बेबाक विचार

असम में सोनोवाल की दिक्कत

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असम में सोनोवाल की दिक्कत
इसे समय का फेर कहा जाए या सत्ता लोलुपता क्योंकि जिस आंदोलन ने एक नेता को इतना लोकप्रिय बना दिया था कि उसे लोग कभी असम में जातीय नायक कहने लगे थे आज वह उसी मुद्दे पर लोगों के आंदोलन बन जाने के कारण बहुत बदनाम हो गया है और लोगों द्वारा कोसा जा रहा है। एक समय था जब असम के मौजूदा मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल राज्य में बांग्लादेश से आए अवैध शरणथियों के खिलाफ छेड़े गए आंदोलन के कारण वे भी सुर्खियो में आए थे। तब आसू ने असमी लोगों की संस्कृति, भाषा व पहचान के मुद्दे पर अपना आंदोलन छेड़ा था। इस आंदोलन की एक बड़ी वजह यह भी रही कि लगातार होने वाली अवैध घुसपैठ के कारण असम के मूल निवासियों को संख्या काफी कम हो गई थी वो मात्र 48 फीसदी रह गए थे व विदेशी बांग्लादेशी बहुमत का खतरा बनने लगे थे। उन्हें अपनी पहचान खो देने का खतरा पैदा होने लगा व इसके आधार पर 1979 में असम मे आंदोलन शुरू हुआ था। इसमें 860 लोगों की जाने गईं व काफी मात्रा में संपत्ति को नुकसान पहुंचा। अंतः केंद्र सरकार ने उनके हितो व अधिकारों की रक्षा के लिए असम समझौता किया। तब से लेकर आज तक इस समझौते को लागू करने के मिशन में भी वहां चुनाव होते आए हैं। यहां याद दिला दे कि 2011 में असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री तरूण गोगोई ने भी इसी मुद्दे को चुना था। उन्होंने बदरूद्दीन अजमल की पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट पर अवैध शरणथियों के पक्ष में होने का आरोप लगाया था। मगर 2016 में इससे बदल गए। केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद सरकार ने असम में चुनाव होने पर अवैध शरणथियों के मुद्दे को जमकर भुनाया। तब सोनोवाल ने कहा था कि हमारा मुख्य उद्देश्य कांग्रेस-एआईयूडीएफ के नापाक गठबंधन को हराना है जो वे लोग राज्य को अवैध शरणार्थियों को सौंप देना चाहते हैं जो कि यहां के लोगों के लिए बहुत बड़ा खतरा है। सोनोवाल तो मानो अपने इस विरोध के कारण असम ही नहीं पूरे उत्तर पूर्व में भाजपा के पोस्टर ब्वाय बने थे। ध्यान रहे कि पहले भी इस मुद्दे पर आसू आंदोलन छेड़ने के कारण पूरा राज्य ही नहीं देश भी उनके नाम से परिचित था क्योंकि वे भी तब कभी आसू में थे। जब सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका के आधार पर अवैध निवासी (ट्रिब्यूनल द्वारा पहचान) कानून 1983 को अवैध ठहराया तो वे असम के लोगों के हीरो बने व उन्हें आसू व दूसरे मानवाधिकार संगठनों ने जातीय नायक की उपाधि दी। इस कानून के अवैध बांग्लादेशी शरणार्थी के हक में होने का दावा किया गया था क्योंकि उनके खिलाफ की गई शिकायतों को सही साबित करने की जिम्मेदारी शिकायतकर्ता पर डाली गई थी। याद रहे सोनोवाल को इससे बहुत फायदा पहुंचा क्योंकि तरुण गोगोई के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार वह कानून बनाए रखने के हक में थी। अंततः सोनोवाल असम के मुख्यमंत्री बने। कांग्रेस के हिमंता बिश्वास को भी पार्टी छोड़ने का फायदा पहुंचा और वे वित्त मंत्री बनाए गए। उन्होंने भाजपा की जड़े उत्तर-पूर्व में जमाने में अहम भूमिका अदा की। यह बात अलग है कि अब दोनों नेताओं के बीच 36 का आंकड़ा है। केंद्र के नागरिक संशोधन कानून बनाए जाने के बाद दोनों को ही दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। खासतौर से मुख्यमंत्री सोनोवाल की राज्य में काफी थू-थू हो रही है। नए कानून के मुताबिक बांग्लादेश से जो हिंदू 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए थे वे भी यहां के नागरिक हो जाएंगे। इस वजह से सोनोवाल की पूरी राजनीति खतरे में पड़ गई है जबकि हिमंत बिश्वा का असमी बाहुल्य ब्रम्हपुत्र घाटी व बंगाली प्रमुखता वाली बराक घाटी में काफी प्रभाव है जबकि सोनोवाल का प्रभाव अपने असमी बहुल क्षेत्र तक सीमित है। जहां इस कानून का सबसे ज्यादा विरोध हो रहा है। विपक्षी नेताओं ने  सोनोवाल को फरजी जातीय नायक कहना शुरु कर दिया है। जिस आसू संगठन ने इस मुद्दे पर लंबा संघर्ष चलाया था वह सोनोवाल की चुप्पी से नाराज है। आसू के महासचिव लुरिंग ज्योति गोागोई ने कहा है कि पड़ौसी राज्यों मेघालय, नगालैंड ने इस कानून का विरोध किया वहीं हमारे असम के मुख्यमंत्री  चुप्पी साध गए हैं। ध्यान रहे कि उत्तर पूर्व के सभी सातों राज्यों ने इस कानून का विरोध किया है। वहीं सोनोवाल सबसे ज्यादा प्रदर्शन होने के बावजूद चुप है। असम के लोगों का कहना है कि हम लोग देश के दूसरे हिस्से से एकदम अलग है। जहां देश के दूसरे हिस्से में रहने वाले पहले धार्मिक आधार पर बंटे दिखते है हम लोग सिर्फ असमी के नाम पर जाने जाते हैं। असम समझौते के मूल में हमारी लोगों की संस्कृति, भाषा व परंपराओं की पहचान की रक्षा छुपी है। आज हम से धार्मिक आधार पर भेदभाव बनवाया जा रहा है। हमारे लोगों के लिए पहले से ही आमदनी के अवसर कम थे, नौकरियां, जमीन व साधान काफी कम है अब 31 दिसंबर 2014 तक आए हिंदू बांग्लादेशियों में कुछ भारत का नागरिक बन जान से हमारी दिक्क्तें और ज्यादा बढ़ेगी, हमारे संसाधनों में वे अपना हिस्सा बना लेंगे।
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