के अंदर इतिहास का सबसे बड़ा आंतरिक विस्थापन शुरू हुआ तब रोजगार से लेकर अनाज तक का बड़ा संकट पैदा हुआ था। लाखों लोगों की नौकरियां छूटी थीं और लाखों लोग अपने छोटे-मोटे कारोबार बंद करके घर लौटे थे। उस समय इन दो योजनाओं ने उनकी मदद की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मनरेगा की जिस योजना को यूपीए सरकार की विफलताओं का स्मारक कहा था उसका बजट बढ़ा कर गांवों में लोगों को रोजगार दिया गया। उसी समय प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना की घोषणा हुई थी, जिसके तहत लगभग तीन साल तक देश की 80 करोड़ से ज्यादा आबादी को पांच किलो मुफ्त अनाज दिया गया। खाद्य सुरक्षा कानून के तहत मिलने वाले पांच किलो सस्ते अनाज के ऊपर पांच किलो मुफ्त अनाज दिया जा रहा था, जिससे 80 करोड़ से ज्यादा लोगों ने महामारी का मुश्किल समय काटा।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2023-24 के अपने बजट में इन दोनों योजनाओं का आवंटन घटा दिया है। सौ दिन के रोजगार की गारंटी करने वाली मनरेगा योजना के लिए सिर्फ 60 हजार करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है, जबकि चालू वित्त वर्ष यानी 2022-23 के लिए मनरेगा का आवंटन 89 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा है। इस लिहाज से मनरेगा के बजट में लगभग एक तिहाई की कटौती कर दी गई है। इसी तरह मुफ्त अन्न योजना के मद में अगले वित्त वर्ष के लिए एक लाख 97 हजार करोड़ रुपए की सब्सिडी का प्रावधान किया गया है, जबकि 2022-23 में इस योजना का आवंटन दो लाख 87 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा था। इसमें लगभग 90 हजार करोड़ रुपए की कटौती की गई है। बजट से पहले ही केंद्र सरकार की ओर से ऐलान कर दिया गया था कि पांच किलो मुफ्त अनाज योजना और पांच किलो सस्ते अनाज की योजना का विलय किया जा रहा है।
अब देश के 81 करोड़ गरीब लोगों को 10 किलो की बजाय पांच किलो अनाज मिलेगा। यह मुफ्त अनाज योजना का हाइब्रीड मॉडल है। पहले राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना के तहत पांच किलो अनाज सस्ते दर पर मिलता था। गेहूं के लिए दो रुपए और चावल के लिए तीन रुपए प्रति किलो के हिसाब से भुगतान करना होता था। इसके ऊपर प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत पांच किलो बिल्कुल मुफ्त अनाज देने की योजना शुरू हुई थी। इस तरह से अधिकतम 15 रुपए में हर व्यक्ति को 10 किलो अनाज मिल रहा था। अब पूरी तरह से मुफ्त में उसे पांच किलो अनाज मिलेगा। इस लिहाज से कह सकते हैं कि एक व्यक्ति को 15 रुपए महीने का नुकसान हुआ है लेकिन यह 15 रुपए का नुकसान डेढ़ सौ रुपए का हो सकता है क्योंकि अपनी जरूरत का पांच किलो अतिरिक्त अनाज हर व्यक्ति को खुले बाजार से खरीदना होगा, जहां कीमत 30 रुपए प्रति किलो से कम नहीं होगी। खुले बाजार में एक किलो आटा 37 रुपए की औसत कीमत पर बिक रहा है और भारत सरकार ने ‘भारत आटा’ नाम से सस्ता आटा बेचने का फैसला किया है पर उसकी भी कीमत 29.50 रुपए प्रति किलो रहेगी। सो, अनाज योजना में कटौती का बड़ा बोझ आम लोगों पर पड़ने वाला है। सरकार खुद ही मान रही है अगले वित्त वर्ष में भी महंगाई दर ऊंची रहने वाली है। फिर भी करोड़ों गरीब लोगों को अपनी भोजन जरूरतों के लिए खुले बाजार की मर्जी पर छोड़ दिया गया! बजट में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत अनाज खरीद के लिए आवंटन घटा दिया गया है। वित्त वर्ष 2022-23 का संशोधित अनुमान 72,282 करोड़ रुपए का है, जिसे 2023-24 में घटा कर 59,793 करोड़ कर दिया गया है। यह रकम राज्यों को सब्सिडी के तौर पर दी जाती है ताकि वे सेंट्रल पूल के लिए अनाज खरीद सकें।
इसी तरह मनरेगा के मामले में भी सरकार का फैसला मनमाना लग रहा है क्योंकि चालू वित्त वर्ष में भी मनरेगा के तहत रोजगार की मांग बहुत नहीं घट रही है। वित्त वर्ष 2022-23 में भी 290 से तीन सौ करोड़ दिन के रोजगार की जरूरत होने का अनुमान है। महामारी के चरम के समय यानी 2020-21 में 389 करोड़ दिन के रोजगार की जरूरत पैदा हुई थी। अगले साल यानी 2021-22 में इसमें कमी आई तब भी 363 करोड़ रोजगार दिवस की जरूरत रही। इस साल घट कर तीन सौ रोजगार दिवस रहने की संभावना है। तभी अगले साल के लिए इसका बजट 89 हजार करोड़ रुपए से घटा कर 60 हजार करोड़ रुपए करने का फैसला समझ से परे है। सरकार अगर सामाजिक सुरक्षा की कोई अन्य योजना नहीं शुरू करने जा रही है तो इन दो योजनाओं में कटौती का बड़ा असर आम लोगों के जीवन पर पड़ेगा।