बेबाक विचार

ये कहां आ गए हम!

ByNI Editorial,
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ये कहां आ गए हम!
संविधान और न्यायिक व्यवस्था ताकत के ऐसे ही मनमाने इस्तेमाल को रोकने के लिए होते हैँ। लेकिन ये साफ है कि आज की हालत में वे बेअसर हो गए हैँ। इसका क्या परिणाम होगा, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। सचमुच कुछ साल पहले तक यह सोचना मुश्किल था। यह कल्पना करना कठिन था कि भारत में एक दिन ऐसा आएगा, जब एक राज्य की पुलिस किसी दूसरे राज्य में जाकर किसी राजनीतिक व्यक्ति को गिरफ्तार करेगी- उसके बाद जब वह उसे अपने राज्य ले जा रही होगी, तभी रास्ते में एक दूसरे राज्य की पुलिस पुलिसकर्मियों को हिरासत में लेकर गिरफ्तार व्यक्ति को अपने कब्जे में ले लेगी। उसके बाद जिस राज्य से उस व्यक्ति को उठाया गया था, वहां की पुलिस पहुंचेगी और उस व्यक्ति को वापस ले जाएगी। इस बीच पहले राज्य की पुलिस पर अपहरण का मुकदमा दर्ज हो चुका होगा। उधर पहले राज्य की सरकार को अपने पुलिसकर्मियों को हिरासत में लिए जाने के मामले में हाई कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करनी होगी। स्पष्टतः इस कथा में पहला राज्य पंजाब, दूसरा हरियाणा और तीसरा दिल्ली है। मामला भाजपा नेता तेजिंदर सिंह बग्गा की गिरफ्तारी का है। इस प्रकरण में जो हुआ, तो उसको लेकर आईबी के एक पूर्व अधिकारी ने उचित ही कहा है कि राज्यों की पुलिस वहां सत्ताधारी नेताओं की निजी मिलिशिया (अवैध सशस्त्र बल) की तरह काम कर रही है। बहरहाल, किसी दूसरे राज्य में जाकर राजनीतिक विरोधी को उठाने का यह पहला मामला नहीं है। पर्यवरणवादी कार्यकर्ता दिशा रवि से लेकर गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी तक इसके शिकार बन चुके हैँ। ये मामले आखिर क्या बताते हैं? यही कि देश में संवैधानिक व्यवस्था चरमरा रही है। सारा खेल यह हो गया है कि किसके पास कितनी ताकत है। पंजाब सरकार ने इसी खेल के तहत बग्गा से पहले कुमार विश्वास और अलका लांबा को घेरे में लिया। लेकिन जब भाजपा नेता पर हाथ पड़े, तो ऐसा करना उसे महंगा पड़ गया। आखिर भाजपा के पास उससे कई गुना ज्यादा ताकत है। संविधान और न्यायिक व्यवस्था ताकत के ऐसे ही मनमाने इस्तेमाल को रोकने के लिए होते हैँ। लेकिन ये साफ है कि आज की हालत में वे बेअसर हो गए हैँ। इसका क्या परिणाम होगा, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। देश तेजी से जिसकी लाठी उसकी भैंस वाले सिद्धांत की तरफ बढ़ रहा है।
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