पता नहीं भारत की बुद्धि को क्या हो गया है जो तालिबान पर भी वोट पकाए जा रहे हैं! मीडिया जिस तरह तालिबान के किस्सों से हिंदू-मुस्लिम बना रहा है उसका सीधा, दो टूक मकसद यूपी चुनाव में हिंदू-मुस्लिम वोटो का धुव्रीकरण है। मैं सोच-सोच कर हैरान हूं कि नरेंद्र मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिंह और अजित डोवाल याकि भारत राष्ट्र-राज्य तंत्र (खुफिया-सुरक्षा) तालिबान की रियलिटी में खतरे बूझते हुए कैसे उसके बहाने हिंदू-मुस्लिम नैरेटिव बनने दे रहा है। तालिबान जंगली कबीलाई और मानवता विरोधी है, इस सच्चाई से हिंदू और मुसलमान सबको जानकार-समझदार बनाना चाहिए या तालिबान के आईने में मुसलमान का हल्ला बनवा कर हिंदुओं को गोलबंद करना चाहिए? हिंदुओं जागो और तालिबान-मुसलमान से मोदी-योगी ही बचा सकते हैं, वाला हल्ला क्या मुसलमान को तालिबानी सोच की ओर नहीं धकेलेगा? क्या भारत का मुसलमान उग्रवाद, तालिबानी संगठनों की और नहीं देखेगा? क्या तालिबान जैसे संगठनों और पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई के लिए भारत में नई जमीन तैयार नहीं होगी? supporters of taliban rule
निश्चित ही नरेंद्र मोदी, अमित शाह व योगी आदित्यनाथ दीर्घकालीन दृष्टि लिए हुए नहीं हैं। इनकी एकमेव प्राथमिकता अपनी कुर्सी और चुनाव जीतने की है। यदि नरेंद्र मोदी दीर्घकालीन विचार का दिमाग लिए होते तो नोटबंदी के फैसले से पहले क्या वे आर्थिकी पर लंबे असर का विचार नहीं करते? महामारी पर क्या 21 दिनों में विजय पाने जैसी बातें करते? क्या वे और उनकी टीम रोजाना की हेडलाइन के मैनेजमेंट में टाइम जाया करते? क्या हिंदुओं को बुद्धिहीन, झूठ और भयाकुल बनाने वाली आबोहवा बनवाते?
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उस नाते पिछले सात सालों से हिंदुओं को डरा कर, वोट पकाने में नरेंद्र मोदी-अमित शाह जिस हद तक जाते हुए हैं उसके दस तरह के उलटे असर हैं। हिंदू और विभाजित हुआ है। मुसलमान कुंठित और मौके के इंतजार में है। कौम के नेता खुलेआम तालिबान की तारीफ कर रहे है। अब एक तरफ खैबर के दर्रे से मुसलमानों को, कश्मीर को मुक्त कराने का तालिबान, आईएसआई, अल कायदा का सीधा हुंकारा है तो दूसरी और भारत में मीडिया का यह नैरेटिव की हिंदुओं सावधान! ये मुसलमान ऐसे (तालिबानी) हैं और इनसे नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ, भाजपा, संघ परिवार से ही सुरक्षा है।
जाहिर है हिंदुओं को डराया जा रहा है तो मुसलमानों में तालिबान, उग्रवादियों की ओर देखने, कट्टरपंथी बनने की मनोदशा बनवाई जा रही है। एक तरफ हिंदू मनोदशा में तालिबानी विलेन व दूसरी तरफ मुस्लिम मनोदशा में तालिबानी महानायक! वैश्विक सत्य है और भारत का भी सत्य है कि अफगानिस्तान में 1996 से 2001 के तालिबानी राज के वक्त भारत और दुनिया के मुसलमान का तालिबान से लगाव नहीं था। तालिबान का तब मतलब नहीं था। लेकिन इस 15 अगस्त 2021 को काबुल पर तालिबानी कब्जे व अमेरिका के भागने की खबर पर वैश्विक मुस्लिम आबादी में जैसी खुशी दिखी, इस्लामी चरमपंथी संगठनों ने जैसे जश्न मनाया उसका सर्वाधिक गंभीर प्रभाव दक्षिण एशिया में है और इससे दस-बीस सालों में भारत एपिसेंटर बने तो आश्चर्य नहीं होगा। इसे क्या मोदी सरकार, हिंदू राजनीति के मौजूदा कर्णधारों को बीस-पच्चीस साल के टाइम फ्रेम में नहीं सोचना चाहिए? पर जैसा मैं लिखता रहा हूं, हजार साल का सत्य है हिंदुओं को पहले तो राज का मौका नहीं मिलता है और मिलता है तो राज करना नहीं आता।.... क्या गलत है?
यह गृह युद्ध की राजनीति नहीं तो क्या?
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