Taliban capture Afghanistan भारत सरकार ने पता नहीं अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे से होने वाले नुकसान का आकलन किया है या नहीं, लेकिन जो अनुमान है वह बहुत नुकसान का है। आर्थिक और सामरिक दोनों तरह का नुकसान भारत को होगा। देश की सुरक्षा पर खतरा बढ़ गया है यह तो सबको समझ में आ रहा है। तभी देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बिना तालिबान का संदर्भ दिए कहा कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौतियां जटिल होती जा रही हैं। तालिबान के पिछले शासन के मुकाबले इस बार सुरक्षा चुनौतियों की जटिलता इसलिए ज्यादा है क्योंकि तब रूस और भारत की दोस्ती थी। पाकिस्तान उस समय अमेरिका का पिट्ठू था और चीन-पाकिस्तान की दोस्ती नहीं थी, चीन भी भारत के प्रति उतना दुश्मनी का भाव लिए हुए नहीं था, जितना अब है। उस समय अमेरिका इस स्थिति में था कि पाकिस्तान के जरिए तालिबान को नियंत्रित करे और नहीं तो पाकिस्तान को तालिबान के खिलाफ लड़ाई में शामिल करे। आज अमेरिका यह करने की स्थिति में नहीं है क्योंकि अभी पाकिस्तान पूरी तरह से चीन के पाले में चला गया है।
सो, भारत के लिए बहुत मुश्किल हालात हैं। उसके पास तालिबान पर दबाव डालने का कोई कूटनीतिक रास्ता नहीं है। रूस, चीन और पाकिस्तान तीनों देश तालिबान को समर्थन देंगे लेकिन भारत के लिए तालिबान पर दबाव नहीं बनाएंगे। अमेरिका भी इन तीनों देशों के जरिए दबाव बनाने की स्थिति में नहीं है। ले-देकर सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ऐसे देश हैं, जिनके जरिए भारत कूटनीतिक दबाव बना सकता है। इन दोनों मुल्कों के जरिए अमेरिका भी कूटनीति कर सकता है। लेकिन ये दोनों इस्लामिक देश भारत की बहुत मदद करेंगे इसमें संदेह है। इसलिए भारत को 1996-2001 की अवधि में तालिबानी शासन की वजह से आई मुश्किलों को याद करना चाहिए और उस हिसाब से उससे निपटने की तैयारी करनी चाहिए।
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तब काठमांडो से भारतीय विमान का अपहरण हुआ था और काबुल ले जाया गया था। उसके बदले में भारत को मसूद अजहर सहित कई आतंकी छोड़ने पड़े थे। उसी मसूद अजहर ने जैश ए मोहम्मद की स्थापना थी, जिसके साथ तालिबान के बहुत नजदीकी संबंध हैं। अफगान जमीन पर पाकिस्तानी आतंकवादियों को ट्रेनिंग दी गई और उनके साथ साथ भाड़े के पठान आतंकवादी भी घाटी में पहुंचे थे। आतंकी शिविरों को नष्ट करने के लिए भारत ने पिछले कुछ वर्षों में सर्जिकल और एयर स्ट्राइक किए। लेकिन वह भारत इसलिए कर सका क्योंकि आतंकवादी शिविर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के इलाके में थे या भारतीय सीमा के बहुत नजदीक थे। अब अगर आतंकवादी शिविर अफगानिस्तान के जंगलों और पहाड़ी कंदराओं में बनते हैं तो भारत उन्हें कैसे नष्ट कर पाएगा? यह तय मानें कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई वहां आतंकी शिविर बनाएगी और उसका इस्तेमाल भारत के खिलाफ किया जाएगा।
भारत को दूसरा नुकसान यह है कि पिछले 20 साल में भारत ने वहां करीब 22 हजार करोड़ रुपए का निवेश किया है। भारत ने कोई पांच सौ छोटी-बड़ी परियोजनाएं शुरू की हैं। भारत ने अफगानिस्तान की नई संसद बनवाई, स्कूल-कॉलेज बनवाए, बांधों की परियोजना शुरू कराई। इन सबमें भारत का निवेश अटका हुआ है। भारत उसका कोई फायदा नहीं उठा सकेगा। तालिबान ने आते ही भारत के साथ कारोबार बंद कर दिया है, इससे दोनों के बीच करीब 10 हजार करोड़ रुपए सालाना का कारोबार प्रभावित हुआ है। एक आकलन के मुताबिक भारत हर साल छह से साढ़े छह हजार करोड़ रुपए का आयात अफगानिस्तान को करता है और अफगानिस्तान से तीन से साढ़े तीन हजार करोड़ रुपए का आयात होता है। दुनिया के बहुत कम देश हैं, जिनके साथ कारोबार संतुलन भारत के पक्ष में है, अफगानिस्तान उनमें से एक है। सो, राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौतियों के साथ साथ भारत को बड़े आर्थिक नुकसान की भी चिंता करनी चाहिए।
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