बेबाक विचार

बातचीत से निकले रास्ता

ByNI Editorial,
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बातचीत से निकले रास्ता
गुजरात में सरदार पटेल की मूर्ति ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ एक बार फिर से विवादों में है। इस कारण गुजरात की भाजपा सरकार ने मूर्ति के आस-पास के क्षेत्रों में निगरानी बढ़ा दी है। इसके चारों ओर कंटीले तार लगाए जा रहे हैं क्योंकि हाल ही में यहां के गांव वालों ने विरोध के रूप में यहां पर खेती करने की कोशिश की थी। इस मूर्ति की स्थापना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रिय योजना का हिस्सा था। उन्होंने सरदार पटेल की 143वीं जयंती पर 31 अक्टूबर 2018 को वडोदरा से सौ किलोमीटर दूर स्थित केवड़िया में इसका अनावरण किया था। लेकिन ग्रामीणों का आरोप है कि राज्य सरकार ने उनके पूर्वजों से ये जमीन बांध बनाने के लिए ली थी। अब इसका इस्तेमाल अन्य कॉमर्शियल इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए किया जा रहा है। उनकी मांग है कि इसके चलते उन्हें उचित मुआवजा दिया जाए या उनकी जमीन लौटाई जाए। यहां के कुल छह गांवों के लोग इस विरोध में शामिल हैं। दरअसल गुजरात सरकार ने साल 1961 में नर्मदा बांध नहर बनाने के लिए इन गांवों की जमीन ली थी। बाद में इसे सरदार सरोवर नर्मदा निगम लिमिटेड को ट्रांसफर कर दिया गया। यह गुजरात सरकार के स्वामित्व वाली सरकारी कंपनी है। सरदार सरोवर बांध परियोजना को लागू करने के लिए मार्च 1989 में इसे बनाया गया था। ये कंपनी उस ट्रस्ट का हिस्सा थी, जिसने गुजरात सरकार की ओर से 182 मीटर ऊंची सरदार वल्लभभाई पटेल की मूर्ति बनाई थी और इसकी देखरेख करती है। इसके खिलाफ आंदोलन कर रहे ग्रामीणों को भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) का समर्थन प्राप्त हैं। उसके नेता छोटू वसावा ने ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ को ‘स्टैच्यू ऑफ डिस्प्लेसमेंट’ कहा है। कांग्रेस ने भी इसके खिलाफ धरना और प्रदर्शन किया है। प्रशासन का कहना है कि उन्होंने कानूनन ये भूमि अधिग्रहित की है और इसका मुआवजा भी दिया है। हाईकोर्ट को दिए अपने जवाब में उसने कहा कि सरकार ने पांच गांवों की भूमि ली और उसका मुआवजा दिया। लेकिन चूंकि भूमि का उपयोग नहीं किया गया था, इसलिए ग्रामीण अपनी भूमि पर लौट आए थे। बाद में जमीन के मूल मालिकों की मृत्यु हो गई। यहां के निवासियों का कहना है कि उस समय उनके पूर्वजों में जागरूकता ना होने के कारण जमीन सस्ती ले ली गई। इस समय इस भूमि की कीमत 35 लाख रुपये प्रति एकड़ है। उन्हें इस हिसाब से मुआवजा मिलना चाहिए। मामला कोर्ट में है। वहीं इसका फैसला होगा। लेकिन अगर सरकार बातचीत से विवाद का हल निकाल ले, तो बेहतर होगा।
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