बेबाक विचार

गुजरात चुनाव का सस्पेंस

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गुजरात चुनाव का सस्पेंस
चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और उसके कामकाज की पारदर्शिता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। उसी चुनाव आयोग ने 15 अक्टूबर को हिमाचल प्रदेश के चुनाव की घोषणा की थी और उसके 19 दिन के बाद गुजरात चुनाव का ऐलान किया। हिमाचल में कब का मतदान हो चुका है और राज्य के लोग नतीजों के इंतजार में हैं। गुजरात के साथ ही वहां के वोटों की गिनती होगी। यह इसलिए हुआ क्योंकि गुजरात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कई बड़ी परियोजनाओं की घोषणा करनी थी। एक परियोजना तो ऐसी थी, जिसके लिए विदेशी कंपनी के साथ बातचीत पूरी नहीं हुई थी और सरकारी मंजूरी भी नहीं मिली थी। सो, 19 दिन की अवधि में सारे काम बिजली की रफ्तार से निपटाए गए और फ्रांस की कंपनी एयरबस व टाटा की भागीदारी वाली परियोजना का प्रधानमंत्री ने शिलान्यास किया। चुनाव आयोग ने प्रधानमंत्री को पर्याप्त समय दिया कि वे सारी योजनाओं की घोषणा, शिलान्यास और उद्घाटन कर सकें। उसके बाद चुनाव की घोषणा हुई। गुजरात चुनाव की घोषणा से पहले ऐसा लग रहा था कि भाजपा बहुत सहज स्थिति में है और आसानी से चुनाव जीत जाएगी। आम आदमी पार्टी पूरी ताकत लगा रही थी और कांग्रेस के वोट काट कर रही थी। इसलिए भाजपा पूरे भरोसे में थी। लेकिन अचानक स्थितियां बदलने लगीं। आम आदमी पार्टी का हिंदुत्व का एजेंडा और फ्री बिजली, पानी व हर महिला को एक एक हजार रुपए देने की योजना को गुजरात में समर्थन मिलने लगा। उनके सभाओं में भीड़ उमड़ने लगी और ऐसा लगने लगा कि वे शहरी मतदाताओं में भाजपा को नुकसान पहुंचा रहे हैं। तभी गुजरात चुनाव की घोषणा के तुरंत बाद पांच नवंबर को दिल्ली में नगर निगम चुनाव की घोषणा कर दी गई। जो चुनाव पिछले छह महीने से टला हुआ था आनन-फानन में उसकी सारी औपचारिकता  पूरी की गई और घोषणा कर दी गई। इसका मकसद आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल और उनकी पूरी टीम को गुजरात से निकाल कर दिल्ली में उलझाना था। इसमें भाजपा को काफी हद तक कामयाबी मिली है। इसके बावजूद गुजरात का सस्पेंस समाप्त नहीं हुआ है। गुजरात में कांग्रेस पार्टी हमेशा गांव, गरीब, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों के समर्थन वाली पार्टी रही है। इस आधार पर उसे हमेशा 40 फीसदी के आसपास वोट मिलते रहे हैं। इस बार भी कांग्रेस के गांव वाले वोट में आम आदमी पार्टी ज्यादा सेंध नहीं लगा पाई है। उसके प्रचार, हिंदुत्व के एजेंडे और मुफ्त की रेवड़ियों की घोषणा ने शहरी मतदाताओं को ज्यादा लुभाया है। ध्यान रहे शहर में ज्यादातर वोट भाजपा का है। अगर आम आदमी पार्टी गांव की बजाय शहर के वोट ज्यादा लेती है और हिंदू मतदाताओं के वोट बंटते हैं तो भाजपा को बड़ा नुकसान हो सकता है। इसके अलावा गुजरात का सस्पेंस इस वजह से भी बन गया है कि आम आदमी पार्टी ने बड़ी संख्या में पटेल उम्मीदवार उतारे हैं। उसके प्रदेश संयोजक गोपाल इटालिया खुद पटेल समुदाय के हैं। सो, आम आदमी पार्टी पटेल वोट में भी जो एकमुश्त भाजपा को जाता है उसमें सेंध लगा रही है। असल में गुजरात में इस बार चुनाव में बड़ा ध्रुवीकरण हुआ है। हर बार हिंदू-मुस्लिम का ध्रुवीकरण होता रहा और इस बार हिंदुओं में पटेल और गैर पटेल का ध्रुवीकरण हुआ है। पूरा समाज इस लाइन पर बंटा है। भाजपा ने दो दशक में जिस तरह की राजनीति की उससे उलट इस बार पटेलों पर बड़ा दांव लगाया है। भूपेंद्र पटेल राज्य के मुख्यमंत्री हैं तो भाजपा ने कांग्रेस से तोड़ कर हार्दिक पटेल को अपनी पार्टी में लिया और उनक भी टिकट दी है। इसी तरह पटेल समाज के बड़े संगठन खोडलधाम ट्रस्ट के प्रमुख नरेश पटेल को भी कांग्रेस से दूर किय गया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी मुलाकात कराई गई। उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल के राज्य में दखल की खबरें भी आती रहती हैं। सो, पटेल बनाम गैर पटेल के विभाजन ने चुनाव में सस्पेंस पैदा कर दिया है। सस्पेंस यह नहीं है कि भाजपा जीतेगी या नहीं। सस्पेंस इस बात का है कि आम आदमी पार्टी कितना वोट लेती है। उसे शहरी इलाकों में कितने लोग वोट देते हैं। वह कांग्रेस का ज्यादा नुकसान करती है या भाजपा का। भाजपा के वोट पिछली बार के 49 फीसदी से कम होकर कहां तक पहुंचते हैं। उसकी सीटें पिछली बार से बढ़ती हैं या घटती हैं। गुजरात का चुनाव संभाल रहे अमित शाह का कहना है कि वोट प्रतिशत और सीटों की संख्या दोनों में भाजपा इस बार नया रिकॉर्ड बनाएगी। वे इस भरोसे में हैं कि सत्ता विरोधी वोट कांग्रेस और आप में बंटने की वजह से भाजपा को ऐतिहासिक जनादेश मिलेगा। वोट कुछ कम भी होंगे तब भी सीटों की संख्या बहुत ज्यादा हो जाएगी। पारंपरिक राजनीतिक विश्लेषण के नजरिए से देखें तो यह आकलन बिल्कुल सही है कि कांग्रेस का वोट आम आदमी पार्टी काट लेगी और अगर वह भाजपा का भी कुछ वोट ले लेती है तब भी भाजपा को पहले से ज्यादा सीट मिलेगी। लेकिन अगर ऐसा है तो भाजपा इतना दम क्यों लगा रही है? क्यों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 40 से ज्यादा सभाओं का शिड्यूल बना हुआ है? क्यों योगी आदित्यनाथ के बुलडोजर मॉडल पर वोट मांगा जा रहा है? क्यों हिमंता बिस्वा सरमा राज्य में आफताब का डर दिखा कर वोट मांग रहे हैं, पाकिस्तान का जिक्र कर रहे हैं और राहुल गांधी को सद्दाम हुसैन बता रहे हैं? क्यों अमित शाह को मजार और कब्र के नाम पर वोट मांगने की जरूरत पड़ रही है? विकास की बजाय भाजपा धर्म और अस्मिता की राजनीति कर रही है और इससे अंदाजा लग रहा है कि भाजपा जीते भले पर स्थितियां वैसी नहीं हैं, जैसी भाजपा के नेता बता रहे हैं।
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