बेबाक विचार

तालिबान का खतरा और मोदी की जयकार!

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तालिबान का खतरा और मोदी की जयकार!
इसमें संदेह नहीं है कि तालिबान का खतरा वास्तविक है। तालिबान, पाकिस्तान और चीन का नेक्सस भारत के लिए सचमुच चिंता की बात है। लेकिन सवाल है कि क्या भारत में इस चिंता को सही तरीके से समझा जा रहा है और उसके समाधान का उपाय सोचा जा रहा है? हकीकत यह है कि भारत में वास्तविक खतरे पर कोई नहीं सोच रहा है। सिर्फ इस खतरे के राजनीतिक इस्तेमाल पर ध्यान दिया जा रहा है। अगर ऐसा नहीं होता तो पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी यह नहीं कहते कि अब संशोधित नागरिकता कानून यानी सीएए का महत्व समझ में आ रहा है। सोचें, अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनने से सीएए कानून का क्या मतलब है। इस कानून में तो केंद्र सरकार ने 2014 की समय सीमा तय की हुई है। उससे पहले भारत में आने वाले गैर मुस्लिम शरणार्थियों को ही नागरिकता दी जाएगी। समय की उस सीमा के सात साल बाद तालिबान की सरकार बन रही है। (Taliban take control Afghanistan) वैसे भी अगर यह कानून नहीं भी होता तब भी किसी को नागरिकता देने का अधिकार भारत सरकार के हाथ में ही था। वह जिसे चाहती उसे नागरिकता देती और जिसे चाहती उसका आवेदन ठुकरा देती। दूसरी, खास बात यह है कि भारत सरकार अभी तक इस कानून को लागू करने के लिए नियम नहीं तैयार कर पाई है। सोचें, जिस कानून को हरदीप पुरी और प्रतिबद्ध मीडिया इतना महान बता रहे हैं, सरकार उस कानून को लेकर कितनी अगंभीर है कि उसने कानून पास होने के करीब दो साल बाद तक इसके नियम अधिसूचित नहीं किए। इसके साथ बाकी जितने भी कानून संसद से पास हुए सब लागू हो गए हैं लेकिन केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसके नियम अभी तक नहीं बनाए हैं। उसने इसके लिए छह महीने का और समय ले लिया है। इसलिए मौजूदा संकट में सीएए कानून कैसे प्रासंगिक है, इसकी कोई व्याख्या नहीं है। लेकिन केंद्रीय मंत्री ने अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनने के बहाने सीएए को लेकर ‘थैंक्यू मोदी जी’ कहा और उसके बाद प्रधानमंत्री मोदी की जय जयकार शुरू हो गई। मीडिया और सोशल मीडिया में इस बात का प्रचार शुरू हो गया कि अगर केंद्र सरकार ने सीएए कानून नहीं बनाया होता तो पता नहीं क्या हो जाता। ऐसा लग रहा है कि जैसे सीएए कानून नहीं होता तो सारे अफगानी भारत आ जाते और नागरिकता हासिल कर लेते। हकीकत यह है कि भारत ने अफगानिस्तान से आने वालों के लिए इमरजेंसी ई-वीजा का प्रावधान किया है। भारत के साथ सीधे अफगानिस्तान की सीमा कहीं मिल रही है इसलिए वहां से पलायन करने वाले लोग भारत में नहीं घुस रहे हैं। पाक अधिकृत कश्मीर से जरूर अफगानिस्तान की सीमा मिलती है और अगर वहां से कश्मीर होकर घुसपैठ हो तो अलग बात है, लेकिन उसका भी खतरा अभी नहीं दिख रहा है। फिर भी सीएए को लेकर जयकार हो रही है। इसी तरह एक नैरेटिव यह बना है कि सोचें, इस समय भारत में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं होते तो क्या होता? कुछ समय पहले यह नैरेटिव कोरोना महामारी के लिए बनाया गया था। चारों तरफ यह प्रचार हो रहा था कि अच्छा हुआ मोदीजी प्रधानमंत्री हैं वरना अगर कोई दूसरा होता तो पूरा देश महामारी में खत्म हो चुका होता है। जब भी कोई बताता है कि तीन करोड़ लोग संक्रमित हुए तो जवाब होता है कि शुक्र मनाइए कि मोदीजी हैं, जो तीन ही करोड़ संक्रमित हुए नहीं तो 30 करोड़ हो जाते। उसी नैरेटिव को अब तालिबान से जोड़ दिया गया है। पहले तालिबान का खतरा बताया जाता है और फिर कहा जाता है कि शुक्र है कि भारत में मोदीजी हैं। इस प्रचार का मकसद यह बताना है कि अगर कोई दूसरा प्रधानमंत्री होता तो तालिबान और पाकिस्तान मिल कर चीन की मदद से भारत पर कब्जा ही कर लेते। कोरोना की तरह अफगानिस्तान का संकट भी भारत सरकार की विफलता का स्मारक है। लेकिन प्रचार की ताकत ऐसी है कि हार कर जीतने वाले को बाजीगर बना दिया जाता है।
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