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us voting laws republican : अमेरिका की प्रतिगामी दिशा

ByNI Editorial,
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us voting laws republican : अमेरिका की प्रतिगामी दिशा

ट्रंप ये आरोप लगाते हुए पद से हटे थे कि जो बाइडेन चुनावी धांधली से जीते तो अब रिपब्लिकन पार्टी अपने शासन वाले राज्यों में उन कथित धांधलियों की संभावना खत्म करने में जुटी हुई है। वहां मतदान के ऐसे नियम लागू किए जा रहे हैं, कमजोर वर्ग के लोगों के लिए वोट डालना कठिन हो जाए।

us voting laws republican : पिछले नवंबर के चुनाव में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की हार के बाद अमेरिका के रिपब्लिकन पार्टी शासित राज्यों में जो हो रहा है, उसे उचित ही डेमोक्रेटिक पार्टी और उसके समर्थक लोकतंत्र की दिशा पलटना कह रहे हैं। ट्रंप ये आरोप लगाते हुए पद से हटे थे कि जो बाइडेन चुनावी धांधली की वजह से जीते और रिपब्लिकन पार्टी पर अब भी ट्रंप का पूरा प्रभाव है, तो ये पार्टी अपने शासन वाले राज्यों में उन कथित धांधलियों की संभावना खत्म करने में जुटी हुई है।

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इसका सीधा मतलब यह है कि वहां मतदान के ऐसे नियम लागू किए जा रहे हैं, जिससे ब्लैक और दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों और कमजोर वर्ग के लोगों के लिए वोट डालना कठिन हो जाए। ऐसा ही एक कानून एरिजोना राज्य में बनाया गया था। लेकिन एरिजोना के नए नियमों को राज्य के फेडरल अपील कोर्ट ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने साफ कहा था कि इन नियमों का अल्पसंख्यकों पर ज्यादा खराब असर पड़ेगा। साथ कोर्ट ने दो टूक टिप्पणी की थी कि तय बूथ से अलग बूथ पर किसी से वोट डालने से किसी तरह की धोखाधड़ी होती है, इसका कोई सबूत नहीं है।

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लेकिन अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने बीते हफ्ते फेडरल अपील कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एरिजोना के नए कानून का अल्पसंख्यकों पर असर न्यूनतम ही होगा। उसने यह भी कहा कि अलग बूथ पर वोट डालने की प्रथा जारी रखते हुए चुनावी धोखाधड़ी होने का इंतजार नहीं किया जा सकता। यानी सुप्रीम कोर्ट ने जो अपराध भविष्य में हो सकता है, उसके लिए अभी सजा निर्धारित कर दी। फैसला कंजरवेटिव जज सैमुएल एलिटो ने लिखा। सुप्रीम कोर्ट के जजों ने ये फैसला 6-3 के बहुमत से दिया। छह कंजरवेटिव जजों ने एरिजोना के नए नियमों को सही ठहराया। जबकि तीन उदारवादी जजों ने अपने असहमत फैसला दिया। us voting laws republican

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खुद अमेरिकी मीडिया में आई टिप्पणियों में कहा गया है कि इस फैसले ने 1960 के दशक में पारित हुए मशहूर मताधिकार अधिनियम के ज्यादातर अवशेषों को राख कर डाला है। टीकाकारों ने कहा है कि जस्टिस एलिटो ने वोटिंग राइट्स के घड़ी की सूई कई दशक पीछे ले जाने की कोशिश की है। गौरतलब है कि 1960 के दशक में बने मताधिकार कानून के जरिए ब्लैक समुदाय के लोगों को वोट देने का अधिकार दिया गया था। तब जो नियम बनाए गए थे, अब उन्हें पलटा जा रहा है।
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