बेबाक विचार

चुनौती वायु स्वच्छ करने की

ByNI Editorial,
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चुनौती वायु स्वच्छ करने की
दिल्ली और आसपास की हवा फिर बिगड़ चुकी है। यानी लॉकडाउन के समय जो लाभ हुआ था, वह अब गायब हो चुका है। वजह पराली जलाना मानी गई है। बहरहाल, कारण चाहे जो हो, असल मुद्दा है कि अपने लोगों को साफ-सुथरी हवा में रखने में अपना देश फिलहाल नाकाम है। दुखद यह है कि औद्योगिक रूप से अधिक विकसित और अधिक आबादी वाले चीन की तुलना में भी भारत की स्थिति बदतर है। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर (सोगा)–2020 रिपोर्ट से सामने आया है कि वायु प्रदूषण से होने वाली सालाना मौतों में चीन और भारत अव्वल देश हैं। दुनिया में होने वाली उन कुल मौतों में इन दोनों देशों का हिस्सा 58 फीसदी है। चीन में पिछले साल करीब 14.2 लाख लोगों की मौत के पीछे वायु प्रदूषण से जुड़ी बीमारी एक वजह थी, वहीं भारत में इन मौतों का आंकड़ा 9.80 लाख रहा। मगर रिपोर्ट से ये भी साफ है कि सबसे अधिक मौतों के बावजूद प्रदूषण से लड़ने में चीन भारत की तुलना में बेहतर स्थिति में है। जानकार चीन में अधिक मौतों के पीछे वहां की बुजुर्ग आबादी को वजह मानते हैं। सोगा की रिपोर्ट में 30 सर्वाधिक प्रदूषित देशों में के बीच भारत नंबर एक पर है। चीन ने अपनी रैंकिंग में काफी सुधार किया है और वह 29वें नंबर पर है। उपग्रह से मिली तस्वीरें बताती हैं कि पिछले सात सालों में चीन में हालात सुधरे हैं। वहां अब पीएम 2.5 का स्तर 45 से 75 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है, जबकि भारत में यह स्तर औसतन 85 माइक्रोग्राम से अधिक रहता है। गौरतलब है कि चीन ने वायु प्रदूषण से निपटने के लिए पहली व्यापक पंचवर्षीय योजना 2013 में लागू की और उसके बाद तय लक्ष्य हासिल करने के लिए लगातार कोशिश जारी रखी। पिछले एक दशक में चीन में पीएम 2.5 का स्तर 30% गिरा है। इसके लिए चीन ने कोयला छोड़कर अपने पावर प्लांट गैस आधारित बनाए। चीन ने अपने बिजलीघरों में प्रदूषण नियंत्रण के लिए उम्दा तकनीक भी फिट की है। प्रदूषण पर काबू की तमाम कोशिशें रिहायशी और औद्योगिक दोनों क्षेत्रों में लागू की गईं। यही कारण है कि आज चीन का उत्सर्जन भारत से चार गुना है, लेकिन वहां की हवा भारत के मुकाबले करीब ढाई गुना अधिक साफ है। ये तुलना हमारे लिए काम की है। इसलिए अगर चीन अपनी हवा सुधार सकता है, तो आखिर भारत ऐसा क्यों नहीं कर सकता?
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