सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि अगर ऐसे व्यक्ति की संपत्ति खुद अर्जित की हुई है या पारिवारिक संपत्ति में विभाजन के बाद प्राप्त की हुई है, तो वो उत्तराधिकार के नियमों के तहत सौंपी जाएगी। ऐसे व्यक्ति की बेटी का उस संपत्ति पर अधिकार दूसरे उत्तराधिकारियों से पहले होगा। women right parent property
सुप्रीम कोर्ट ने एक हालिया फैसले में कहा कि किसी व्यक्ति की बिना वसीयत के मौत हो जाने पर भी उसकी संपत्ति पर उसकी बेटी का अधिकार बनता है। ऐसे मामलों में संपत्ति पर बेटी का अधिकार दूसरे उत्तराधिकारियों से ज्यादा होगा। कहा जा सकता है कि यह एक प्रगतिशील फैसला है। इससे महिला अधिकारों को बल मिला है। संपत्ति में अधिकार महिलाओं की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। न्यायिक व्याख्याओं से पहले भी ये महिलाओं का ये अधिकार मजबूत हुआ है। ताजा फैसले से ये सिलसिला आगे बढ़ा है। फैसला हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत हिंदू महिलाओं और विधवाओं के अधिकारों के संबंध में है। सुप्रीम कोर्ट की डिविजन बेंच के सामने सवाल था कि अगर मृतक की संपत्ति का कोई और कानूनी उत्तराधिकारी न हो और उसने अपनी वसीयत न बनवाई हो, तो संपत्ति पर बेटी का अधिकार होगा या नहीं।
बेंच ने कहा कि अगर ऐसे व्यक्ति की संपत्ति खुद अर्जित की हुई है या पारिवारिक संपत्ति में विभाजन के बाद प्राप्त की हुई है, तो वो उत्तराधिकार के नियमों के तहत सौंपी जाएगी। ऐसे व्यक्ति की बेटी का उस संपत्ति पर अधिकार दूसरे उत्तराधिकारियों से पहले होगा। यह मुकदमा इसलिए दिलचस्प था, क्योंकि संबंधित व्यक्ति की मृत्यु 1949 में हो गई थी, जब हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम नहीं बना था। अधिनियम 1956 में बना। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि फैसला ऐसे मामलों पर भी लागू होगा, जिनमें संबंधित व्यक्ति की मृत्यु अधिनियम के बनने से पहले हो गई हो।
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अदालत ने यह भी कहा कि अधिनियम का उद्देश्य हिंदू कानून को संहिताबद्ध कर यह स्थापित करना है कि संपत्ति के अधिकार के सवाल पर पुरुषों और महिलाओं में पूरी तरह से बराबरी है और महिला के भी पूर्ण अधिकार हैं। अदालत ने व्यवस्था दी है क अगर मृत महिला का पति या कोई भी संतान जीवित है, तो उसकी सारी संपत्ति उसके पति या उसकी संतान के पास चली जाएगी। तो बेशक यह कहा जा सकता है कि यह फैसला संपत्ति में महिलाओं के अधिकार के संबंध में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। गौरतलब है कि फैसले में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम को लेकर कई बातें स्पष्ट की गई हैं। उनमें यह भी है कि यह अधिनियम 1956 से पहले के मामलों पर भी लागू होगा।
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