बेबाक विचार

ट्रेन से यात्रा भी मानवीय आपदा है

Share
ट्रेन से यात्रा भी मानवीय आपदा है
मजदूरों का पलायन या विस्थापन शुरू होने के दो महीने बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे मे एक आदेश दिया है। उस आदेश का क्या असर होगा इसका आकलन अभी आगे चल कर होगा पर अभी तक ट्रेनों से मजदूरों की यात्रा का जो अनुभव सामने आ रहा है वह एक किस्म की मानवीय आपदा ही है। मजदूरों के लिए चलने वाली विशेष ट्रेनों के बारे में पता करना, उसमें अपने लिए सीट आरक्षित करना, समय पर ट्रेनों में बैठना और कई दिन की यात्रा के बाद गंतव्य तक पहुंचना, सब कुछ त्रासद है। इस यात्रा के दौरान यात्रियों को न तो खाने-पीने की सुविधा मिल रही है और न साफ-सफाई की। अगर किसी स्टेशन पर पानी का एक नल दिख जा रहा है तो वहां से पानी भरने में दंगे जैसी हालत बन जा रही है। ट्रेन यात्रियों की परेशानी का पता सोशल मीडिया के जरिए लोगों को जब हुआ तब कई जगह रास्तों में लोगों ने यात्रियों के लिए खाने-पीने की व्यवस्था की। पैकेट बना कर आम लोगों ने ट्रेनों में खाना पहुंचाया पर इतना सब कुछ होने के बावजूद सरकार के कान पर जूं नहीं रेंगी। ऐसा नही है कि सिर्फ केंद्र सरकार या रेल मंत्रालय ने ही इस मानवीय आपदा पर ध्यान नहीं दिया, राज्यों की सरकारों ने भी इसकी अनदेखी की। सरकार ने आनन-फानन में ट्रेनें चलाने का ऐलान कर दिया पर उनके परिचालन के लिए जरूरी न्यूनतम बंदोबस्त नहीं किए गए। इसका नतीजा यह हुआ कि भारतीय रेलवे के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि ट्रेनें अपने गंतव्य से भटक गईं। मुंबई से चली जिस ट्रेन को गोरखपुर पहुंचना था वह ओड़िशा के राउरकेला पहुंच गई। सूरत से चल कर बिहार के मुजफ्फरपुर जाने वाली ट्रेन तो कई दिन के सफर के बाद मंजिल पर पहुंची और खबर है कि उस एक ट्रेन में से सात शव उतारे गए। बिना खाए-पिए, भूख-प्यास से बेहाल, बेबस लोग और ऊपर से 40 डिग्री के तापमान में सामान्य बोगी में यात्रा कर रहे लोगों की स्थिति की सिर्फ कल्पना की जा सकती है। सरकार द्वारा पैदा की गई यह आपदा पिछले करीब एक महीने से चल रही है। सरकार ने जब से श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलानी शुरू की है तभी से यह हालात है। बताया जा रहा है कि कुल 40 ट्रेनें रास्ता भटक गईं। सोचें, रेलवे का विभाग इस सरकार के सबसे इंटेलीजेंट माने जाने वाले एक मंत्री के हाथ में है। पर हालत यह है कि ट्रेनें गंतव्य से भटक रही हैं, एक के बदले चार दिन में मंजिल पर पहुंच रही हैं, ट्रेनों में लोगों को बुनियादी सुविधाएं जैसे खाने-पीने का सामान या साफ-सफाई नहीं मिल रही हैं और रास्ते में लोग मर रहे हैं तब भी उन्हें देखने वाला कोई नहीं है। बिहार के मुजफ्फरपुर स्टेशन में कफन से ढकी महिला की लाश और उस कफन को खींच कर अपनी मां को जगाने का प्रयास कर रहे अबोध बच्चे का एक वीडियो वायरल हुआ है। वह वीडियो पूरे हिंदुस्तान के माथे पर लगा एक ऐसा कलंक है, जिसे सदियों में नहीं मिटाया जा सकता है। वह वीडियो किसी की भी सोई हुई संवेदना को जगाने के लिए पर्याप्त है, पर उस वीडियो के वायरल होने के 72 घंटे बाद भी ऐसा नहीं लग रहा है कि हालात बदले हैं।
Published

और पढ़ें