दक्षिण एशिया में एक नई होड़ शुरू हुई है। यह अपना नया नक्शा जारी करने की होड़। बेशक शुरुआत भारत ने ही की, जब इसने पिछले साल अपना नया नक्शा जारी किया। उसके बाद नेपाल ने ये कदम उठाया और पिछले दिनों पाकिस्तान ने भी शायद यह संदेश देने की कोशिश की कि वह भी इसमें पीछे नहीं रहेगा। उसने भारत के जूनागढ़ और सर क्रीक के अलावा पाकिस्तान के नए नक्शे में लगभग पूरे कश्मीर को अपने इलाके में दिखा दिया है। इसमें भारत के नियंत्रण वाला जम्मू और कश्मीर, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और गिलगिट-बाल्तिस्तान भी शामिल हैं। नक्शे को जारी करते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा था कि ये नक्शा भारत द्वारा पांच अगस्त 2019 को उठाए गए कदमों को ठुकराता है। यह उचित ही था कि इस कदम को भारत सरकार ने तुरंत बेतुका और बेतलब बता दिया। बेशक पाकिस्तान के नए नक्शे का इससे ज्यादा कोई महत्त्व नहीं है। खुद पाकिस्तान अपने नक्शे को लेकर कितना गंभीर है, यह इससे जाहिर होता है कि एक तरफ उसने इन इलाकों को पाकिस्तान की सीमाओं के अंदर दिखाया है, वहीं उस पर यह भी लिखा है कि वो विवादित इलाका है और उसकी अंतिम स्थिति संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के अनुसार तय होगी। यानी अपने इलाकों को वह खुद अपना नहीं मानता। दरअसल,
नेपाल और पाकिस्तान दोनों ही देशों की तरफ से भारत के प्रति इस तरह नक्शों को लेकर राजनीति करने के पीछे कई समीक्षक चीन का भी हाथ मानते हैं। जिस तरह से पाकिस्तान ने नए नक्शे में अपनी पूर्वी सीमाओं को चीन की तरफ खुला रखा है, उससे स्पष्ट है कि चीन और पाकिस्तान पहले से भी ज्यादा सांठ-गांठ के साथ काम कर रहे हैं। नेपाल के साथ भारत का सीमा विवाद हिमालय में एक 80 किलोमीटर वाले रोड के वर्चुअल उद्घाटन के बाद शुरू हुआ। नेपाल की पश्चिमी सीमा के करीब स्थित ये रोड भारत को लिपुलेख पास से चीन की सीमा से जोड़ता है। नेपाल ने फौरन इसका विरोध किया। कहा कि यह रोड उस इलाके से गुजरती है, जिस पर नेपाल का दावा है और भारत ने इसे बनाने से पहले उसके साथ कोई बातचीत नहीं की है। उसके बाद नेपाल ने एक संवैधानिक संशोधन कर अपने दावों को 400 वर्ग किलोमीटर बढ़ा दिया। मगर इसका भी कोई मतलब है, यह कोई नहीं मानता।
नए नक्शों को होड़!
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